बता दें कि बसपा प्रमुख मायावती तो काफी पहले से कांग्रेस से गंठबंधन की मुखालफत करती रही हैं। करीब दो महीना पहले उन्होंने साफ-साफ कह दिया था कि कांग्रेस के साथ उनका कोई गठबंधन नहीं होगा। लेकिन समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव कांग्रेस को लेकर काफी पाजिटिव नजर आ रहे थे। वह 2017 की दोस्ती को कायम रखना चाहते रहे हैं। हां, जब मायावती ने सीटों को लेकर कांग्रेस से दूरी बनाने की बात की थी तब भी अखिलेश ने यही कहा था कि कांग्रेस बड़ी पार्टी है और उसे बड़ा मन बनाना चाहिए। लेकिन दोस्ती में बिखराव के संकेत अब तक नहीं दिए थे।
लेकिन छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के सिलसिले में प्रचार को पाली तानाखार पहुंचे अखिलेश ने कांग्रेस को लेकर जो बयान दिया है उससे साफ है कि वह कांग्रेस नेतृत्व से खासे नाराज है। वजह चाहे जो हो पर, देश की आर्थिक नीतियों को लेकर जो सपा प्रमुख ने बयान दिया कि, ”भाजपा-कांग्रेस मिले हुए”। उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी की बातों को ही रखते हुए यहां तक कहा कि नक्सलियों से उतना खतरा नहीं जितना शहरी नक्सलियों से है। उन्होंने कहा कि शहरी नक्सली देश में जातीय व धार्मिक भेदभाव की बात करते हैं। उनका विकास से कोई लेना-देना नहीं। ये लोग देश को बांटने में लगे है। उन्होंने कहा कि बैंक में जमा पैसा देश के उद्योगपति लूट कर देश से बाहर चले गए। इनको पहले कांग्रेस ने पैसा दिया फिर भाजपा सरकार ने देश से भागने का मौका दे दिया। बता दें कि छत्तीसगढ़ में सपा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ रही है।
ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अखिलेश का ताजा बयान हू ब हू प्रधानमंत्री जैसा है, पीएम ने भी छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस पर हमला करते हुए उन्हें शहरी नक्सली करार दिया था। ऐसे में अखिलेश का यह बयान फिर अर्थव्यवस्था को लेकर भाजपा से तुलना करना और यह कहना कि दोनों मिले हुए हैं। ये संकेत करता है कि दोस्ती में कहीं न कहीं खटास जरूर आई है। अगर ऐसा है तो इसका परिणाम ग्रैंड एलाएंस पर पड़ना तय है। यानी कम से कम यूपी में तो सपा-बसपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन की संभावना नहीं ही बन रही है। ऐसे में अगर महागठबंधन नहीं बनता है तो इससे जहां कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है तो सपा-बसपा को भी बहुत लाभ नहीं मिलने वाला और इसका फायदा कहीं न कहीं बीजेपी को ही मिलेगा।