आज बताया गया है कि उन्नाव दुष्कर्म प्रकरण में पीड़िता के पिता के इलाज में ईएमओ (आकस्मिक चिकित्साधिकारी) ने लापरवाही बरती थी। हालत गंभीर होने पर भी उसे हायर सेंटर के लिए रेफर नहीं किया गया था। यही नहीं सर्जन की जरूरत पर भी उसे नहीं बुलाया गया था। निदेशक प्रशासन ने अपनी जांच में ईएमओ को दोषी पाते हुए स्वास्थ्य विभाग को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।
क्या था मामला-
दुष्कर्म पीड़िता के पिता को आर्म्स एक्ट के एक मुकदमे में जेल भेजा गया था। 8 अप्रैल की रात जिला कारागार में उसकी हालत बिगड़ गई थी। रात 9:05 बजे जिला कारागार से उसे जिला अस्पताल लाया गया था। उस वक्त इमरजेंसी वार्ड में आकस्मिक चिकित्साधिकारी डॉ. गौरव अग्रवाल ने ही पीड़िता के पिता का इलाज किया था। लेकिन भर्ती करने के 6 घंटे बाद ही पिता की मौत हो गई थी। इस मामले में मरीज की हालत गंभीर होने के बाद भी उसे जिला अस्पताल से रेफर न करने व ऑन कॉल पर तैनात विशेषज्ञ डॉक्टरों को न बुलाने के आरोप डॉ. गौरव पर लगे थे।
दुष्कर्म पीड़िता के पिता को आर्म्स एक्ट के एक मुकदमे में जेल भेजा गया था। 8 अप्रैल की रात जिला कारागार में उसकी हालत बिगड़ गई थी। रात 9:05 बजे जिला कारागार से उसे जिला अस्पताल लाया गया था। उस वक्त इमरजेंसी वार्ड में आकस्मिक चिकित्साधिकारी डॉ. गौरव अग्रवाल ने ही पीड़िता के पिता का इलाज किया था। लेकिन भर्ती करने के 6 घंटे बाद ही पिता की मौत हो गई थी। इस मामले में मरीज की हालत गंभीर होने के बाद भी उसे जिला अस्पताल से रेफर न करने व ऑन कॉल पर तैनात विशेषज्ञ डॉक्टरों को न बुलाने के आरोप डॉ. गौरव पर लगे थे।
यह मामला जब गर्माया तब जिला प्रशासन व शासन ने डॉ. गौरव के खिलाफ जांच के आदेश दे दिए थे। मामले की जांच निदेशक प्रशासन डॉ. पूजा पांडेय ने की थी जिसमें डॉ. गौरव पर लगाए गए आरोप सही साबित हुए। इसकी जांच रिपोर्ट बुधवार को निदेशक प्रशासन ने स्वास्थ्य विभाग को सौंप दी। उन्होंने डॉ. गौरव को इलाज में उदासीनता का आरोपी पाया है।