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अब डराने लगा है काशी का विकास, मानकों की अनदेखी बन रही मौत का सबब, भविष्य सोच कर कांप उठती है रुह

locationवाराणसीPublished: May 16, 2018 03:57:10 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

जनता का सवाल- चौकाघाट फ्लाइओवर हादसे से कुछ सबक लेगा का शासन-प्रशासन।

फ्लाइओवर हादसा

फ्लाइओवर हादसा

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. अब तो बहुत डराने लगा है काशी का विकास। चौकाघाट फ्लाइओवर हादसे ने काशी की जनता के मन मिजाज में भय पैदा कर दिया है। लोगों का कहना है कि चाहे जितने विकास कार्य चल रहे हैं उनके कार्यों को देख कर तो सिहर उठता है शरीर। मंगलवार की घटना के बाद सोचने पर तो दिल दिमाग सुन्न सा हो जा रहा है। यह सोच सोच कर रुह कांप उठ रही है कि ये तो सतह के ऊपर का मामला था, जमीन के भीतर जो हुआ है या अभी जो हो रहा है, वह क्या मानक के अनुरूप है। कारण साफ है, यह तो एक-दो बीम गिरे तो सरकारी आंकड़ों के तहत 18 लोगों की मौत हुई। अगर जमीन के अंदर कुछ हुआ तो क्या होगा इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती।
बता दें कि 2019 लोकसभा चुनाव से पहले सत्ताधारी दल को जल्दी है विकास कार्यों की फेहरिस्त गिनाने की। यह जताने की कि उन्होंने तो काशी में विकास की गंगा बहा दी। लेकिन क्या ये सभी कार्य गुणवत्ता और मानक पर खरे हैं। चाहे वह आईपीडीएस का काम हो या ऊर्जा गंगा का। सदियों पुरानी काशी का भूमिगत नक्शा तक तो किसी के पास है नहीं। किसी को पुरानी सीवर लाइन, ट्ंक लाइन, ब्रांच लाइन का नक्शा भी नहीं। पेयजल की पाइप लाइन कहां कैसे जा रही है, कहां से कहां मुड़ रही है यह तक शायद ही किसी को पता हो। ऊपर से आईपीडीएस का काम तो सबसे जोखिम भरा है। खुद पावर ग्रिड के पास इसका नक्शा नहीं कि उन्होंने कैसे-कैसे, कहां-कहां बिजली के केबिल डाले हैं। किस जक्शन बॉक्स से कौन सा इलाका जुड़ा है यह शायद पता हो पर किस पेयजल पाइप लाइन से कौन सा बिजली का केबिल जोड़ दिया है या किस सीवर लाइन से केबिल जोड़ा है इसकी जानकारी उनके अधिकारियों के पास नहीं। यही नहीं आईपीडीएस के बाद गेल ने ऊर्जा गंगा योजना के तहत गैस पाइप लाइन भी डाल दी है। कई इलाकों में ऊर्जा गंगा योजना लागू भी हो गई है। ऐसे में काशी के लोग भयभीत हैं। उनका कहना है कि बिजली, गैस, पानी तीनों ही भूमिगत। तीनों का मिलन क्या कराएगा यह सोच कर दिल घबराने लगा है खास तौर पर मंगलवार के फ्लाइओवर हादसे के बाद। अरे यह तो चौकाघाट में फ्लाइओवर का बीम गिर गया। उधर मंडुवाडीह में जो आरओबी बना है, उसके उद्घाटन की इतनी जल्दी थी कि बगैर लोड टेस्टिंग के ही चालू कर दिया गया। बादे में बैरकेडिंग कर भारी वाहनों के आवागमन पर रोक लगा दी गई।
IPDS WORK
बता दें कि तकरीबन साल भर पहले ही पत्रिका ने इस आईपीडीएस के कामकाज पर सवाल उठाते हुए खबर प्रसारित की थी। तब आईपीडीएस के नोडल अधिकारी अनिल वर्मा से जब पत्रिका ने बात की तो उनका कहना था कि हम लोग ओपेन चेस्ट और ड्रिल के मार्फत भूमिगत केबिल डाल रहे हैं। ओपेन चेस्ट के तहत 33 केवी, 11 केवी और एलटी लाइन की केबिल डाली जा रही है। इसके लिए न्यूतम एक मीटर खोदाई करने का मानक तय है। इसके अलावा जहां ड्रिल के माध्यम से खोदाई हो रही है वहां 10 से 15 फीट की गहराई तक खोदाई की जा रही है। ये ड्रिलिंग का मानक है। उन्होंने कहा कि जहां कहीं से कोई दिक्कत या शिकायत सामने आ रही है उसे तत्काल प्राथमिकता के आधार पर दूर किया जा रहा है। उन्होंने बताया था कि फिलहाल पुरानी काशी में ही बिजली के तारों को भूमिगत करने की योजना पर काम चल रहा है। ये काम जनवरी 2017 में शुरू हुआ और जनवरी 2018 तक पूरा करना था लेकिन हाल ही में इसे सितंबर 2017 में ही पूरा करने का निर्देश मिला है। बताया कि वैसे हम लोगों ने 60 फीसदी काम पूरा कर लिया है। हालांकि यह काम मई 2018 तक पूरा नहीं हो सका है।
