कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि जेल में कैद पीड़िता को पौष्टिक आहार दिया जाए ताकि वह स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सके। यह आदेश न्यायमूर्ति तरूण अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति अजय भनोट की खण्डपीठ ने गीता देवी की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। याची को आपराधिक मामले में 12 जून 2017 को गिरफ्तार किया गया। 25 जुलाई 17 को चार्जशीट दाखिल की गयी है। जिस पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने संज्ञान भी ले लिया है। 20 मई 2017 को जबरन पकड़ कर उसके साथ दुराचार किया गया था। जिसकी पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की। जेल में गर्भ का पता चला तो जेल अधीक्षक के मार्फत जुलाई 17 में सीजेएम इलाहाबाद की अदालत में अनचाहा गर्भ गिराने की अनुमति की अर्जी दाखिल की गयी, जिसे मजिस्ट्रेट ने 17 अगस्त 2017 को खारिज कर दिया। इसके बाद यह याचिका दाखिल की गयी थी।
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कोर्ट ने बारह अक्टूबर को सीएमओ की अध्यक्षता में डॉक्टरों की कमेटी गठित कर मेडिकल रिपोर्ट मांगी। मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेगनेन्सी एक्ट 1971 के तहत कमेटी गठित कर राय मांगी गयी। कमेटी ने रिपोर्ट दी कि 22 हफ्ते के गर्भ को गिराने की अनुमति नहीं दी जा सकती साथ ही यह कहा कि स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल में ही ऑपरेशन किया जा सकता है। इसके बाद कोर्ट ने स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल इलाहाबाद के डॉक्टरों की कमेटी गठित कर रिपोर्ट मांगी। डाक्टरों ने रिपोर्ट दी कि गर्भ कायम रहता है तो पीड़िता के जीवन को कोई खतरा नहीं है। 24 हफ्ते के भ्रूण में शारीरिक रूप से कोई अक्षमता नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यदि बच्चे के जन्म से महिला को कोई नुकसान नहीं है तो गर्भ गिराने की अनुमति नहीं दी जा सकती। यदि गर्भ बने रहने से मानसिक या शारीरिक नुकसान और बच्चा विकलांग पैदा होने की संभावना हो तो ही गर्भ गिराने की अनुमति दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के जीवन को खतरा नहीं है और बच्चा भी स्वस्थ है। ऐसे में गर्भ गिराने की अनुमति नहीं दी जा सकती।