बता दें कि गत 26 नवंबर को प्रो जीसी त्रीपाठी के कार्यकाल का अवसान हो गया। सितंबर में छात्राओं पर लाठीचार्ज के बाद विवाद के घेरे में आने के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा कार्यकाल समाप्ति तक छुट्टी पर भेजे गए प्रो त्रिपाठी ने 26 नवंबर को विश्वविद्यालय के कुछ लोगों द्वारा आयोजित विदायी समारोह में बयान दे दिया कि उन्होंने कुछ मजबूरी में अयोग्य लोगोगं की नियुक्ति करनी पड़ी। उनका यह बयान देखते ही देखते वायरल हो गया। इस पर सबसे पहले कांग्रेस के पूर्व विधायक अजय राय ने हमला बोला तो एनएसयूआई के जिला प्रभारी विकास सिंह ने एमएचआरडी और यूजीसी को पत्र भेज कर प्रो त्रिपाठी के कार्यकाल में हुई नियुक्तियों को रद्द करने की मांग की।
विकास सिंह ने बुधवार को पुनः पहल करते हुए जन सूचना अधिकार के तहत विश्वविद्यालय से 27 नवबर 2014 से 26 नवबर 2017 तक हुई नियुक्तियों का रिकार्ड मांग लिया है। उन्होंने अपने आवेदन में लिखा है कि 26 नवंबर 2014 से 27 नवंबर 2017 तक रिक्त पदों पर हुई स्थाई नियुक्तियों का विवरण उपलब्ध कराएं। इतना नहीं उन्होंने जिनकी नियुक्ति हुई है उनके नाम व पते के साथ योग्यता संबंधी जानकारी भी मांगी है। साथ ही 27 नवंबर 2014 से 26 नवंबर 2017 तक के कुल रिक्त पदों की संख्या व उन पदों पर उम्मीदवारी के लिए आवश्यक योग्यता के बाबत भी जानकारी चाही है।
कुलपति के कार्यकाल के हर फैसले की हो सीबीआई जांच
इस बीच आम आदमी पार्टी के पूर्वांचल प्रभार संजीव सिंह ने बयान जारी कर कहा है कि तत्कालीन कुलपति के बयान से स्पष्ट हो गया कि इनके पीछे छिपा कोई और कुलपति था जो सभी कामकाज में हस्तक्षेपकर रहा था। ये सिर्फ रबर स्टाम्प थे। ऐसी स्थिति में कुलपति के पूरे कार्यकाल का हर फैसला जांच के दायरे में आ जाता है। उसमें गैरमानक की दवाओं की आपूर्ति जिससे निर्दोष मरीजों की आँख की रोशनी ‘ अखफोङवा’ कांड के तहत चली गई या आक्सीजन के नाम पर औद्योगिक नाइट्रस आक्साइड गैस की आपूर्ति हो। इनके गलत फैसलों के कारण दर्जनों जानें गई और कितने ही लोग विकलांग हो गए। वहीं नियुक्तिओ के मामले में देखा जाय तो विभिन्न संकायों में योग्य लोगों की अनदेखी कर अयोग्य या मानक को न पूरा करने वाले लोगों की नियुक्ति लेक्चरर के रूप में कर दी गई। सिंह ने सरसुंदर लाल चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक ङा ओ.पी .उपाध्याय की नियुक्ति पर भी सवाल उठाया है। साथ ही कहा कि छेड़खानी का विरोध करनें वाली अपने ही छात्राओं पर आधी रात को लाठीचार्ज कराकर उन्हें पिटवाना, कुलपति जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति की गैरजिम्मेदारी साफ दिखी। ये कृत्य देश और विदेश में अपनी अलग पहचान रखने वाले बी.एच.यू. विश्वविद्यालय के कुलपति की है जो किसी भी दशा में क्षम्य नहीं हो सकती। इस तरह के अक्षम लोग कुलपति होंगे तो किस तरह के मेधावी संस्थानों से निकलेंगे समझा जा सकता है।