वाराणसी. प्रदेश में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन का मामला काफी हद तक तय हो चुका है। पर्दे के पीछे से ये सारी कवायद प्रशांत कुमार की है। पीके की रणनीति को अब समाजवादी पार्टी भी स्वीकार कर चुकी है। भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक समाजवादी पार्टी, कांग्रेस को 88 सीट देने पर राजी हो गई है। इसके साथ ही ताजा समीकरण कुछ इस तरह बन रहे हैं, कांग्रेस 88, समाजवादी पार्टी 297 और रालोद 16, दो अन्य सीटें जेडीयू को मिलेंगी। सूत्रों का मानना है कि दोनों ही दल इस समीकरण पर राजी तो हैं पर चुनाव अधिसूचना जारी होने तक कोई इसकी पुष्टि करने को तैयार नहीं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह हैं। साझा विपक्ष भी जान रहा है कि जब तक गठबंधन की घोषणा नहीं हो जाती है सभी दावेदार एकजुट रहेंगे। वैसे तो अधिसूचना जारी होने के बाद भी प्रायः सभी दलों में भगदड़ मचेगी पर अधिसूचना से पहले गठबंधन की घोषणा पर भाजपा नेतृत्व चुनाव टलवा भी सकता है। ऐसे में विपक्ष की गणित फेल होने की आशंका को बल मिलेगा और पीएम नरेंद्र मोदी एंड पार्टी लाभ की स्थिति में होगी। लिहाजा अधिसूचनचा जारी होने तक कांग्रेस हो या सपा दोनों ही गठबंधन से इंकार करते रहेंगे।
कुछ सीटों पर फंसा है पेंट
अमेठी-गठबंधन लगभग तय हो चुका है। लेकिन सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस कुछ सीटों को लेकर पेंच फंसा रही है। खास तौर पर राहुल के गढ़ अमेठी और सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र की कुछ विधानसभा सीटें कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनो के लिए सिरदर्द बनी हैं। तो वाराणसी की दो सीट भी गठबंधन में रोड़ा अटका रही हैं। सूत्र बताते हैं कि गांधी परिवार का गढ़ माने जाने वाले अमेठी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस नेता संजय सिंह की पत्नी अमिता सिंह विधायक रही हैं, लेकिन इस वक्त वहां के विधायक सुर्खियों में रहने वाले यूपी के कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रजापति हैं, जो मुलायम के खासे करीबी बताए जाते हैं। ऐसे में समाजवादी पार्टी अमेठी की सीट अपने पास रखना चाहती है। इसके विपरीत कांग्रेस अमेठी और रायबरेली की सभी 10 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारना चाहती है। बताया जा रहा है कि इस रस्साकसी के बीच अमेठी के नेताओं ने गांधी परिवार से गुजारिश की है कि गायत्री प्रजापति को अमेठी के बजाय जिले की कोई और सीट के साथ अलग से एक सीट दी जाए।
रायबरेली-दूसरा पेंच रायबरेली की ऊंचाहार सीट को लेकर है। यूपी के कैबिनेट मंत्री मनोज पांडेय यहां से विधायक हैंष। मनोज अखिलेश के करीबी माने जाते हैं। इस सीट से कांग्रेस के प्रमुख नेता अजय पाल सिंह उर्फ राजा अरखा विधायक रहे हैं। हालांकि कांग्रेस ऊंचाहार पर ज्यादा जोर ना देते हुए अमेठी पर ही पूरा जोर लगा रही है.
