मुरादाबादPublished: Jan 31, 2023 09:41:35 pm
Adarsh Shivam
शिवाजी ने शासन में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रश्रय दिया। मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों के विचारों का पूर्ण सम्मान था।
जब भी भारत में महाकाव्य काल के बाद के इतिहास के योद्धाओं का अध्ययन किया जाता है तो उसमें जहाँ एक ओर अज्ञातशत्रु, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक तथा समुद्र गुप्त का नाम आता है तो वहीं दूसरी ओर पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और पेशवा बाजीराव का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है।
यह आलेख मराठा युद्धकला तथा छापामार प्रणाली के जनक छत्रपति शिवाजी को आधुनिक भारत मे प्रचिलित समावेशी प्रक्रिया के प्रथम पुरुष तथा राष्ट्रवाद के महानायक के रूप में न केवल स्वीकार करता है अपितु स्थापित भी करेगा। शिवाजी ने मराठा साम्राज्य की स्थापना मात्र और मात्र किसी क्षेत्र विशेष में अपने आधिपत्य को स्थापित करने के उद्देश्य से नहीं अपितु भारत को एक राष्ट्र स्वरूप में पिरोने की पवित्र मंशा के साथ के साथ की थी।
डा0 ईश्वरी प्रसाद के शब्दों में अगर देखे तो शिवाजी ने जिन संस्थाओं की स्थापना की, वे तत्कालीन मौजूदा व्यवस्था में न केवल सुधारगामी थे अपितु अपनी प्रजा की भलाई के लिए उचित भी थे। आइये देखते है कि आखिर शिवाजी ऐसे क्यों थे?......वास्तव में छत्रपति शिवाजी ने अभावों का जीवन जीते हुए स्व-पराक्रम और शौर्य के साथ-साथ अपनी जनता के मध्य रहते हुए उनके सुख-दुःख का प्रत्यक्ष अनुभव किया था।
ग्रामीण पर्वतीय वायुमण्डल में रहते हुए उन्होने पर्वतीय क्षेत्र के युद्ध कौशल का प्राकृतिक प्रशिक्षण प्राप्त किया था। माता जीजाबाई एवं संरक्षक दादाजी कोणदेव के संरक्षण में शिवाजी के भीतर न केवल प्रशासनिक क्षमता का उदय हुआ अपितु उनकी चारित्रिक सुदृढता भी निर्धारित हुई। शिवाजी को समर्थ गुरू रामदास का भी आशीर्वाद प्राप्त था। उन्ही की दीक्षा व प्रेरणा से शिवाजी ने असाधारण कर्तव्यों के पालन में सफलता हासिल की।