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सपा सुप्रीमों अखिलेश के इस बयान से महागठबंधन को लग सकता है जोर का झटका

locationवाराणसीPublished: May 21, 2018 01:16:31 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

बुआ बबुआ के रिश्ते में आ सकती है खटास। अखिलेश राहुल की दोस्ती पर भी खतरे की आशंका।

अखिलेश माया राहुल

अखिलेश माया राहुल

वाराणसी. पीएम नरेंद्र मोदी से 2019 के लोकसभा चुनाव में पार पाना विपक्ष के लिए आसान नहीं है। हालांकि इसके लिए अभी से विपक्ष की तैयारियां तेज हैं। महागठबंधन का एक फार्मूला बिहार में भले ही फेल हुआ हो (नीतीश के एनडीए से जुड़ने के बाद) लेकिन इसके सिवाय और कोई चारा भी नहीं है। वैसे इसी फार्मूले को चुनाव पूर्व न मानने का नतीजा रहा कि कर्नाटक में कांग्रेस को मात खानी पड़ी। लेकिन देर सबेर उसे गठबंधन के फार्मूले पर ही लौटना पड़ा। आखिर बीजेपी को सत्ता से दूर करने के लिए जेडीएस से हाथ मिलाना ही पड़। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि चुनाव पूर्व कांग्रेस अगर जेडीएस से हाथ मिलाती तो नतीजे और बेहतर होते। यानी कुल मिलाकर विपक्ष के पास एकजुट होना ही एक मात्र विकल्प है। लेकिन इस महागठबंधन का नेतृत्व कौन करेगा, यह यक्ष प्रश्न है।
साझा विपक्ष या महागठबंधन के नेतृत्व को लेकर अभी तक कुछ भी साफ नहीं है। कभी मायावती का नाम उछलता है तो कभी राहुल खुद को पीएम का दावेदार बता कर लोगों को चौंका देते है। बीजेपी तो राहुल के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में दिए खुद के पीएम के दावेदार वाले बयान को मजाक में ही उड़ा ले गई। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले ही कह चुके हैं कि 2019 के लिए विपक्ष के पास पीएम मोदी की काट नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि अगर साझा विपक्ष 2019 में बहुमत पा भी लेता है तो मुख्य लड़ाई पीएम पद को लेकर होनी तय है। आखिर कौन होगा पीएम?
आखिर कौन होगा पीएम के सवाल का जवाब सपा सुप्रीमों अखिलेश ने दिया है। उनका कहना है कि महागठबंधन के नेता मुलायम सिंह यादव हो सकते हैं। अखिलेश का यह बयान पार्टी के भीतर के उन लोगों के लिए तो मुफीद हो सकता है जो मुलायम सिंह के समर्थक हैं। शिवपाल और उनके साथियों को भी यह अच्छा लग सकता है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मत है कि यह बयान अखिलेश के लिए संकट पैदा कर सकता है। हाल ही में उन्होंने जो बसपा से नाता जोड़ा है वह खतरे में पड़ सकता है। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि मायावती ने अखिलेश को तो स्वीकार कर लिया पर मुलायम और माया के गठबंधन की कल्पना नहीं की जा सकती। वैसे राजनीति में कुछ भी संभव है लेकिन इसकी उम्मीदें कम ही हैं। वैसे भी मायावती खुद पीएम पद की दावेदार हैं। सियासी शतरंजी चाल में माया अपने हर प्यादे को उसी हिसाब से आगे बढ़ा रही हैं ऐसे में मुलायम के रूप में एक प्रबल प्रतिद्वंद्वी को वह कतई स्वीकार नहीं करेंगी।
जहां तक सवाला कांग्रेस का है तो न कांग्रेस मुलायम को पचा पाएगी न मुलायम कांग्रेस को। दोनों के बीच पहले से ही 36 के आंकड़े हैं। मुलायम खुद कई बार कांग्रेस से गठबंधन की मुखालफत कर चुके हैं। ऐसे में राहुल गांधी और अखिलेश की दोस्ती पर भी विराम लग सकता है। मुलायम को पीएम के रूप में ममता बनर्जी भी स्वीकार नहीं करेंगी। जेडीएस भी इसके पक्ष में शायद ही आए। मुलायम के नाम पर कोई राजी हो सकता है तो वे हैं वाम दल। वाम दलों का मुलायम से पहले भी ठीक ठाक रिश्ता रहा है। लेकिन वो भी पीएम के रूप में उन्हें स्वीकार करेंगे यह अभी कह पाना मुश्किल है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश का यह दांव गठबंधन को तोड़ने वाला ही होगा।वैसे राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2019 आम चुनाव तक गठबंधन के नेतृत्व का नाम तय नहीं होगा। इसी तरह से नाम उछलते रहेंगे। यह भी एक रणनीति का हिस्सा है। ताकि बीजेपी को इसकी भनक तक न लग सके कि गठबंधन का नेता कौन होगा। कारण साफ है, बीजेपी अभी से ही प्रबल प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को सेनिरियो से बाहर करने के लिए मोदी बनाम राहुल कार्ड खेल रही है। राहुल गांधी कुछ भी कर लें पर मोदी के करिश्माई चेहरे को वह मात नहीं दे पा रहे हैं। ऐसे ही गठबंधन जैसे ही कोई नेता प्रपोज करेगा बीजेपी उसे भी सियासी हाशिये पर लाने की कोशिश में जुट जाएगी और 2019 में सीधे सीधे मोदी बनाम नेता गठबंधन हो जाएगा। ऐसे में महागठबंधन अभी किसी नाम को उजागर नहीं करने वाला। राजनीतिक विश्लेषक कहते है कि अखिलेश का मुलायम को नेता घोषित करना भी एक सियासी चाल ही है।
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