वाराणसी-इधर पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में वाराणसी कैंट और शहर उत्तरी सीट पर भी कांग्रेस और सपा के बीच कशमकश बनी है। वाराणसी कैंट विधानसभा सीट इस समय भाजपा के पास है लेकिन 2012 के चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के अनिल श्रीवास्तव दूसरे नंबर पर थे और उन्हें 45 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। लिहाजा ये सीट कांग्रेस छोड़ना नहीं चाहती। पर इस बार सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने वाराणसी कैंट से रीबू श्रीवास्तव को टिकट दिया है। रीबू शिवपाल खेमे की उम्मीदवार है। ऐसे में शिवपालय यादव पर उनके समर्थकों का दबाव है कि रीबू का टिकट कतई न काटा जाए। इस बीच बलिया जाते समय जब मुलायम सिंह यादव बनारस आए थे तो बाबतपुर हवाई अड्डे पर रीबू मुलायम के पैरों पर गिर पड़ी थीं। वैसे वाराणसी कांग्रेस में चर्चा है कि इस सीट पर अगर पूर्व सांसद डॉ. राजेश मिश्र चुनाव मैदान में उतरें तो सपा रीबू को कुर्बान कर सकती है। इधर शहर उत्तरी से सपा उम्मीदवार हाजी अब्दुल समद का मामला भी पेंच फंसाए है। समद भी शिवपाल यादव के करीबी हैं। लेकिन कांग्रेस यहां से डॉ. राजेश मिश्र को उम्मीदवार बनाना चाहती है। ऐसे में जब तक हर सीट पर दोनों के बीच सहमति न बन जाए तब तक कांग्रेस नेतृत्व गठबधन से लगातार इंकरा करता रहेगा।
विलंब के पीछे ये भी है पेंच
कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि हारी हुई सीट ही सही, लेकिन समाजवादी पार्टी कांग्रेस की सीटों का आंकड़ा सौ तक पहुंचा दे, तो बेहतर होगा और कांग्रेस का सम्मान भी बना रहेगा। इसी माथापच्ची के बीच लगातार दोनों दलों में बातचीत आगे बढ़ रही है। वैसे सूत्रों की मानें तो कांग्रेस का एक तबका इस देरी के पीछे एक और कवायद को वजह मान रहा है। उनके मुताबिक, यूपी में गठबंधन के लिए पार्टी की पहली पसंद बसपा है। ऐसे में सपा से तालमेल में इस देरी के पीछे की रणनीति यह है कि मायावती को शायद यह अंदाजा हो जाए कि वह अकेले सरकार नहीं बना पा रही, तो कांग्रेस से समझौता कर लें।
कुछ कांग्रेसियों की पसंद बसपा
हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती फिलहाल किसी सूरत में कांग्रेस से तालमेल के लिए राजी नहीं। ऐसे में कांग्रेस अब समाजवादी पार्टी, आरएलडी और जेडीयू के साथ मिलकर यूपी में भाजपा और बसपा से टकराने की तैयारी में है। सूत्र बताते हैं कि अगर बसपा नहीं मानी और सपा के साथ सब कुछ ठीक रहा, तो यूपी में चुनाव की घोषणा होने के बाद गठबंधन की घोषणा भी कर दी जाएगी। लेकिन जब तक बातचीत फाइनल ना हो जाए कांग्रेस यही कहती रहेगी कि वह यूपी में अकेले चुनाव लड़ेगी।
एक पेंच यह भी है
गठबंधन में एक पेंच यह भी है कि कांग्रेस सीएम अखिलेश यादव को दरकिनार कर किसी गठबंधन के लिए राजी नहीं है। सूत्रों की मानें तो कहा तो यहां तक जा रहा है कि गठबंधन की पहल ही अखिलेश यादव को लेकर हुई है। लेकिन सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव को यह नागवार लग रहा है। पार्टी सूत्र बताते हैं उन्हें लग रहा है कि अखिलेश को ऊपर रख कर गठबंधन होने की सूरत में पूर्वांचल सहित पूरे प्रदेश में अखिलेश का प्रभाव बढ़ेगा जो शिवपाल के बेटे के राजनीतिक भविष्य के लिए घातक साबित हो सकता है।
इसीलिए कांग्रेसी दिग्गज लगातार गठबंधन पर बोलने से कतरा रहे
जैसे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर ने रविवार को कहा कि पार्टी प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ेगी। प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. राजेश मिश्र लगातार मीडिया से कह रहे हैं कि अभी गठबंधन पर कोई सहमति नहीं बनी है। लेकिन पीके, प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद की मुलायम सिहं यादव, शिवपाल यादव से वार्ता का दौर लगातार जारी है। इधर वाराणसी में कांग्रेस के मंडल प्रभारी दिग्विजय सिंह भी कार्यकर्तोओं संग कर रहे मंथन।