scriptभारतीय भाषाओं के समर्थन में अनशन 30 जनवरी को | Anshan in support of Indian languages On the 30th January | Patrika News

भारतीय भाषाओं के समर्थन में अनशन 30 जनवरी को

locationवाराणसीPublished: Jan 29, 2018 06:56:59 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

अंग्रेजी, देश के कमजोर तबके के युवाओं की प्रतिभा पर चोट है। अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव से पूंजीपतियों का वर्चस्व कायम हो रहा है।

भारतीय भाषाओँ के संरक्षण को अनशन

भारतीय भाषाओँ के संरक्षण को अनशन

वाराणसी. अंग्रेजी हटाओ ,भारतीय भाषा लाओ आयोजन समिति 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर अनशन पर बैठेगी। कार्यक्रम के संयोजक अफलातून देसाई ने कहा कि देश मे सरकार अंग्रेजी को थोप कर शिक्षा को लगातार केवल कुछ वर्गों तक सीमित करना चाहती है ,जबकि कोशिश यह होनी चाहिए कि भारत सरकार सरकारी कामकाज, न्यायपालिका एव शिक्षण संस्थाओं में देश के अन्य राज्यो की स्थानीय भाषा में कार्य करे ताकि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हो सके। कामकाज की कार्रवाई देश के आम नागरिकों की समझ मे स्पष्ट हो सके। उन्होंने कहा की कुछ लोग अंग्रेजी हटाओ आंदोलन को हिंदी आंदोलन से जोड़ रहे है। मगर यहां यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि अंग्रेजी हटाने का मतलब हिंदी थोपना नही बल्कि राज्यों की भाषाओं का सम्मान करते हुए उन राज्यो में स्थानीय भाषाओं को महत्व दिया जाए इसलिए हम भारतीय भाषा की बात कर रहे है।
प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजी का बर्चस्व क्यो ?

देश मे विभिन्न विभागों में नियुक्तियों के लिए आयोजित होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजी का वर्चस्व भारतीय भाषा के छात्रों को प्रतियोगिता से लगातार बाहर कर रहा है। इसके विपरीत सरकार लगातार अंग्रेजी को थोप रही है, जिससे ग्रामीण अंचल के छात्रों के पास मेधा रहते हुए भी अंग्रेजी की वजह से उनको प्रतिनिधित्व से बंचित किया जा रहा है जो कत्तई न्याय संगत नही है, क्योंकि अंग्रेजी पर मात्र पूंजीपतियों का कब्जा है। वे लगातार ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों को अवसरों से बंचित कर रहे है। इसका विरोध में वाराणसी के मैदागिन स्थित टाउनहाल पर प्रात: 10: 30 बजे से गांधी प्रतिमा के सामने अनशन करेंगे।
बता दें कि यह डॉ राम मनोहर लोहिया द्वारा चलाए गए अंग्रेजी हटाओ आंदोलन का स्वर्ण जयंती वर्ष है। डॉ लोहिया ने भी अंग्रेजी की मुखालफत की थी लेकिन उन्होंने केवल हिंदी की वकालत नहीं की थी। उन्होंने भी भारतीय भाषाओं की समृद्धि की बात की थी। उन्होने यहा तक लिखा है कि तत्कालीन सरकारें और सर्वोच्च सत्ता पर आसीन लोगों ने अपने वर्चस्व के लिए ही भारतीय भाषाओं को समुचित संरक्षण नहीं दिया। लेकिन जरूरत इस बात की है कि भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। अब डॉ लोहिया के शिष्यों ने उस आंदोलन को स्वर्ण जयंती वर्ष में फिर से आवाज देने की कोशिश शुरू की है। उसी के तहत यह अनशन महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर आयोजित किया गया है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो