चन्द्रिका एवं कई अन्य की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस डी बी भोसले एवं जस्टिस एम के गुप्ता की खंडपीठ सुनवाई कर रही है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सरकार ने ढाब क्षेत्र के रामचन्दीपुर गांव में बालू खनन की अनुमति दे दी है। इससे वहां का पर्यावरण संतुलन बिगड़ जायेगा और ग्रामीणों को नुकसान होगा। कोर्ट ने इस पर प्रदेश सरकार से आवश्यक जानकारी तलब की थी। अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रामानन्द पाण्डेय ने कोर्ट को बताया कि बालू खनन की अनुमति ढाब क्षेत्र में नहीं दी गयी, बल्कि जहां दी गयी है वह स्थान गंगा की तलहटी है और वहां गंगा की मुख्य धारा थी। बताया गया कि बालू इकट्ठा होने से गंगा वहां दो धाराओं में बंट गयी थी और अगर बालू वहां से निकाली जाती तो गंगा की मुख्य धारा प्रभावित होगी। कहा गया कि खनन से गंगा की धारा अपने मूल स्वरूप में आ जायेगी।
याची के अधिवक्ता एम डी सिंह शेखर का कहना था कि वर्ष 2013 में ढाब क्षेत्र में खनन पर रोक लगा दी थी। अब कोर्ट की अनुमति के बगैर खनन की अनुमति देना गलत है। अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रामानन्द पाण्डेय का कहना था कि कोर्ट का रोक सशर्त था और पर्यावरण तथा वन मंत्रालय की रिपोर्ट आने तक ही सीमित था। चूंकि रिपोर्ट आ गयी थी, इस कारण खनन की अनुमति का आदेश गलत नहीं है। कोर्ट ने केन्द्र के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से पूछा है कि वह 15 दिन में बताए कि खनन की अनुमति जहां दी गयी है वह ढाब क्षेत्र में है या नहीं और क्या वहां खनन से ढाब क्षेत्र के लोगों को फायदा होगा अथवा नुकसान?