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स्वामी सानंद के बाद आत्मबोधानंद के जलत्याग ऐलान पर समाजसेवियो-संतों में उबाल, कहा कुछ भी हुआ तो सरकार होगी जिम्मेदार

locationवाराणसीPublished: May 04, 2019 05:42:18 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

24 अक्टूबर से हरिद्वार के मातृसदन में अनशन पर हैं आत्मबोधानंद, अब रविवार से जल त्याग का किया ऐलान।

गंगा की दुर्दशा पर संगोष्ठी

गंगा की दुर्दशा पर संगोष्ठी

वाराणसी. जल वैज्ञानिक स्वामीज्ञान स्वरूप सानंद के बाद गंगा के निर्मलीकरण और अविरलता के लिए 193 दिन से हरिद्वार के मातृसदन में अनशन पर बैठे स्वामी आत्मबोधानंद के रविवार से जलत्याग की घोषणा ने वाराणसी के संतों में उबाल है। संत ही नहीं गंगा की स्वच्छता के लिए मुहिम चलाने वाली समाजिक संस्थाओं के लोग भी गुस्से में हैं। सभी ने एक स्वर से कहा है कि अब अगर आत्मबोधानंद को कुछ हुआ तो उसके लिए वो केंद्र सरकार को ही जिम्मेदार मानेंगे। संतों और समाजसेवियों ने केंद्र सरकार पर गंगा के लिए जान न्योछावर करने वाले संतों की उपेक्षा करने और उनकी बातों को नजरंदाज करने का आरोप लगाया। कहा कि ऐसे लोगों को कतई वोट नहीं देना चाहिए। यही नहीं यह भी ऐलान किया गया कि गंगा और साधुओं क दुर्दशा के खिलाफ मई के अंत में काशी से अभियान चलाया जाएगा।
मां गंगा की त्रासदी : जिम्मेदार कौन ? विषयक संगोष्ठी में शनिवार को वाराणसी ही नहीं देश भर के गंगा प्रेमियों की जुटान हुई। सभी ने गंगा की दुर्दशा के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उल्लेख करते हुए कहा कि 2014 में जब उन्होंने बनारस से चुनाव लड़ते हुए कहा कि, ‘मुझे मां गंगा ने बुलाया है’ तो लगा कि कोई ऐसा शासक आ रहा है जो गंगा के बारे में भी सोचता है। उन्होंने गंगा की स्वच्छता और अविरलता के लिए नमामि गंगे परियोजना शुरू की जिस पर 7,000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किया गया। लेकिन हुआ क्या, इनके ही राज में मां गंगा के साथ साधुओं की भी दुर्गति हो रही है।
कहा कि सरकार साधुओं की बात इसलिए नहीं सुन रही कि वह गंगा पर बांध बना कर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बना कर चार धाम परियोजना से नदी में जहाज चला कर अवैध खनन को संरक्षण दे कर पैसा कमाना चाह रही है। इसकी राजनेता, नौकरशाह, ठेकेदार व निजी कंपनियां मिलकर बंदरबाट करती हैं।
उन्होंने कहा कि पहले गंगा पुत्र, नदी वैज्ञानिक स्वामी सानंद उर्फ जीडी अग्रवाल ने गंगा के लिए अपनी जान दे दी। अब 193 दिन से अनशन पर बैठे स्वामी आत्मबोधानंद ने भी जल त्याग की घोषणा कर दी है। आत्मबोधानंद की मांग है कि गंगा को अविरल और निर्मल बहने दिया जाए। गंगा पर कोई बाध न बनाया जाए। शहरों का गंदा पानी व औद्योगिक कचरा नालियों के माध्यम से गंगा में न डाला जाए। गंगा में होने वाले अवैध खनन को रोका जाए। इन्हीं मांगों को लेकर पहले मातृ सदन के स्वामी निगमानंद 2011 में तथा स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद 2018 में अनशन करके अपने प्राण त्याग चुके थे।
आत्मबोधानंद की प्रमुख तीन मांगें

वर्तमान में ब्रह्मचारी आत्मोबोधानंद की न्यूनतम मांग है कि कम से कम तीन पन बिजली परियोजनाएं, मंदाकिनी पर सिंगरौली भटवाड़ी, अलकनंदा पर तपोवन विष्णुगाड व विष्णुगाड पीपलकोटी रद्द की जाएं और गंगा में खनन बंद हो।
उन्होंने बताया कि 1998 में स्वामी निगमानंद के साथ अवैध खनन के खिलाफ मातृ सदन की ओर से आयोजित पहले अनशन पर बैठे गोकुलानंद की 2003 में खनन माफिया ने हत्या करवा दी। फिर 2014 में वाराणसी में अनशन करते हुए बाबा नागनाथ ने प्राण त्यागे। पिछले साल 24 जून से बद्रीनाथ में गंगा के लिए अनशन पर बैठे संत गोपाल दास 06 दिसंबर से गायब थे जो अभी हाल ही में मिले है। उनका आरोप है कि सत्ताधारियों ने उनका अपहरण कराया था। ऐसे में अब सवाल उठता है कि भाजपा के शासनकाल में साधुओं की ऐसी दुर्दशा क्यों?
वक्ताओं ने कहा कि हम साधारण नागरिक गंगा को बचाने के लिए संकल्पबद्ध हैं। सरकार से मांग करते हैं कि तुरंत ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद से बात कर उनकी जितनी मांगें हैं उन्हें मान कर उनका अनशन समाप्त करा कर उनकी जान बचाए अन्यथा ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद को कुछ होता है तो स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद की मौत की तरह हम भाजपा सरकार को ही जिम्मेदार मानेंगे।
इस मौके पर ज्योतिष एवं शारदापीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य अविमुक्तेश्वरानंद ने गंगा और साधु-संतों की दुर्दशा और काशी में मंदिरों को तोड़े जाने के लिए भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए ऐसे लोगों को कदापि वोट न देने की अपील की। साथ ही कहा कि जो सनातन हिंदू अगर गंगा, साधु और मंदिरों को मानता है वह इन्हें कतई वोट नहीं देगा। अगर वह ऐसे लोगों को वोट देता है तो पाप का भागी होगा।
साझा संस्कृति मंच की इस संगोष्ठि को फादर आनंद, समाजसेवी और मेगसायसाय पुरस्कार से नवाजे जा चुके प्रो संदीप पांडेय, सुरेश प्रताप सिंह, नचिकेता देसाई, संजीव सिंह, प्रो सोमनाथ त्रिपाठी, समाजवादी चिंतक विजय नारायण, त्रिलोचन शास्त्री, बृज भूषण दुबे, राजेंद्र तिवारी, नंदलाल मास्टर, रवि शेखर, अनूप श्रमिक, राहुल सिंह, बल्लभाचार्य पांडेय, जहीर अहमद, प्रमोद माझी, हरिश्चंद बिंद, आनंद तिवारी आदि ने संबोधित किया। संचालन जागृति राही ने किया।

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