यादव के घोटाले के गढ़ित की अगर बात की जाए तो किसी के भी होश उड़ जाएंगे। इसकी वजह से आयकर विभाग भी असमंजस की स्थिति में हैं। लेकिन ये तो किसी को भी मानना पड़ेगा कि यादव की किस्मत काफी बुलंद है। सफलता के शिखर तक का इनका सफर अविश्विसनीय है, लेकिन काली कमाई ज्यादा समय तक किसी को खुश कहा रख सकी है।
कैसी हुई थी इनकी शुरुआत-
सन् 1980 में यादव को न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवेलपमेंट अथॉरिटी में जूनियर इंजिनियर के पोस्ट पर 350 रुपए मासिक वेतन पर रखा गया था। उस दशक में जितने भी बड़े इंजीनियर और अधिकारी नोएडा में काम करते थे वो उच्च जाति से ताल्लुक रखते थे। यादव के कई मालिक उसपर चिल्लाते थे और उसे उसकी जाति के नाम से पुकारते थे। वो लोगों के सामने यादव की बेइज्जती करते थे वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि उसका नाम यादव था और वो दलित था, लेकिन इन सब बातों से वो बेफिक्र था।
सन् 1980 में यादव को न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवेलपमेंट अथॉरिटी में जूनियर इंजिनियर के पोस्ट पर 350 रुपए मासिक वेतन पर रखा गया था। उस दशक में जितने भी बड़े इंजीनियर और अधिकारी नोएडा में काम करते थे वो उच्च जाति से ताल्लुक रखते थे। यादव के कई मालिक उसपर चिल्लाते थे और उसे उसकी जाति के नाम से पुकारते थे। वो लोगों के सामने यादव की बेइज्जती करते थे वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि उसका नाम यादव था और वो दलित था, लेकिन इन सब बातों से वो बेफिक्र था।
वो अपने मालिकों को शिकायत का मौका नहीं देता था और अपने काम को पूरी निष्ठा के साथ सम्पन्न करता था। उसके एक साथी ने एक अखबार को इंटरव्यू में कहा था कि कोई इसका मजाक उड़ाता तो वो बस हंस देता था। कर्मनिष्ठ और संयम न खोना उसकी खूबियां थी जिसकी वजह से वो हमेशा आगे बढ़ता गया।
1995 वो वर्ष था जब यादव ने सफलता के आसमां में उड़ान भरना शुरू की। और इसके पीछे उसकी जाति का एंगल भी शामिल था। बहुजन समाज पार्टी के सत्ता में आते ही (गठबंधन सहयोगी समाजवादी पार्टी को दरकिनार कर) उसी वर्ष यादव को प्रोजक्ट इंजीनियर बना दिया गया था।
अप्रैल 1995 में जब उसे इंजीनियर के पद पर प्रोमेट किया गया था, उस वक्त उसके पास इंजीनियर की डिग्री तक नहीं थी। यादव द्वारा पेश किया गया बीई-इलेक्ट्रिकल 4 सर्टीफिकेट पर अगर यकीन किया जाए तो 1997 में उसने दिल्ली के जामिया कॉलेज से डिग्री हासिल की थी।
सिंह ने असली छलांग 2002 से मारना शुरू की और उसने हर जगह अपनी व्यवस्था बनाई। उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारी ने पिछले वर्ष एक इंटरव्यू में कहा था कि यादव मायावती के परिवार के काफी करीब था, खासकर उनके भाई आनंद के। यहां तक के आईएएस अफसर जो नोएडा के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे, यादव से निर्देश लेते थे। यादव का रौब ऐसा था कि यदि इन अफसरों में से कोई उसकी बात न सुने तो उसका तबादला हो जाता था।
और आखिरकार यादव के लिए मुसीबतों का दौर शुरू हुआ- जैसे ही अखिलेश की सरकार 2012 में आई वैसे ही आर पी सिंह (नोएडा इंजीनियर और यादव के ही सहयोगी) ने विभिन्न भारतीय दंड संहिता की धाराओं और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी। जैसे ही केस कोर्ट में पहुंचा, सरकार ने तुरंत ही यादव सिंह को पद से निष्कासित किया और उसके खिलाफ एक जांच की शुरूआत के आदेश दिए।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपाई ने यादव के घोटाले पर कहा था कि ये मायावती के कार्याकाल में हुए 5000 करोड़ के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले से कम नहीं है। एक बार सीबीआई इस मामले का खुलासा कर लें, राजनीतिक और नौकरशाही की पोल खुलने में भी ज्यादा समय नहीं लगेगा। गौर करने वली बात ये भी है कि जब यादव की कहानी सामने आई थी तभी भाजपा के तीन मंत्री – राम प्रकाश गुप्ता, कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह भी कुछ मामलों से घिरे हुए थे।
बहरहाल फिलहाल मुसीबत की सुई यादव सिंह पर अटकी है। और लग रहा है कि उनका इस दलदल से बाहर निकलना मुश्किल है।