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आया नवरात्र, सजने लगे पूजा पंडाल, पर इस 250 साल पुरानी दुर्गा प्रतिमा की बात ही निराली है

locationवाराणसीPublished: Oct 09, 2018 02:16:25 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

1767 में पुरखों ने नवरात्र के समय बर्वाड़ी दुर्गा पूजा के लिए मां दुर्गा की एक चाला प्रतिमा स्थपित की थी, पर इसे आज तक विसर्जित नहीं किया गया।

250 साल पुरानी दुर्गा प्रतिमा

250 साल पुरानी दुर्गा प्रतिमा

वाराणसी. धर्म नगरी काशी के लोग शारदीय नवरात्र में माता दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों के दर्शन-पूजन की तैयारी में जुट गए हैं। जगह-जगह पूजा पंडाल सज कर लगभग तैयार हैं तो कई देवी प्रतिमाएं भी मूर्त रूप लेने को हैं। नवरात्रि बुधवार से शुरू हो रही है। बनारस में बुलानाला, मैदागिन और जंगमबाडडी सहित सात जगहों पर नवरात्र के पहले दिन से ही पूजा पंडालों में कलस स्थापित कर विधिवत पूजन अर्चन शुरू हो जाता है। इन सभी स्थानों पर पूजन-अर्चन की तैयारी अंतिम दौर में है। बाजारों में जगह-जगह पूजन-अर्चन की सामग्री की दुकानें भी सज गई हैं।

वैसे तो यह धर्म नगरी काशी अपने आप में निराली है। यहां की कई ऐसी बातें हैं जो अद्भुत हैं जिन पर इस अति आधुनिकता के दौर में सहज ही विश्वास नहीं होता। पर वो हैं। इसी में है दुर्गा बाड़ी की प्रचीन दुर्गा प्रतिमा जो 250 वर्ष पूर्व स्थापित हुईं तो आज तक विसर्जित नहीं की गईं। कभी भी विसर्जन का प्रयास किया गया तो प्रतिमा हिली ही नहीं। यह प्रतिमा बंगाली टोला मोहल्ले में स्थिति है। हर साल बस रंग रोगन व नए परिधान के साथ नवरात्रि के पहले दिन से पूजन शुरू हो जाता है।
बताते हैं कि मां दुर्गा का ये चमत्कार ही था कि 250 साल पहले मुखर्जी परिवार के मुखिया को स्वप्न में आकर मां दुर्गा ने निर्देशित किया कि मुझे विसर्जित मत करना मैं यहीं रहना चाहती हूं। तब से लेकर आज तक मां दुर्गा इस बंगाली परिवार के घर पर विराजमान हैं। पुजारी बताते हैं कि 1767 में पुरखों ने नवरात्र के समय बर्वाड़ी दुर्गा पूजा के लिए मां दुर्गा की एक चाला प्रतिमा स्थपित की थी।. लेकिन विजयादशमी के दिन जब विसर्जन के लिए मां को उठाने का प्रयत्न किया गया तो प्रतिमा हिली तक नहीं। ये दुर्गा प्रतिमा जहां स्थापित है वहां के बंगाली परिवार के मुताबिक उनके पूर्वजों ने बताया कि कई लोगों ने मिलकर इस पांच फीट की प्रतिमा को उठाने का प्रयास किया लेकिन कोई भी प्रतिमा को टस से मस नहीं कर सका।
बंगाली परिवार के सदस्य एचके मुखर्जी के मुताबिक उसी रात परिवार के मुखिया मुखर्जी दादा को मां ने स्वप्न में दर्शन दिया और कहा, ‘मैं यहां से जाना नहीं चाहती, मुझे केवल गुड़ और चने का भोग रोज शाम को लगा दिया करो. मै अब यहीं रहूंगी’। एचके मुखर्जी ने बताया कि इस प्रतिमा की खास बात ये है कि मिटटी, पुआल,बांस और सुतली से बनी ये मूर्ति इतने वर्षों बाद भी वैसी ही आज भी यथावत है।

नवरात्र में मां की महिमा सुनकर लोग दूर-दूर से दर्शन को आते हैं। श्रद्धालु बताते है कि मां की ऐसी प्रतिमा आज तक उन्होंने नहीं देखी। श्रद्धालु बताते हैं कि बाप-दादाओ से मां के चमत्कार के बारे में सुना है। देश की यह अदभुत प्रतिमा है जो आजतक विसर्जित नहीं हुई है। श्रद्धालुओं का मानना है कि जो भी यहां आता है मां उसकी मुराद जरूर पूरी करती हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि जो भी शख्स इतनी पुरानी दुर्गा प्रतिमा के बारे में सुनता है वह एक बार दर्शन के लिए आए बगैर रह नहीं पाता। ये मां की महिमा ही है कि मिटटी से बनी ये प्रतिमा आज भी बिलकुल वैसी ही है जैसे की 250 साल पहले थी।
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