फादर ऑफ डीएनए फिंगरप्रिंट के नाम से जाने जाते थे डॉ. लालजी
बीएचयू के कुलपति रहे डॉ. लालजी सिंह को देश के फादर ऑफ डीएनए फिंगर बीएचयू के कुलपति रहे डॉ. लालजी सिंह को फादर आफ डीएनए फिं गरप्रिंट के नाम से भी जाना जाता था। रविवार की शाम को अपने पैतृक निवास जौनपुर से हैदराबाद जाने के दौरान बाबतपुर एयरपोर्ट पर उन्हें हार्ट अटैक आ गया। एयरपोर्ट पर प्राथमिक उपचार के बाद चिकित्सकों ने उन्हें बीएचयू के लिए रेफर कर दिया। बीएचयू आईसीयू में इलाज के दौरान डॉ. लालजी सिंह का निधन हो गया। इस दौरान बीएचयू के वरिष्ठ अधिकारी और कर्मचारी मौजूद रहे। बीएचयू के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. राजेश सिंह ने बताया कि डॉ. लालजी सिंह का शव उनके गांव कलवारी ले जाया जाएगा। डा. लालजी सिंह अगस्त 2011 से अगस्त 2014 तक बीएचयू के कुलपति रहे।
बीएचयू के कुलपति रहे डॉ. लालजी सिंह को देश के फादर ऑफ डीएनए फिंगर बीएचयू के कुलपति रहे डॉ. लालजी सिंह को फादर आफ डीएनए फिं गरप्रिंट के नाम से भी जाना जाता था। रविवार की शाम को अपने पैतृक निवास जौनपुर से हैदराबाद जाने के दौरान बाबतपुर एयरपोर्ट पर उन्हें हार्ट अटैक आ गया। एयरपोर्ट पर प्राथमिक उपचार के बाद चिकित्सकों ने उन्हें बीएचयू के लिए रेफर कर दिया। बीएचयू आईसीयू में इलाज के दौरान डॉ. लालजी सिंह का निधन हो गया। इस दौरान बीएचयू के वरिष्ठ अधिकारी और कर्मचारी मौजूद रहे। बीएचयू के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. राजेश सिंह ने बताया कि डॉ. लालजी सिंह का शव उनके गांव कलवारी ले जाया जाएगा। डा. लालजी सिंह अगस्त 2011 से अगस्त 2014 तक बीएचयू के कुलपति रहे।
बीएचयू में ही हुई थी शिक्षा-दीक्षा
बीएचयू से शिक्षा प्राप्त कर दुनिया अपना मुकाम हासिल करने वाले डॉ. लालजी सिंह अगस्त 2011 से अगस्त 2014 तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। जौनपुर जिले के सदर तहसील एवं सिकरारा थाना क्षेत्र के कलवारी गांव के निवासी स्व. ठाकुर सूर्य नारायण सिंह के पुत्र थे। पांच जुलाई 1947 को डॉ. लालजी सिंह का जन्म हुआ था। वर्ष 1971 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने के बाद वे कोलकत्ता गए। जहां पर साइंस में 1974 तक एक फेलोशिप के तहत रिसर्च किया। इसके बाद वे छह माह की फेलोशिप पर यूके गए और नौ माह बाद वापस भारत आए। जून 1987 में सीसीएमबी हैदराबाद में वैज्ञानिक पद पर कार्य करने लगे और 1998 से 2009 तक वहां के निदेशक रहे।
बीएचयू से शिक्षा प्राप्त कर दुनिया अपना मुकाम हासिल करने वाले डॉ. लालजी सिंह अगस्त 2011 से अगस्त 2014 तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। जौनपुर जिले के सदर तहसील एवं सिकरारा थाना क्षेत्र के कलवारी गांव के निवासी स्व. ठाकुर सूर्य नारायण सिंह के पुत्र थे। पांच जुलाई 1947 को डॉ. लालजी सिंह का जन्म हुआ था। वर्ष 1971 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने के बाद वे कोलकत्ता गए। जहां पर साइंस में 1974 तक एक फेलोशिप के तहत रिसर्च किया। इसके बाद वे छह माह की फेलोशिप पर यूके गए और नौ माह बाद वापस भारत आए। जून 1987 में सीसीएमबी हैदराबाद में वैज्ञानिक पद पर कार्य करने लगे और 1998 से 2009 तक वहां के निदेशक रहे।
लाल जी की उपलब्धियां
-बीएचयू से बायो टेक्नोलॉजी में परास्नातक के गोल्ड मेडलिस्ट।
-बीएचयू से की पीएचडी और बने एसोसिएट प्रोफेंसर ।
-कोलकाता विश्वविद्यालय व लंदन जाकर डीएनए फिंगर प्रिंट पर किया काम।
-देश के न्यायालय में डीएनए को दिलाई मान्यता।
-10 साल विदेश में काम ? करने के बाद वापस हैदराबाद में सीडीएफडी के कार्यकारी निदेशक बने।
-कलवारी, जौनपुर में जीनोमा फाउंडेशन की स्थापना।
-देश का अत्याधुनिक उपकरणों से लैस 360 बेड वाला बीएचयू ट्रामा सेंटर इनके ही कार्यकाल में बनकर तैयार हुआ।
-ट्रामा सेंटर परिसर में इनका ड्रीम प्रोजेक्ट बोनमैरो ट्रांसप्लांट और साइबर लाइब्रेरी रहा।
-बीएचयू से बायो टेक्नोलॉजी में परास्नातक के गोल्ड मेडलिस्ट।
-बीएचयू से की पीएचडी और बने एसोसिएट प्रोफेंसर ।
-कोलकाता विश्वविद्यालय व लंदन जाकर डीएनए फिंगर प्रिंट पर किया काम।
-देश के न्यायालय में डीएनए को दिलाई मान्यता।
-10 साल विदेश में काम ? करने के बाद वापस हैदराबाद में सीडीएफडी के कार्यकारी निदेशक बने।
-कलवारी, जौनपुर में जीनोमा फाउंडेशन की स्थापना।
-देश का अत्याधुनिक उपकरणों से लैस 360 बेड वाला बीएचयू ट्रामा सेंटर इनके ही कार्यकाल में बनकर तैयार हुआ।
-ट्रामा सेंटर परिसर में इनका ड्रीम प्रोजेक्ट बोनमैरो ट्रांसप्लांट और साइबर लाइब्रेरी रहा।