scriptफूलपुर उपचुनावः भाजपा प्रत्याशी पर भारी न पड़ जाए पटेल नेताओं की खेमेबंदी | big challenge for BJP candidate to unite Patel voters in Phulpur | Patrika News

फूलपुर उपचुनावः भाजपा प्रत्याशी पर भारी न पड़ जाए पटेल नेताओं की खेमेबंदी

locationवाराणसीPublished: Feb 23, 2018 06:53:22 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

बिरादरी के अंदर भी है फूट, अपना दल के साथ भाजपा के पुरनिये सजातीय दिग्गजों को साधना आसान नहीं।

बीजेपी फ्लैग

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वाराणसी. कभी बनारस के युवा मेयर रहे कौशलेंद्र सिंह को फूलपुर संसदीय उपचुनाव के लिए मैदान में उतार कर भाजपा ने यूं तो बड़ा दांव खेला है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इसके पीछे पार्टी की बड़ी सोच अपने अंदर पिछड़ों की फौज तैयार करना है ताकि भविष्य में किसी ऐसे छोटे दल अगर आंख दिखाएं तो उनसे किनारा कसने में दिक्कत न हो। इसी सोच के तहत सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर के मुकाबिल अनिल राजभर को न केवल 2017 के चुनाव में शिवपुर विधानसभा से टिकट दिया बल्कि उनके जीतते ही मंत्री पद भी दे दिया गया। अब अनिल और ओम प्रकाश आमने सामने हैं। यह दीगर है कि अभी अनिल, ओमप्रकाश को ठीक से टक्कर नहीं दे पा रहे हैं। ठीक उसी तर्ज पर पार्टी ने पटेलों के बीच एक युवा नेता को मान्यता दिलाने का बीड़ा उठाया ताकि अनुप्रिया पटेल के मुकाबिल पार्टी का एक दमदार नेता खड़ा हो जाए। चर्चा तो यहां तक है कि अगर कौशलेंद्र जीतते हैं तो केंद्र के अगले मंत्रिमंडल विस्तार में उन्हें जगह भी मिल सकती है। लेकिन इन सब के बीच भाजपा नेतृत्व के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती पटेल मतों का एक तरफा ध्रुवीकरण करना है। कारण साफ है कि न केवल अनुप्रिया बल्कि बीजेपी के ही पुराने दिग्गज पटेल नेताओं खेमेबंदी भारी पड़ सकती है।
वैसे भी वाराणसी से लेकर मिर्जापुर, चुनार और इलाहाबाद तक में कौशलेंद्र की जड़ खोदने वालों की कमी नहीं है। ये खेमेबंदी ही रही कि फूलपुर संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव के लिए जैसे ही कौशलेंद्र का नाम आया विरोधी खेमा फास्ट हो गया। तत्काल बाद उनकी पहली पत्नी ऋतु सिंह मीडिया के सामने आईं या लाई गईं, जिन्होंने कौशलेंद्र पर तमाम आरोप गढ़े। यहां तक कहा कि कौशलेंद्र उन्हें प्रताड़ित करते थे और बेटी के जन्म लेने के बाद मारते-पीटते थे। ऋतु ने जबरन तलाक देने तक आरोप लगाया। हालांकि तलाक दिए बिना दूसरी शादी करने के सवाल पर कौशलेंद्र सहित पार्टी के वरिष्ठ बीजेपी नेताओं ने फिलहाल चुप्पी साध रखी है। वैसे यह प्रकरण उस वक्त भी उठा था जब कौशलेंद्र वाराणसी में मेयर का चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन तब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने सब कुछ संभाल लिया था।
सूत्र बताते हैं कि अब जब कौशलेंद्र को केशव मौर्या का नजदीकी कहा जा रहा है वही कभी डॉ मुरली मनोहर जोशी के भी खासमखास रहे। 2014 के चुनाव के दौरान वह मिर्जापुर सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन तब उनकी जगह अनुप्रिया पटेल को टिकट मिला। 2017 में उन्होंने दोबारा मिर्जापुर के चुनार और वाराणसी के रोहनिया विधानसभा से टिकट की दावेदारी पेश की। वह पहला मौका था जब कौशलेंद्र ने अपने नाम के साथ पटेल जोड़ दिया। बावजूद इसके इस बार भी उन्हें मायूसी ही हाथ लगी। वैसे कौशलेंद्र ने सबसे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में टिकट की मांग की थी लेकिन पार्टी में अन्य पिछड़ी जातियों के वरिष्ठ नेताओं का एक खेमा लंबे समय से उऩका विरोध करता आया है जिसके चलते उन्हें टिकट नहीं मिल पाया था।
