उन्होंने बताया कि वृहद गो संरक्षण केन्द्र एवं अस्थायी गोवंश आश्रय स्थल पर जीवामृत तैयार कराकर सम्बन्धित क्षेत्र के कम से कम 100 कृषकों को कृषि विभाग से चिन्हित कराकर विक्रय किया जाय। गोबर के लटठे, गमले एवं मास्कीटो क्वायल, अगरबत्ती को भी तैयार कराया जाये। देशी प्रजाति की अच्छी नस्लों के गोवंश आश्रय स्थलों पर वर्गीकृत वीर्य स्ट्राज प्रयोग करके उन्नतशील नस्ल, अधिक उत्पादकता वाली साहीवाल, गिर एवं हरियानान नस्ल की बछिया उत्पन्न किया जाये। अस्थायी गोवंश आश्रय स्थलों को स्वालम्बी बनाये जाने हेतु स्थलों पर घन जीवामृत, नेडप या वर्मी कम्पोस्ट से तैयार की जाने वाली जैविक खाद को उद्यान, वन, कृषि विभाग, पंचायतों, कार्यदायी सस्थाओं आदि को विक्रय किया जाये।
गोवंश आश्रय स्थलोें को स्वावलम्बी बनाये जाने हेतु संचालित की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों को महिला स्वयं सहायता समूहों के साथ भी जोडा जाए। जिससे उत्पादों को तैयार कर उनका विपणन करके अधिकाधिक रोजगार भी सृजित किया जाय।बैठक में मुख्य विकास अधिकारी डा. राजेश कुमार प्रजापति, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. प्रमोद कुमार सिंह, खंड विकास अधिकारी, जिला विद्यालय निरीक्षक राकेश कुमार पाण्डेय, जिला अर्थ एवं संख्याधिकारी राज दीप वर्मा, उप निदेशक सूचना डा. मधु ताम्बे सहित अन्य अधिकारीगण मौजूद थे।