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माघ मेला में मिट्टी चूल्हे और गोबर के उपले कर रहे हैं श्रद्धालुओं का इंतजार, कल्पवासी लेना न भूलें, जानिए विशेष महत्व

locationप्रयागराजPublished: Dec 25, 2021 12:26:36 pm

Submitted by:

Sumit Yadav

डुबकी लगाने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए एक ओर जोर शोर से तैयारियां चल रही है, तो वही स्थानीय लोगों ने भी सेवा सत्कार के लिए तैयारियां जोरों पर हैं। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को भोजन-प्रसाद बनाने में परेशानी न हो इसके लिए गोबर के उपले और मिट्टी के चूल्हे बनाने में जुटी हैं मेला क्षेत्र में रहने वाली महिलाएं। इन महिलाओं को अब इंतजार है केवल श्रद्धालुओं के आगमन की और कल्पवासियों की। कल्पवासी इसी मिट्टी के चूल्हे और गोबर उपले से एक माह शुद्ध भोजन तैयार करते हैं।

माघ मेला में मिट्टी चूल्हे और गोबर के उपले कर रहे हैं श्रद्धालुओं का इंतजार, कल्पवासी लेना न भूलें, जानिए विशेष महत्व

माघ मेला में मिट्टी चूल्हे और गोबर के उपले कर रहे हैं श्रद्धालुओं का इंतजार, कल्पवासी लेना न भूलें, जानिए विशेष महत्व

प्रयागराज: विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक समागम प्रयागराज संगम तट पर माघ मेले की तैयारी अंतिम चरण पर है। माघ मेला लगने में कुछ ही दिन रह गए हैं। मेला के दौरान संगम में पुण्य की डुबकी लगाने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए एक ओर जोर शोर से तैयारियां चल रही है, तो वही स्थानीय लोगों ने भी सेवा सत्कार के लिए तैयारियां जोरों पर हैं। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को भोजन-प्रसाद बनाने में परेशानी न हो इसके लिए गोबर के उपले और मिट्टी के चूल्हे बनाने में जुटी हैं मेला क्षेत्र में रहने वाली महिलाएं। इन महिलाओं को अब इंतजार है केवल श्रद्धालुओं के आगमन की और कल्पवासियों की। कल्पवासी इसी मिट्टी के चूल्हे और गोबर उपले से एक माह शुद्ध भोजन तैयार करते हैं।
देश-दुनिया से आते हैं भक्त

दुनिया भर में प्रसिद्ध आस्था की नगरी कहे जाने वाला प्रयागराज के संगम तट पर कुछ ही दिनों में माघ मेला लगने वाला है। मेले में बिना किसी न्योता के बगैर देश दुनिया से लोग संगम की रेती पर आस्था की डुबकी लगाने आते हैं। वही प्रशासन उनके लिए संगम क्षेत्र में तंबुओं की नगरी, पांटून पुल सहित अन्य व्यवस्थाएं करने में जुट गया है। गांव-गिरांव में कल्पवासी कल्पवास का ताना बाना बुनने लगे हैैं । कल्पवासियों का कल्पवास पूरी सुचिता और शुद्धता के साथ पूर्ण हो, इसके लिए गंगा किनारे की बस्ती में उपले और मिट्टी के चूल्हे तैयार करने में जुटी है महिलाएं ।
मिट्टी के गोरसी का विशेष महत्व

संगम की रेती पर दूर दराज से आकर श्रद्धालु एवं साधु संत एक मास का तीर्थ पुरोहित द्वारा व्यवस्थित शिविर में रहकर कल्पवास करते हैं। उस दौरान यहां पर मिट्टी से बने चूल्हे, गोरसी और गोबर से बने उपलों की मांग अधिक हो जाती है। चूल्हे पर खाना पकाने, गोरसी में उपला जलाकर हाथ पैर सेंकने की कड़ाके की सर्दी में आवश्यकता पड़ती है।
माघ मेला में मिट्टी चूल्हे और गोबर के उपले कर रहे हैं श्रद्धालुओं का इंतजार, कल्पवासी लेना न भूलें, जानिए विशेष महत्व
नहीं होता है गैस सिलेंडर का इस्तेमाल

तंबुओं के नगर में एक माह कल्पवास करने वालों के टेंट में वैसे तो गैस सिलिंडर के प्रयोग होने लगे हैं, मगर अब भी ऐसे कल्पवासी और साधु-संत हैं, जो मिट्टी के चूल्हे पर बना भोजन ही ग्रहण करते हैं। क्योंकि कल्पवास में शुद्धता को पहली प्राथमिकता माना जाता है। इसके लिए मिट्टी के बने चूल्हे और गोबर के बने उपले शुद्धता की कसौटी पर खरे माने जाते हैं। यह बात वर्षों से गंगा तट पर मिट्टी का चूल्हा तैयार करने वाली इन महिलाओं को भली भांति पता है। इसीलिए वह कल्पवास का समय आने पर बिना किसी आर्डर के दो माह पहले से यह काम शुरू कर देती है।
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40 से 50 चूल्हों का हो रहा है निर्माण

वर्षों से माघ और कुंभ मेला के लिए मिट्टी के खास चूल्हे बनाने वाली महिला अंजली कहती है कि वह अब भी रोज औसतन 40-50 चूल्हे बना लेती है। इस साल भी महिलाओं ने सैकड़ों चूल्हे तैयार कर ली है और अभी मिट्टी का चूल्हा बनाने में व्यस्त है। इसके साथ ही उपले पाथने का भी काम कर रही महिलाएं हैं। यह उपली ठंड में कल्पवासी जलाते है। उपली आम तौर पर कल्पवासियों को कड़ाके की ठंड में हाथ-पैर सेंकने में मदद पड़ती है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं की साधु-संतों व कल्पवासियों की पहली पसंद होतें हैं गाय का गोबर और गंगा की मिट्टी के बने चूल्‍हे।
कल्पवासी मिट्टी के चूल्हे पर बनाते हैं पकवान

वर्तमान में वैसे तो माघ मेले में आने वाले तमाम श्रद्धालु गैस सिलेंडर आदि साथ लेकर आते हैं और उसी पर भोजन बनाते हैं लेकिन यहां पर कल्पवास करने वाले भोजन प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हों का ही इस्तेमाल करते हैं जिनमें आग जलाने के लिए गोबर के उपले व लकड़ी का प्रयोग करते हैं।
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खाना बनाने के साथ साथ ठंड से बचने के लिए भी श्रद्धालु उपले का प्रयोग करते है ।जो कि चूल्हा 50 से 70 रुपये में है जबकि 100 रुपये से 120 रुपये में सौ उपले मिलते है।इसलिए माघ मेेले के लिए तीन-चार माह पहले से चूल्हे और उपले बनाने की तैयारी शुरू कर देती हैं महिलाएं।
तीर्थपुरोहित असीम भारद्वाज ने कहा कि संगनागरी में आने वाले भक्त मिट्टी के ही बर्तन में भोजन तैयार करते हैं। इसके लिए मिट्टी के चूल्हे, गोबर के उपले और मिट्टी के बर्तन होते हैं। माघ मेले में कल्पवासी भी मिट्टी के बर्तन और चूल्हे का इस्तेमाल करते हैं। ऐसा करने से भगवान की श्रद्धा और भाव में कोई कमी नहीं होती और पूर्ण रूप से कल्पवास पूर्ण होता है।
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