बता दें कि कौशलेंद्र मूल रूप से मिर्जापुर के मगरहां गांव के निवासी हैं। यहीं से ताल्लुख रखते हैं पार्टी के पुरनिये कद्दावर नेता ओम प्रकाश सिंह। बताया जाता है कि प्रदेश के पूर्व मंत्री ओम प्रकाश सिंह ही कौशलेंद्र के राजनीतिक गुरु रहे। लेकिन मेयर बनने के बाद कौशलेंद्र और ओम प्रकाश सिंह की नजदीकियां दूरियों में तब्दील होने लगीं। वह उन्हें बाईपास करके आगे बढ़ने में जुट गए। नतीजतन वरिष्ठ बीजेपी नेता ओम प्रकाश सिंह ने भी कौशलेन्द्र को पीछे ढकेलने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखा और 2017 विधानसभा चुनाव में कौशलेंद्र ने जब रोहनियां के अलावा चुनार विधानसभा सीट से भी टिकट की दावेदारी की तो दोनों में से किसी एक सीट से भी उन्हें टिकट नहीं मिला। इसके पीछे पूर्व प्रदेशअध्यक्ष तथा शिक्षा व सिंचाई मंत्री रहे ओमप्रकाश सिंह का हाथ बताया जाता है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के अनुसार बीते विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश सिंह ने कौशलेंद्र के टिकट को लेकर खुला विरोध किया और अपने बेटे अनुराग सिंह को टिकट दिलाने में सफल हुए जिसने जीत भी हासिल की।
बता दें कि कौशलेंद्र का मूल निवास अनुप्रिया के संसदीय क्षेत्र में ही पड़ता है। लेकिन वर्तमान में राजनीतिक गलियारों में जो गासिपिंग हो रही है उसके अनुसार कौशलेंद्र को न ओमप्रकाश सिंह का खेमा पसंद करता है और न ही अनुप्रिया पटेल का। दोनों खेमों को वह रास नहीं आते। पार्टी सूत्रों की मानें तो 2014 लोकसभा चुनाव में मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल के जीतने के बाद जब रोहनिया विधानसभा सीट खाली हुई तो कौशलेंद्र ने टिकट की दावेदारी की थी। लेकिन तब अनुप्रिया पटेल ने बीजेपी-अपनादल गठबंधन के तहत अपनी मां कृष्णा पटेल को टिकट दिलवा दिया। क्षेत्रीय राजनीतिक लोगों का मानना है कि कौशलेंद्र ने कृष्णा पटेल का खुल कर विरोध किया और कुर्मी जाति के वोटों को उनके विरुद्ध लामबंद करने में जुटे रहे। परिणाम स्वरूप कृष्णा पटेल को हार का सामना करना पड़ा। उस चुनावों के बाद से ही अनुप्रिया पटेल व कौशलेंद्र के बीच राजनीतिक 36 वाले हो गए। एक बार फिर से इस बार भी अनुप्रिया और कौशलेंद्र के बीच टिकट बंटवारे को लेकर पेंच फंस गया है। अनुप्रिया के नजदीकी सूत्र बताते हैं कि वह इस बार इसी सीटसे अपने पति को चुनाव लड़ाना चाहती थीं लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। ऐसे में अब अनुप्रिया का खेमा भी विरोध में खड़ा हो जाए तो बड़ी बात नहीं। हालांकि, बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व यह मान कर चल रहा है कि उनके पक्ष में कोइरी (कुशवाहा, मौर्या, शाक्य) मतों का ध्रुवीकरण हो जाएगा।
जानकार बताते है कि फूलपुर के जातीय समीकरण पर गौर फरमाएं तो वहां तकरीबन ढाई लाख पटेल वोटर हैं लेकिन पटेल समुदाय की गुटबाजी भी चरम पर है। ऐसे में पटेल वोटों के बंटवारे इंकार नहीं किया जा सकता। जानकारों का कहना है कि इलाहाबाद में सिंगरौर कुर्मियों की संख्या अधिक है और वे अपने को कुर्मियों में उच्च मानते हैं जबकि कौशलेंद्र जैसवार कुर्मी हैं। ऐसे में उन्हें इलाहाबाद के कुर्मी मतों के बीच खुद की स्वीकार्यता कायम रखना आसान नहीं। अब गुरुवार से शोसल मीडिया पर जो खबर वायरल हो रही है उसके तहत कौशलेंद्र ने एक बयान जारी किया है कि जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें तो पटेल ही जिता देंगे। अब राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कौशलेंद्र का यह बयान इलाहाबाद के सिंगरौर कुर्मियों को साधने की चाल है।
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