ऐसा ही एक वाक्या देश में इमरजेंसी के बाद 1991 में पांचवें लोकसभा चुनाव के दौरान देखने को मिला था। अटल जी चुनाव प्रचार के लिए आजमगढ़ पहुंचे थे। उनके साथ राजमाता विजया राजे सिंधिया भी थी। उस समय सत्य नारायण गुप्ता उर्फ झटकू पहलवान की शहर के मातबरगंज में मिठाई की दुकान थी। पहलवान आरएसएस के वरिष्ठ कार्यकर्ता और जाने माने पहलवान भी थे। अटल जी राज माता के साथ प्रचार करते हुए मातबरगंज पहुंचे।
यहां झटकू पहलवान ने अटल जी को जलपान के लिए कहा और उनके सामने पेड़ा रख दिया। अटल जी और राजमाता ने पेड़े का लुफ्त उठाया। इसके बाद अटल जी ने झटकू पहलवान के पेड़े की खूब तारीफ की। अटल जी सेवा भाव से इतने प्रसन्न हुए कि पहलवान के परिवार के लोगों के साथ फोटो भी खिंचवाया।
पहलवान तो अब नहीं रहे लेकिन उनके परिवार के सदस्यों ने आजतक अटल जी के फोटो को काफी संभालकर रखा है। अटल जी के निधन के बाद पूरे परिवार में मानों मातम सा छा गया लोग उनके स्नेह को याद कर फूट-फूट कर रोते नजर आये।
पहलवान के 65 वर्षीय पुत्र शिव रतन गुप्ता का कहना है कि उन्होंने ऐसा सरल और शांत व्यक्तित्व नहीं देखा। अटल जी युग पुरूष थे। चंद पल में वे किसी को भी अपना कायल बना देते थे। जब अटल जी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी उनके परिवार को लगा था कि उनका कोई अपना इस देश का पीएम बन गया है। पूरे परिवार ने मिलकर खुशी मनायी थी। उनके निधन से राष्ट्र को अपूरनीय क्षति हुई है जिसकी भरपाई संभव नहीं है।
शिवरतन ने बताया कि वह दिन उन्हें आज भी याद है जब अटल जी और राजमाता ने साधारण व्यक्ति की तरह उनके घर चटाई पर बैठकर भोजन किया था। उस दिन के सारे फोटों उन्होंने सहेजकर रखे है। इस समय उनके परिवार के लोग नेपाल घूमने गए है और फोटो उन्हीं के लाकर में बंद है।
बता दें कि झटकू पहलवान को पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव को राजनीतिक गुरू भी कहा जाता है। राम नरेश जी से भी उनके अच्छे संबंध थे। यह अलग बात है कि पहलवान का पूरा जीवन आरएसएस के लिए समर्पित था। वर्ष 1989 में उनका निधन हो गया लेकिन परिवार के लोग आरएसएस और अटल जी से जुड़ी स्मृतियों को आज भी संजोकर रखे हैं।