वाराणसी

अनोखी उपलब्धिः बीएचयू के अमलधारी सिंह ने 84 साल की उम्र में डीलिट की उपाधि हासिल कर बनाया विश्व कीर्तिमान

बीएचयू के अमलधारी सिंह ने 84 साल की उम्र में डीलिट की उपाधि हासिल कर विश्व कीर्तिमान बनाया है। इसे गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज कराया जाएगा। इनसे पहले केरल के वेल्लायाणी अर्जुनन ने अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से इसी तरह की उपाधि 82 साल की अवस्था में हासिल कर रिकार्ड बनाया था जिसे डॉ मलधारी सिंह ने तोड़ दिया है। डॉ सिंह को 1963 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के हाथों बेस्ट ट्रेनर का अवार्ड मिला था।

वाराणसीJun 25, 2022 / 10:48 am

Ajay Chaturvedi

बीएचयू के कला संकाय सभागार में डिग्री संग सम्मानित करते बीएचयू के प्रोफेसर,डॉ अमलधारी सिंह अपने गाइड व शिष्य डॉ उमेश सिंह के साथ,बीएचयू के कला संकाय सभागार में डिग्री संग सम्मानित करते बीएचयू के प्रोफेसर

वाराणसी. सर्व विद्या की राजधानी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र डॉ अमलधारी सिंह के एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। इस उपलब्धि के साथ ही वो दुनिया के सबसे उम्रदराज छात्र हो गए हैं जिन्होंने 84 साल की उम्र में डीलिट की उपाधि हासिल की है। उन्होंने अपने ही देश भारत के केरल के वेल्लायाणी अर्जुनन के रिकार्ड को तोड़ा है। इतना ही नहीं डॉ सिंह ने अपने ही शिष्य के अंडर में ये उपलब्धि हासिल की है। यहां ये भी बता दें कि डॉ सिंह को 59 साल पहले देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के हाथों बेस्ट ट्रेनर का अवार्ड मिला था। अब डॉ सिंह की ये उपलब्धि गिनिज बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज होगी।
फरवरी 2021 में 83 साल की उम्र में डीलिट के लिए कराया था रजिस्ट्रेशन

डॉ. अमलधारी सिंह ने 18 फरवरी 2021 को 83 साल की उम्र में डी-लिट् करने के लिए बीएचयू के संस्कृत विभाग में रजिस्ट्रेशन कराया था। उनकी थीसीस ऋग्वेद पर आधारित है जिसमें प्लेगरिज्म शून्य रहा, यानी थीसिस पूर्णंतया मौलिक थी। डी. लिट की उपाधि मिलने के बाद कला संकाय के डीन प्रोफेसर विजय प्रताप सिंह ने कहा कि दुनिया में अब कोई ऐसा विश्वविद्यालय नहीं जहां पर 84 साल की उम्र में किसी ने यह उपाधि हासिल की है। ऐसे में जल्द ही गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड के लिए आवेदन दिया जाएगा। इससे पहले 2015 में केरल के 82 साल वेल्लायाणी अर्जुनन को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की ओर से डी. लिट की उपाधि प्रदान की गई थी। लिहाजा ये रिकार्ड अब तक अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के नाम रहा।
अपने ही शिष्य के अंडर में जमा की थीसिस

डॉ. अमलधारी सिंह ने संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो. उमेश सिंह के अंडर में डी. लिट की उपाधि हासिल की है। इन दोनों हस्तियों से जुड़ी एक रोचक बात ये है कि डॉ उमेश सिंह, डॉ अमलधारी सिंह के शिष्य भी रहे और प्रतिस्पर्धी भी। अब दोनों के बीच गुरु-शिष्य का रिश्ता भी कायम हो गया है।
भारतीय सेना में दे चुके हैं अपनी सेवा
शुरूआती पढाई के बाद डॉ अमलधारी सिंह ने आर्मी ज्वाइन कर ली थी। तब 1963 में देश के पहले प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरू के हाथों उन्हें बेस्ट ट्रेनर का अवार्ड भी मिला था।
जब डॉ अमलधारी अपने शिष्य डॉ उमेश के लिए टीचिंग जॉब छोड़ी

आर्मी से ट्रेनिंग ऑफिसर की नौकरी पूरी करने के बाद डॉ. अलमधारी सिंह पुनः अध्यापन के क्षेत्र में सेवा देने का रुख किया। यहां भी एक रोचक प्रसंग आता है कि शिक्षक बनने के लिए डॉ अमलधारी सिंह और डॉ उमेश सिंह एक साथ साक्षात्कार के लिए गए। दोनों ने प्रतिस्पर्धी के रूप में साक्षात्कार दिया। इसमें डॉ. अमलधारी सिंह का चयन हो गया जबकि डॉ. उमेश सिंह का नाम प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया। लेकिन यहां अपने शिष्य के लिए डॉ अमलधारी सिंह ने अपना नाम वापस ले लिया जिसके चलते वो टीचिंग जॉब उनके शिष्य डॉ. उमेश को मिल गई।
योग सूत्र 1969 में आई थी डॉ सिंह की पहली पुस्तक
डॉ अमलधारी सिंह की पहली पुस्तक योग सूत्र पर आधारित थी जो 1969 में प्रकाशित हुई। उसके बाद सांख्य दर्शन, कालीदास का प्रकाशन हुआ।
डॉ.अमलधारी सिंह का ऐसा रहा कैरियर
-इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मिलिट्री साइंस, संस्कृत और अंग्रेजी में स्नातक
-बीएचयू से संस्कृत और दर्शनशास्त्र में मास्टर डिग्री
-बीएचयू से ही सांख्य योग और शुद्धाद्वैत वेदांत में आचार्य की उपाधि
-1966 में बीएचयू से ‘कालिदास ए क्रिटिक स्टडी’ विषय पर की पीएचडी
-जोधपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में अध्यापक रहे
-अलवर नरेश के अनुरोध पर उनके निजी पुस्तकालय में रखी ऋग्वेद की पांडुलिपियों का अध्ययन किया
-1967 में आर्मी ज्वाइन किया
-जून 1978 में रायबरेली के बैसवारा कॉलेज के प्राचार्य बने
-1983 में बीएचयू के संस्कृत विभाग में बतौर प्रवक्ता चुने गए।
डॉ सिंह मूलतः जौनपुर के हैं निवासी

डॉ. अमलधारी सिंह का जन्म जौनपुर के केराकत स्थित कोहारी गांव में 22 जुलाई, 1938 को हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा जौनपुर में ही पूरी की फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि हासिल की। बीएचयू से 1962 में एमए और 1966 में पीएचडी उपाधि अर्जित की। बीएचयू से ही एनसीसी के वारंट ऑफिसर और ट्रेनिंग अफसर से लेकर आर्मी तक का सफर पूरा किया। चीन से हुए युद्ध के बाद उन्हें 13 जनवरी 1963 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के हाथों बेस्ट ट्रेनर का अवार्ड मिला था।

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