वाराणसी

जर्मन वैज्ञानिकों का शोध झूठा साबित, भारतीयों में मौजूद Ace-2 जीन बना कोरोना से बचाने वाला कवच

बीएचयू समेत भारतीय वैज्ञानिकों के शोध में यह बात सामने आई है कि निएंडरथल मानव का डीएनए सेगमेंट भारतीयों व दक्षिण एशिया से ज्यादा यूरोपीय लोगों में होने से वहां कोरोना से ज्यादा मौतें हुईं।

वाराणसीJun 16, 2021 / 05:59 pm

रफतउद्दीन फरीद

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

वाराणसी. जर्मन वैज्ञानिकों के एक शोध में ये दावा किया गया था कि भारतीयों में निएंडरथल मानव के जीन्स हैं। जिसके चलते यहां कोरोना से तबाही ज्यादा होगी। हालांकि अब भारतीय वैज्ञानिकों के शोध में जर्मन वैज्ञानिकों का दावा झूठा साबित हुआ है। भारतीय वैज्ञानिकों के शोध में ये बात सामने आई है कि निएंडरथल मानव के डीएनए सेगमेंट भारत समेत दक्षिण एशिया में कम, जबकि यूरोपीय लोगों में ज्यादा पाया जाता है। यही वजह है कि कोरोना ने वहां ज्यादा तबाही मचाई थी।


जर्मन वैज्ञानिकों के शोध को गलत साबित करने वाले इस शोध में बीएचयू के आईएमएस के अलावा सीसीएमबी हैदराबाद, सीएसआईआर और बंग्लादेश सहित देशों के भी कुछ वैज्ञानिक शामिल थे। अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हो चुके इस शोध में वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि निएंडरथल मानव के डीएनए का असर भारत व दक्षिण एशिया में कम बल्कि यूरोप में ज्यादा है। यही वजह रही कि भारत, बंग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे दक्षिण एशियाईदेशों में कोरोना से बीमार पड़ने वाले तुलनात्मक रूप से यूरोपीय देशों से कम हैं।


भारतीयों में है कोरोना से बचाने वाला एस-2 जीन

बीएचयू समेत भारतीय वैज्ञानिकों के शोध में ये बात सामने आई है कि भारत समेत दूसरे दक्षिण एशियाई देशों के लोगों के शरीर में एस-2जीन मौजूद है, जिसका सुरक्षा कवच कोरोना वायरस से बचाता है। कोरोना से बचाने वाला यह जीन दक्षिण एशिया के 60 प्रतिशत में जबकि यूरोप के सिर्फ 20 प्रतिशत लोगों में है। शोध दल के सदस्य बीएचयू के जीव विज्ञान के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे के अनुसार निएंडरथल मानव का अस्तित्व करीब 40 हजार साल पहले अचानक खत्म हो गया था। उनमें पाया जाने वाला जीन एस-2 कोविड से लड़ने में गेटवे का काम करता है। यह यूरोप की तुलना में भारत और बंग्लादेश के लोगों में ज्यादा प्रतिशत दिखा। यही वजह रही कि प्रति 10 लाख लोगों पर मौतों के आंकड़े वहां दो हजार जबकि भारत में ये आंकड़ा 87 मौतों का है। प्रो. चौबे बताते हैं कि जर्मन वैज्ञानिकों की रिपोर्ट से उन लोगों की रिपोर्ट बिल्कुल अलग है। जमीनी हकीकत ये है कि यूरोप की तुलना में दक्षिण एशिया के लोग कम मरे हैं।


जर्मन वैज्ञानिकों ने क्या दावा किया था

दरअसल बीते साल कोरोना वायरस महामारी फैलने के बाद नेचर पत्रिका में छपे जर्मन वैज्ञानिकों के एक शोध में दावा किया गया था कि भारत और बंग्लादेश के लोगों में निएंडरथल मानव से डीएनए सेगमेंट आया है। इसी के चलते वहां लोग कोरोना संक्रमित हो रहे हैं और मौतें हो रही हैं। तब दावा किया गया था कि ये डीएनए सेगमेंट दक्षिण एशियाई लोगों में 60 प्रतिशत जबकि यूरोपीय लोगो में महज 16 प्रतिशत पाया जाता है। इसी के आधार पर यह अनुमान लगाया गया था कि भारत, बंग्लादेश दक्षिण एशिया में कोरोना से अधिक मौतें होंगी।

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