दरअसल तब आईपीडीएस के नोडल अधिकारी से बात करने की जरूरत इसलिए पड़ी कि कमच्छा तिराहे के पास करीब आठ फीट बगैर पाइप डाले जल निगम की ओर से टेस्टिंग शुरू करा दी गई थी, सप्लाई शुरू होते ही तेज गति से चारों ओर पानी फैलने लगा तो स्थानीय लोगों की सूचना पर आनन-फानन में टेस्टिंग रोकी गई। कुछ ही घंटों बाद जल निगम की ओर से खोदाई शुरू की गई। जैसे ही काम शुरू हुआ आइपीडीएस की कारगुजारियां देख जल निगम के अफसरों के होश उड़ गए। आइपीडीएस की मनमानी की हद तो तब दिखी जब बिना जल निगम को बताए पेयजल पाइपलाइन के ऊपर से ही केबिल डाला मिला। कई जगहों पर तो जल निगम की पाइप में आइपीडीएस के केबल के लिए वेल्डिंग तक करा डाली गई थी। यह तो संयोग ही रहा कि उस दौरान सप्लाई नहीं हो रही थी नहीं तो कई लोग हताहत हो सकते थे। इतना ही नहीं आईपीडीएस पिछली बारिश में कई कुत्तों और सांढ की जान ले ही चुका है।
आलम यह कि सामाजिक कार्यकर्ता धनंजय त्रिपाठी ने नारद घाट इलाके का किस्सा बताते हुए कहा कि पानी की पाइप लाइन लीक कर रही थी। जलनिगम व जलकल के कर्मचारियों को बुलाया, वो आए और देखते ही हाथ जोड़ लिया, कहने लगे कि हम यहां पर काम नहीं कर सकते। हमें अपनी जान प्यारी है। कारण आईपीडीएस के नंगे तार जमीन की सतह पर थे। गली में चौका पत्थर बिछा है और पत्थर के ठीक नीचे बिजली का केबिल। अब इसे देख कौन भला यहां काम करेगा।
इस मुद्दे पर जब संकट मोचन के महंत व आईआईटी बीएचयू में इलेक्ट्रानिक्स विभाग के प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र से बात की गई तो उन्होंने कहा कि ये बिजली के तार भूमिगत नहीं किए जा रहे बल्कि माइन्स बिछाई जा रही है। कब क्या होगा इसका अंदाजा भी लगा पाना मुश्किल है। वरिष्ठ समाजवादी नेता और एमएलसी शतरुद्र प्रकाश ने पत्रिका से बातचीत में कहा कि बिजली के तारों को भूमिगत किया जा रहा है या जमीन के अंदर बारूद बिछाई जा रही है। आईपीडीएस के पास न कोई नक्शा है, न काशी के भूमिगत स्थिति की सटीक जानकारी। कहीं कोई मुकम्मल योजना तक नहीं है। मानक कुछ भी तय नहीं हैं। तीन फीट तक की भी खोदाई नहीं हो रही है। ये बिजली नहीं आग की वायरिंग हो रही है जमीन के अंदर। अभी कुछ दिन पहले पानी की पाइप लाइन से कनेक्ट कर दिया गया था। अरे किसी बड़ी योजना पर काम करना था तो उससे पहले जीआईएस सर्वे करा लिया होता तो भूमिगत स्थिति का पता चल जाता। बस प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र उन्होंने कुछ कहा और शुरू हो गई खोदाई। ऐसे कहीं कोई काम होता है।
IPDS WORK
शतरुद्र प्रकाश ने बुधवार को पत्रिका से बातचीत में कहा कि क्या कहें, काशी तो ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठा है। यहां के बारे में क्या कहा जाए, कहीं कोई कुछ सुनने वाला हो तब तो। अब कल इतना बड़ा हादसा हुआ कि आसपास के सोनकर और रेलवे कालोनी में रहने वालों के घर हिल गए, मानों जोर का भूकंप आया हो। अरे छोटे से घर में कोई बीम डाली जाती है तो उसको सपोर्ट दिया जाता है। यहां क्या इसका खयाल रखा गया था। विकास की गंगा बहाने की बात करते हैं, जो गंगा हैं वही नहीं बचीं। गंगा में पैदल चलने की स्थिति बन गई है। अरे काशी मां गंगा और बाबा विश्वनाथ के नाम से ही जानी जाती है, गंगा सूख रही है बाबा विश्वनाथ के दरबार में तोड़-फोड़ हो रही है। बचा क्या। शेष जो ये काम करा रहे हैं उसके बारे में बस इतना ही कहा जा सकता है कि काशी को ज्वालामुखी के मुहाने पर रख दिया है। सोच कर शरीर कांप उठता है।

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