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लखनऊ-कानपुर के बीच होने के कारण जनपद का जरी उद्योग मृत सैया पर

locationउन्नावPublished: Jan 02, 2018 05:59:22 pm

Submitted by:

Ruchi Sharma

लखनऊ कानपुर के बीच होने के कारण जनपद का जरी उद्योग मृत सैया पर
 

zari work

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नरेंद्र नाथ अवस्थी

उन्नाव. लखनऊ कानपुर के बीच होने के कारण उन्नाव का पारंपरिक उत्पाद और इससे जुड़े लोग परिवार प्रभावित हुए हैं। दोनों महानगरों के बीच होने के कारण जरी उद्योग का कोई बड़ा व्यापारी जनपद में अपनी पहचान नहीं बना पाया है। इसकी चर्चा आज इसलिए हो रही है क्योंकि प्रदेश सरकार ने एक जिला एक उत्पाद योजना के अंतर्गत उस जिले को पहचान देने की ओर अग्रसर है। प्रदेश शासन की मंशा के अनुरूप जंग लग चुकी सरकारी मशीनरी भी सक्रिय हो चुकी है और उससे जिले की पारंपरिक उत्पाद से जुड़े लोगों को खोजने का भी काम शुरू किया गया है।
उद्योग उपायुक्त ने बताया कि श्रमिकों की पहचान कर ली गई है

एक जिला एक उत्पाद की पहचान वहां के पारंपरिक उत्पाद के नाम से जाना जाता है। हर जिले की पहचान उस जिले के उत्पाद से होती है। ऐसे ही उन्नाव का जरी उद्योग उन्नाव की पहचान है। लेकिन सच्चाई यह है कि ना तो उन्नाव में इसका कोई व्यापारी है और ना ही कोई उद्योग। यहां की पहचान जरी उद्योग केवल और केवल जॉब वर्कर के रूप में है। जिनकी माली हालत काफी खस्ता है। लखनऊ और कानपुर के बीच बसा उन्नाव यहां के जरी उद्योग में लगे श्रमिकों का जमकर शोषण कर रहा है। यही कारण है कि जरी का कोई भी उद्योग यहां पनप नहीं पाया है। इस संबंध में बातचीत करने पर उपायुक्त उद्योग जिला उद्योग केंद्र ने बताया कि प्रदेश सरकार की मंशा के अनुरूप जिले में जरी उद्योग से जुड़े श्रमिकों की पहचान कर ली गई है और उन्हें भारत सरकार द्वारा हस्तशिल्प पहचान पत्र भी दिया गया है। जिससे सरकारी योजनाओं का लाभ हस्तशिल्प पहचान पत्र धारक को मिलेगा।
बिचौलियों द्वारा हो रहा है श्रमिकों का शोषण


उपायुक्त उद्योग सुनील कुमार ने पत्रिका से बातचीत के दौरान बताया कि विभाग द्वारा कराए गए सर्वे में जनपद में 5000 जरी वर्करों की पहचान की गई है। इनमें अधिकांश जरी के जाब वर्कर सफीपुर, मियागंज आसीवन, मोहान, औरास, हसनगंज, गंज मुरादाबाद आदि क्षेत्रों में मिलते हैं। जिनके घर में जरी का काम पुश्तैनी रूप में होता है। उन्होंने कहा कि इन जॉब वर्कर की माली हालत बहुत बुरी है। जिन्हें पारंपरिक जरी के काम के बदले बहुत मामूली मजदूरी मिलती है। जो सो रुपए से 500 रुपए के बीच है। जरी के जाब वर्कर केवल मजदूर बनकर रह गए हैं और जिन्हें कानपुर और लखनऊ से आने वाले व्यापारी मनमुताबिक मजदूरी देखकर जरी का काम करा कर चले जाते हैं। जिसका लाभ बिचौलिए उठा रहे हैं।
अंग्रेजों के शासनकाल में जरी उद्योग को लगी गहरी चोट


उन्होंने बताया कि मुगल शासन काल में अकबर के समय जरी का काम बड़े पैमाने पर होता था। उस समय सोने के धागे से जरी का काम किया जाता था।परंतु औरंगजेब के जमाने में इसकी उलटी गिनती चालू हो गई और अंग्रेज के शासनकाल में जरी उद्योग पूरी तरह बर्बाद हो गया। सुनील कुमार ने बताया कि समय के साथ सोने से होने वाले जरी कार्य में परिवर्तन आया। सोना महंगा होने के कारण उसकी जगह इमिटेशन थ्रेड बनने लगे और इन्हीं से जरी का कार्य होने लगा। उन्होंने बताया कि इमीटेशन थ्रेड सूरत में बड़े पैमाने बड़े पैमाने पर बनाया जाता है और जहां से सप्लाई इमिटेशन थ्रेड की होती है। उपायुक्त उद्योग की बातों पर विश्वास किया जाए तो लखनऊ कानपुर के बीच होने जरी उद्योग से जुड़े श्रमिकों का बड़े पैमाने पर आर्थिक और शारीरिक शोषण किया गया और आज भी हो रहा है। जिससे उनकी दिन-प्रतिदिन स्थिति बिगड़ती चली गई। इस स्थिति को सुधारने के लिए प्रदेश और केंद्र सरकार द्वारा कार्य किया जा रहा है। हस्तशिल्प पहचान पत्र इस ओर बढ़ाया गया। एक कदम है ऐसे लोगों को मुद्रा योजना के अंतर्गत मदद करने की भी योजना है।
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