scriptKanpur Ground Report: यूपी के चुनावी रंग यहां सबसे चटक, कॉस्मोपॉलिटन इलाके की कशमकश, मुद्दों से ज्यादा जाति-धर्म का ‘भौकाल’ | Kanpur Ground Report Before UP Assembly Elections 2022 | Patrika News

Kanpur Ground Report: यूपी के चुनावी रंग यहां सबसे चटक, कॉस्मोपॉलिटन इलाके की कशमकश, मुद्दों से ज्यादा जाति-धर्म का ‘भौकाल’

locationकानपुरPublished: Dec 10, 2021 09:30:37 am

Submitted by:

Mukesh Kejariwal

राज्य का सबसे बड़ा औद्योगिक केंद्र होने की जिम्मेदारी पूरी करते हुए भी यहां के लोग बकैती (बतकही) में पीछे नहीं रहते। यहां की सभी 10 सीटें शहरी इलाकों में ही हैं, जहां सघन आबादी की वजह से राजनीतिक प्रचार और पहुंच आसान हो जाती है।

Kanpur Violence

Kanpur Violence

कानपुर. यूपी के चुनावी रंग कानपुर में सबसे चटक दिखते हैं। राज्य का सबसे बड़ा औद्योगिक केंद्र होने की जिम्मेदारी पूरी करते हुए भी यहां के लोग बकैती (बतकही) में पीछे नहीं रहते। यहां की सभी 10 सीटें शहरी इलाकों में ही हैं, जहां सघन आबादी की वजह से राजनीतिक प्रचार और पहुंच आसान हो जाती है। काम-काज के साथ ही यहां अपनी पहचान से जुड़े विवाद भी अंदर ही अंदर सुलगते रहते हैं, जिसकी वजह से लोग राजनीति में भी भरपूर दिलचस्पी लेते हैं।
कारोबारी धमक और कसक

अंग्रेजों ने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में इस गांव पर कब्जा किया और आगे अपना सबसे बड़ा सैन्य और कारोबारी ठिकाना बनाया। ‘पूरब का मैनचेस्टर’ अब भले ही नहीं कहें लेकिन देश के टॉप 10 औद्योगिक शहरों में जरूर आता है। शहर ढांचागत सुविधाओं के लिहाज से अब भी बाट ही जोह रहा है। यहां के व्यस्त हौजरी मार्केट में अपना काम पैंतीस (काम पूरा) करने में जुटे यहीं के एक छोटे कारोबारी ब्रजेश गुप्ता कहते हैं, ‘भ्रष्टाचार थोड़ा भी कम नहीं हुआ है। सरकारी अफसरों और डिपार्टमेंट ने उल्टा रेट बढ़ा दिए हैं।’ यहीं पर शंकर जायसवाल कहते हैं, ‘आज भी हम जाम और क्रॉसिंग में ही अपना समय बिताते हैं। बाजारों में कोई सुविधा नहीं। ना कोई सफाई है।’
यहां के चमड़ा कारोबार की धमक दुनिया भर में रही है। मगर कारोबारी हैदर दावा कर रहे हैं कि 240 साल पुराने इस कारोबार में अब 1200 करोड़ का सालाना नुकसान हो रहा है। प्रदूषण के नाम पर काम ठप हुआ, मगर कोई रास्ता नहीं दिखाया जा रहा। इस काम में ज्यादातर मुस्लिम और दलित समाज के लोग लगे थे। यहां हर कारोबार के अपने मुद्दे हैं, समस्याएं हैं और सहयोग की उम्मीद है जो चुनावी काल में और मुखर होना चाहती है।
शहर की फांस

इतना आसान भी नहीं है कानपुर को समझना। आबादी में जाति, धर्म और प्रांत की विविधता के लिहाज से यह प्रदेश का सबसे कॉस्मोपॉलिटन शहर हो सकता है, बस लोगों ने आपसी दूरी उस तरह मिटाई नहीं है। राजनीति में मुद्दों को भांपते हमें यही लगता है कि इस महानगरी में चुनाव के लिहाज से लोगों के लिए अपनी जाति और धर्म से जुड़ी अस्मिता की ही चिंता सबसे ज्यादा है। सभी पार्टियां जातीय गणित साधने में जुटी हैं। रजत कठेरिया कहते हैं, ‘यहां कोई पार्टी हो… भाजपा, सपा, कांग्रेस चाहे बसपा… टिकट इस आधार पर नहीं मिलेगा कि उसने कैसा काम किया है। मिलेगा उसी को जिसका जातीय गणित फिट बैठेगा।’ यहां एक से एक राजनीतिक धुरंधर मिलेंगे। अभी कैंडिडेट तय नहीं हुए हैं, लेकिन जातियों के गणित के आधार पर आपको कागज पर साफ बता देंगे कि किस पार्टी की कितनी संभावना है और अगर इस जाति का कैंडिडेट रहा तो वह संभावना कितनी घट-बढ़ सकती है।
वायरल होती बकैती

‘अमां यार, एक कनपुरिया आदमी स्टेडियम में मसाला (गुटखा) का खा लिया तुम मीडिया वालों ने तो पूरा लभेड़ (अनावश्यक तूल) कर दिया यार। मीडिया को भी तो मसाला ही पसंद है।’ बात आप चुनाव की पूछ रहे हों लेकिन कानपुर में सामने वाला जवाब अपने मन का ही देगा। बिठूर रोड पर दिलीप मिश्रा ने भी चुनाव पर राय देने से पहले अपनी भड़ास निकाली। दरअसल, पिछले दिनों यहां हो रहे एक इंटरनेशनल क्रिकेट मुकाबले के दौरान स्टेडियम में मुंह में गुटखा दबाए फोन पर बात करते एक व्यक्ति का वीडियो खूब वायरल हुआ।
यहां कई बार लोगों के शब्द रूखे जरूर होते हैं, लेकिन एक खास लय के साथ कहने का अंदाज मस्तमौला होता है। ठेठ अंदाज सुन गुस्सा नहीं आएगा, मुस्कुरा ही उठेंगे। हाल की कई फिल्मों व सीरियलों से ले कर सोशल मीडिया तक कनपुरिया अंदाज या बकैती हिट हो रही है। पिछले दिनों एक टॉप ऑटोमोबाइल कंपनी ने अपनी एसयूवी को इंट्रोड्यूस ही कानपुरिया शब्द ‘भौकाल’ से किया। चुनावी प्रचार व चर्चाएं भी यहां इसी अंदाज में होती हैं।
आम जन की अनेक चिंताएं

अपनी मन की कहने के बाद दिलीप मिश्रा लौटते हैं चुनाव के टॉपिक पर। कहते हैं, ‘महंगाई से तो सबकी हवा टाइट है। लोगों की जेब में इतना पैसा थोड़े ही है।’ वहीं सुनयना अवस्थी रोजगार को सबसे बड़ा मुद्दा बताती हैं। कहती हैं एक भी युवा को कोई नौकरी नहीं मिल रही है। उसी जगह मौजूद अमन सिंह बात काटते हैं। कहते है, ‘समस्या कहां नहीं है। आप यह देखो कि पहले से कितना अच्छा हुआ है। अब यहां क्रिमिनल लोग पूरी तरह शंट (शांत) कर दिए गए हैं।’ आम लोगों को गंदी होती हवा और पानी की चिंता भी खूब सता रही है। यह शहर प्रदूषण के लिहाज से भी दुनिया के शीर्ष शहरों में शुमार है।
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