2014 में यूपी की राजनीति में तेजी से आई इस पार्टी ने काफी हंगामा खड़ा किया था। जनता से जुड़े हर मुद्दे पर पार्टी के कार्यकर्ता और नेता सड़क पर संघर्ष करते नजर आते रहे। लेकिन जिस तेजी से इस पार्टी ने अपना परचम लहराया था उसी तेजी से यूपी के सियासी सेनियरियो से इसका नाम मद्धिम पड़ता गया। ग्राफ लगातार नीचे गिरने लगा। हालांकि पार्टी के शीर्ष नेताओं ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भी काफी हद तक सरगर्मी दिखाई थी पर ऐन वक्त पर पांव पीछे खींच लिए। ऐसे में पार्टी के जन्म से जुड़े कुछ नेताओं ने पार्टी से किनारा भी कर लिया। ऐसे लोगों ने पार्टी नेतृत्व पर काफी आरोप भी लगाए थे। काफी भला बुरा भी कहा था। लेकिन उन सब को दरकिनार कर पार्टी ने पूरी मजबूती के साथ फिर से पूरे दमखम के साथ खड़ा होने की तैयारी कर ली है।
बात हो रही है अन्ना आंदोलन से जुड़ी आम आदमी पार्टी का। आम आदमी पार्टी जिसने एक आंदोलन से सक्रिय राजनीति में कदम रखा। पार्टी के मुखिया, ने यूपी ही नहीं बल्कि वाराणसी की सियासत को काफी गर्म कर दिया जब वह 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया। वह तकरीबन महीने भर यहीं बनारस में डटे रहे। यह दीगर है कि वह चुनाव हार गए, बावजूद इसके आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने तब 2,09,238 मत हासिल किए थे। उस चुनाव में पार्टी ने पूर्वांचल के लगभग हर जिले में अपना प्रत्याशी मैदान में उतारा था।
आम आदमी पार्टी के जिलाध्यक्ष मुकेश सिंह ने पत्रिका से खास बातचीत में बताया कि पार्टी नेतृत्व ने अब पूरू संजीदगी के साथ यूपी की राजनीति में हलचल मचाने की तैयारी कर ली है। 15 सितंबर से ही पार्टी बड़े पैमाने पर सदस्यता अभियान चलाने जा रही है। इसके तहत हर विधानसभा क्षेत्र में 25 हजार सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा गया है। यही नहीं पार्टी नेतृत्व ने तय किया है कि अब हर चुनाव पूरी मुस्तैदी से लड़ेगी। इसकी शुरूआत पंचायत चुनाव से होगी। उसके बाद 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी पार्टी पूरी मजबूती से मैदान में उतरेगी।
इसी के तहत पार्टी ने प्रदेश के 40-45 जिलों में बिजली दरों में वृद्धि के खिलाफ गर्मजोशी के साथ आंदोलन किया। अब इस तरह के जनहित के मुद्दे और यूपी सरकार की जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध पार्टी पूरे जोर-शोर से सड़क पर उतरेगी।