पुरनिये बताते हैं कि विश्वविद्यालय के स्थापन काल (1916) के चार वर्ष बाद ही इसके संचालकों और विद्यार्थियों के सामने गंभीर सवाल उठ खड़ा हुआ। महात्मा गांधी ने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के बहिष्कार का नारा बुलंद किया। कहा, विद्यार्थियों को ऐसे शिक्षा केंद्रों से हट जाना चाहिए जो सरकारी अनुदान स्वीकार करते हों। वहीं महामना पं. मदनमोहन मालवीय का विचार भिन्न था। 27 नवंबर 1920 को काशी हिंदू विश्वविद्यालय में महत्वपूर्ण सभा हुई। सभा की अध्यक्षता महामना मालवीय ने की और प्रमुख वक्ता महात्मा गांधी थे। दो अलग-अलग विचार रखने वाले राष्ट्रीय नेता एक ही मंच से विचार प्रस्तुत कर रहे थे। गांधी के जवाब में महामना मालवीय ने कहा, “मैं किसी को चिडि़यों की तरह पिंजरे में बंद करने पर विश्वास नहीं करता, जिनका मन पढ़ाई से हट गया है और जो विश्वविद्यालय छोड़ना चाहते हों वे अवश्य जाएं। मेरे मन में विरोध का भाव नहीं है, जो रहना चाहते हैं, मेहनत करके पढ़ें। इसे राष्ट्र सेवा मानें। आपके लिए यह अध्ययन का समय है। हमारी पीढ़ी का काम स्वराज लाना है, आप का धर्म पढ़ाई में मन लगाना है।” संघर्ष के इस दौर में आचार्य कृपलानी सहित दो सौ छात्रों और अध्यापकों ने विश्वविद्यालय छोड़ दिया।
लेकिन 1930 में आरंभ हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान इस विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने पूरी सक्रियता दिखाई। इसका प्रमुख कारण था मालवीय जी के रुख में परिवर्तन। सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय मालवीय जी ने पूरी शक्ति से राष्ट्रीय संघर्ष में भाग लिया। इस दौर में विद्यार्थियों की भूमिका पर स्थानीय, प्रांतीय और केंद्रीय अधिकारियों की पैनी नजर थी। इसी का परिणाम था कि जुलाई और अगस्त (1930) में समूचे देश में आंदोलन का वेग दिखाई दिया। विद्यार्थियों ने शिक्षा का कई दिनों तक बहिष्कार किया, राष्ट्रीय ध्वज फहराए, शहर की गलियों में जुलूस निकाले, सभाएं की। इस समय की गोपनीय रिपोर्टो से विद्यार्थियों की राष्ट्रीय चेतना और हलचलों का आभास मिलता है।
गुप्तचर रिपोर्टो से सरकार को यह जानकारी मिली कि क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन यहां से हो रहा है। इसे देखते हुए सरकार ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों पर जोर डाला कि वे विद्यार्थियों को काबू में करें, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करें और जिन विद्यार्थियों के विरुद्ध सरकारी अधिकारी प्रमाण दें उन्हें विश्वविद्यालय से निकाल दिया जाए। अधिकारियों ने जब सरकार के इस आग्रह को स्वीकार नहीं किया तो विश्वविद्यालय का अनुदान रोक दिया गया। कार्यवाहक उप कुलपति एबी ध्रुव ने 25 नवंबर 1930 को अपने पत्र में शिक्षा सचिव को लिखा कि ऐसे समय जब चारो ओर राष्ट्रीय भावना की लहर उठ रही हो और बहुत से सम्मानित भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हों यह आशा नहीं रखी जा सकती कि विश्वविद्यालय के अध्यापक और विद्यार्थी इससे प्रभावित न हों। कुछ समय बाद सरकार को अपनी नीति पर विचार करना पड़ा और विश्वविद्यालय का अनुदान पुन: बहाल कर दिया गया। विश्वविद्यालय के साहसिक और राष्ट्रीय दृष्टिकोण के कारण ही यहां के विद्यार्थी आने वाले वर्षो में भी राष्ट्रीय आंदोलनों में रुचि लेते रहे। 1930 में जब मुंबई में मालवीय जी गिरफ्तार कर लिए गए तो इस विद्यालय के 113 विद्यार्थी मुंबई पहुंच गए और सत्याग्रह करने लगे, जहां उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया।
ऐसा नहीं कि गांधी और मालवीय जी के कार्यकाल के बाद विश्वविद्यालय में लोकतंत्र नहीं रहा। इसी विश्वविद्यालय ने लगभग 10 सांसद, 18 से अधिक विधायक व एमएलसी दिए। डॉ राममनोहर लोहिया, अशोक सिंहल और गोविंदाचार्य जैसी चर्चित हस्तियों को तैयार किया है। अंग्रेजी हटाओ आंदोलन से चर्चा में आये देवव्रत मजुमदार भी बीएचयू छात्रसंघ के अध्यक्ष थे। किसी जमाने में उनके स्टेटमेंट का प्रसारण सीधे बीबीसी से हुआ करता था। वर्तमान में रेल व संचार राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने भी यहीं से राजनीति का ककहरा सीखा।
बीएचयू में छात्र राजनीति करने वाले डॉ. बलिराम (लालगंज), बरखूराम वर्मा (विधानसभा अध्यक्ष) डॉ. राजेश मिश्र (वाराणसी), वीरेंद्र सिंह मस्त (बलिया), लालमुनि चौबे (बक्सर बिहार), मनोज सिन्हा (गाजीपुर), हरिकेश बहादुर सिंह (महाराजगंज), भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय गोयल, मनोज तिवारी, भरत सिंह आदि सांसद बने हैं।
बात 1974 की है जक काशी हिंदू विश्वविद्यालय सिंह द्वार पर लोकनायक जय प्रकाश नारायण की सभा थी। कांग्रेस का विरोध चरम पर था। यहीं से उन्होंने संपूर्ण क्रांति का बिगुल फूंका और कहा था कि ‘संपूर्ण क्रांति का अब नारा है, भावी इतिहास हमारा है’।
1962 में जब बीएचयू में छात्रसंघ के लिए चुनाव नहीं बल्कि मनोनयन हुआ करता था। नेहरूजी प्रधानमंत्री थे। तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष गंगाशरण राय ने एक बार सार्वजनिक रूप से कांग्रेस की प्रशंसा की तो छात्रों ने कालिख पोत कर उनको घुमाया था।
वर्ष 1974 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में साइंस कांग्रेस के आयोजन के दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का भाषण चल रहा था। उस समय समाजवादी खेमे के मोहन प्रकाश छात्रसंघ अध्यक्ष थे। उन्होंने भारी भीड़ के बीच बहुरुपिया बनकर प्रधानमंत्री को काला झंडा दिखाया। इसके बाद बवाल हो गया और मोहन प्रकाश की गिरफ्तारी के साथ ही विश्वविद्यालय तीन माह के लिए बंद कर दिया गया था। हालांकि अब मोहन प्रकाश कांग्रेस के एक कद्दावर नेता के रूप में जाने जाते हैं।