बीएचयू के वैज्ञानिकों ने खोजा गंभीर सेप्टीसीमिया के इलाज का तरीका खोजा, गंभीर से गंभीर मरीज की बचाई जा सकेगी जान
तमाम गंभीर से गंभीर जानलेवा बीमारियों का सटीक इलाज खोजने वाले बीएचयू के वैज्ञानिकों ने फिर एक बड़ा काम किा है। ये रिसर्च वर्क आईएमएस बीएचयू के माइक्रोबायोलॉजी के वैज्ञानिकों ने किया है। उनका दावा है कि गंभीर से गंभीर सेप्टीसीमिया का आसान इलाज संभव है। बता दें कि सेप्टीसीमिया ऐसा गंभीर मर्ज है जिससे इंसान की मौत भी हो सकती है। तो जानते हैं क्या है सेप्टीसीमिया और इसका इलाज…
वाराणसी. सेप्सिस और सेप्टीसीमिया (रक्त परिवहन का संक्रमण) एक गंभीर बिमारी है। इसकी गंभीरता तब और भी बढ़ जाती है, जब संक्रमण एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट बैक्टीरिया के द्वारा हो जाय। कभी कभी ऐसा भी होता है कि इस गंभीर संक्रमण पर कोई भी दवा काम नहीं करती । ऐसे में अगर अन्य वैकल्पिक विधा न हो तो आप मरीज को अपने आंखों के सामने असहाय होकर मरते हुए देख सकते हैं। पत्रिका से खास बातचीत में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, चिकित्सा विज्ञान संस्थान के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर गोपाल नाथ ने ये जानकारी दी।
सीवर या नदी जल के बैक्टीरिया को विकसित कर बचाई जा सकती है जान प्रो गपालनाथ ने बताया कि प्रकृति ने हर समस्या का समाधान समस्या के साथ साथ ही बना रखा है। ऐसी ही एक व्यवस्था है, बैक्टीरियोफेज थेरेपी। इस विधा में सीवर या नदियों के पानी से बैक्टीरिया के विषाणु निकालकर और उनकी संख्या प्रयोगशाला में बढ़ाकर और उसे परिष्कृत करके इन हठी बैक्टीरिया को मार कर मानव जीवन को बचाया जा सकता है।
बैक्टीरियोफेज की संख्या बढ़ाकर डाइलिसिस करके इस दवा को एंडोटॉक्सिन से मुक्त किया जाता है उन्होंने बताया कि अभी तक सही खुराक की मात्रा एवं बारंबारता तथा इंजेक्शन का उपयुक्त मार्ग, यानी रक्त वाहिनियों या मांसपेशी अथवा अधित्वचा या पर पेरिटोनियम आदि के बारे में सीमित सूचनाएं उपलब्ध है। चूहों और खरगोशों पर प्रयोग के पश्चात चिकित्सा विज्ञान संस्थान, माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रयोगशाला ने यह पाया कि 105 PFU बैक्टीरियोफेज को यदि अधित्वचा या पेरिटोनियम के मार्ग से दे और शरीर के रक्तचाप तथा ऑक्सीजन की सांद्रता की स्थिति को नियंत्रित रखें और आवश्यकतानुसार एक या अधिक खुराक दे दिया जाए तो इन मुश्किल संक्रमणों से मानव जीवन को बचाया जा सकता है। बैक्टीरियोफेज की संख्या बढ़ाकर एवं पतली झिल्ली के द्वारा डाइलिसिस करके इस दवा को एंडोटॉक्सिन से मुक्त किया जाता है।
पिछले 17 साल से चल रहा शोध बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, चिकित्सा विज्ञान संस्थान, माइक्रोबायोलॉजी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर गोपाल नाथ की प्रयोगशाला में बैक्टीरियोफेज के विषयों पर पिछले 17 साल से शोध चल रहा है। खरगोशों में हड्डी के संक्रमण को पूरी तरह से बैक्टीरियोफेज के माध्यम से इलाज किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि चूहों में सूडोमोनास एयरूजिनोजा , एसिनेटोबैक्टर, क्लेबसिएला निमोनिया के गंभीर संक्रमणों को ठीक किया जा चुका है जिसमें ये पाया गया है कि कम या अधिक खुराक, दोनों ही खतरनाक होंगे क्योंकि बड़ी मात्रा में बैक्टीरियोफेज का प्रयोग करने पर एकाएक संक्रमित करने वाले बैक्टीरिया की कोशिकाओं की दीवार टूट जाती है और एंडोटॉक्सिन इतनी भारी मात्रा में रक्त परिवहन में आ जाते हैं जिससे मरीज शॉक (Shock) में जा सकता है और मृत्यु भी हो सकती है।
टाइफाइड का बुखार या उसके सतत वाहक क्रानिक करियर को किया जा सकता है ठीक हाल में प्रकाशित शोध पत्र जो टाइफाइड बैक्टीरिया को ध्यान रखकर किया गया (Yadav & Nath, 2022), में भी यही पाया गया कि 105 PFU बैक्टीरियोफेज एक चूहे को अगर दिया जाय तो टाइफाइड का बुखार या उसके सतत वाहक क्रानिक करियर, (chronic carriage) को भी ठीक किया जा सकता है। इस प्रकार आने वाले समय में दवा नियामक मंडल अगर बैक्टीरियोफेज के प्रयोग की अनुमति दें तो टाइफाइड को पूरी दुनिया से समाप्त किया जा सकता है। वजह ये कि टाइफाइड के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया सिर्फ मानव को ही संक्रमित करते हैं। उन्होंने ये भी बताया कि करुणा के आधार पर (compassionate ground) पर यदि किसी मरीज के पारंपरिक इलाज से ठीक नहीं होने की संभावना है तो मरीज के अभिभावक और दो फिजिशियंस जो उनका इलाज कर रहे हैं, के परमार्श से ऐसे मरीजों का बैक्टीरियोफेज से इलाज किया जा सकता बैक्टीरियोफेज के लायो फ्लाइज़ फार्म के कुछ सैंपल डॉक्टर गोपाल नाथ की लैब में उपलब्ध भी है।
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