BHU का ऐसा कुलपति जिसकी सैलरी थी सिर्फ एक रुपये महीना
24 घंटे लाइब्रेरी सुविधा देने वाला भी छिन गया विद्यार्थियों से। DNA वैज्ञानिक डॉ लालजी का अंतिम संस्कार होगा वाराणसी में।

वाराणसी. भारत में ऐसे गिने चुने लोग हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश सेवा में लगा दिया। इसमें समाजसेवी लेकर राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद् और वैज्ञानिक रहे हैं। इन महान विभूतियों ने जिन महत्वपूर्ण पदों पर काम किया वेतन के नाम पर टोकन मनी के रूप में सिर्फ एक रुपये लिया। इसी में से एक थे जौनपुर के केलवारी गांव निवासी डीएनए फिंगर प्रिंट के जनक और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ लालजी सिंह। बताया जाता है कि वह तीन साल तक इस विश्वविद्यालय में कुलपति रहे पर वेतन के नाम पर सिर्फ टोकन मनी के नाम पर एक रुपये महीना ही लिया।
डॉ सिंह अगस्त 2011 से अगस्त 2014 तक बीएचयू के कुलपति रहे। हैदराबाद स्थित कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र के निदेशक पद पर भी उन्होने काम किया। वह देश के नामी जीवविज्ञानी रहे। सेक्स निर्धारण का आणविक आधार, डीएनए फिंगरप्रिंट, वन्य जीव संरक्षण, रेशमकीट जीनोम विश्लेषण, मानव जीनोम एवं प्राचीन डीएनए अध्ययन आदि उनके रुचिकिर विषय रहे। महज 45 वर्ष की अवस्था में उनके 230 शोध प्रबंध प्रकाशित हुए।
डॉ सिंह ने बीएचयू से बायो टेक्नॉलजी में मास्टर डिग्री हासिल की। वह गोल्ड मेडलिस्ट भी रहे। उन्होंने बीएचयू से ही पीएचडी की और एसोसिएट प्रोफेसर बने। कोलकाता विश्वविद्यालय व लंदन जाकर डीएनए फिंगर प्रिंट पर शोध किया। देश के न्यायालयों में फिंगर प्रिंट को मान्यता दिलाई। दस वर्षों तक विदेश में काम करने के बाद लौटे तो हैदराबाद में सीडीएफडी के कार्यकारी निदेशक बने। अपनी जन्मस्थली कलवारी जौनपुर में जीनोम फाउंडेशन की स्थापना की। देश के अत्याधुनिक उपकरणों से लैस 360 बेड वाला बीएचयू का ट्रामा सेंटर आप के ही कार्यकाल में बना। डॉ सिंह का ड्रीम प्रोजेक्ट था बोनमैरो ट्रांसप्लांटेशन की सुविधा प्रदान करना जो आज ट्राम सेंटर परिसर में है।
ये डॉ लालजी सिंह ही थे जिन्होंने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियो के लिए 24 घंटे साइबर लाइब्रेरी की सुविधा मुहैया कराई। जिस सुविधा को उनके उत्तराधिकारी प्रो जीसी त्रिपाठी ने छीन लिया। इसके लिए विद्यार्थियों ने आंदोलन शुरू किया जो 2014 से 2017 तक अनवरत जारी रहा। जो सुविधा छात्र-छात्राओँ के अध्ययन, शोध के लिए दी गई उस पर उनके उत्तराधिकारी ने कहा कि साइबर लाइब्रेरी में विद्यार्थी पोर्न फिल्म देखते हैं। डॉ सिंह द्वार साइबर लाइब्रेरी की सुविधा देने के पीछे एक मजेदार कहानी भी परिसर में प्रचलित है। एक दिन जब वह रात के वक्त अपने वाहन से परिसर के बाहर से आ रहे थे कुछ छात्र लैंप पोस्ट के नीचे अध्ययन कर रहे थे। तब उन्होंने इसका कारण पूछा तो छात्रों ने बिजली संकट बताया। इसके बाद ही उन्होंने तय किया कि ऐसे सारे छात्रों को 24 घंटे लाइब्रेरी की सुविधा दी जाएगी और वह भी साइबर लाइब्रेरी के रूप में।
यह संयोग ही है कि जिस छात्र ने बीएचयू में शिक्षा ग्रहण की, वहीं एसोसिएट प्रोफेसर बना फिर कुलपति भी हुआ। उसी विश्वविद्यालय परिसर के आईसीयू में उन्होंने अंतिम सांस भी ली। दरअसल रविवार की शाम वह अपने पैत्रिक निवास जौनपुर से हैदराबाद के लिए निकले थे। बाबतपुर स्थित लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उन्हें हर्ट अटैक हुआ। हवाई अड्डे पर प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें बीएचयू के सरसुंदर लाल चिकित्सालय लाया गया। यहां उन्हें तत्काल आईसीयू में भर्ती किया गया। लेकिन अथक प्रयास के बावजूद चिकित्सक उन्हें नहीं बचा सके। रात करीब 10 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। उसके बाद उनका पार्थिव शरीर उनके पैत्रिक गांव ले जाया गया। देर रात शव पहुंचने के बाद गांव में शोक की लहर दौड़ गई। श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लग गया। बताया जा रहा है कि डॉ सिंह की अंत्येष्ठि बनारस में होगी। दोपहर एक बजे जौनपुर से उनकी शवयात्रा बनारस के लिए निकलेगी।
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