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सपा व कांग्रेस के चक्रव्यूह में फंसी सीट, बीजेपी के चाणक्य को लगानी होग सारी ताकत

locationवाराणसीPublished: Sep 20, 2017 08:03:27 pm

Submitted by:

Devesh Singh

उपचुनाव में हार से बदल जायेगा माहौल, जानिए क्या है कहानी

BJP National President Amit Shah

BJP National President Amit Shah

वाराणसी. सपा व कांग्रेस के चक्रव्यूह में बीजेपी की सीट फंस चुकी है। बीजेपी के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह को पार्टी की प्रतिष्ठा बचाने के लिए सारी ताकत लगानी होगी। गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेन्द्र मोदी की लहर में पहली बार बीजेपी ने इस सीट पर फगवा लहराया था और अब उपचुनाव में फिर से सीट पर विजय पताका फहराना बहुत कठिन हो गया है।
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यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या अपने संसदीय सीट फूलपुर से इस्तीफा देने वाले हैं और इस सीट पर उपचुनाव होना है। बीजेपी ने यूपी विधानसभा चुनाव जीता है और संसदीय चुनाव २०१९ से पहले गोरखपुर व फूलपुर संसदीय सीट पर होने वाले उपचुनाव सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। गोरखपुर में सीएम योगी आदित्यनाथ के चलते बीजेपी की स्थिति मजबूत है, लेकिन फूलपुर के समीकरण ठीक नहीं है। संसदीय चुनाव २०१४ में मोदी के लहर के चलते आजादी के बाद पहली बार बीजेपी ने इस सीट पर विजय हासिल की थी और केशव प्रसाद मौर्या केे इस्तीफा देते ही इस सीट पर उपचुनाव होना है। फूलपुर संसदीय सीट का जातीय व यूपी का समीकरण बीजेपी के लिए ठीक नहीं है, ऐसे में इस सीट पर हार-जीत पार्टी का भविष्य भी तय कर सकती है।
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जवाहर लाल नेहरू के बाद सपा की गढ़ बनी फूलपुर संसदीय सीट
फूलपुर संसदीय सीट पर पूर्व पीएम स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार १९५२ में इस सीट पर जीत हासिल की थी। इसके बाद १९५२, १९५७ व १९६२ में भी यहां से चुनाव जीता था। नेहरू जी के निधन के बाद उनकी बहन लक्ष्मी पंडित ने इस सीट की जिम्मेदारी संभाली थी और १९६७ में उन्होंने जनेश्वर मिश्र को चुनाव हराया था इसके बाद लक्ष्मी पंडित ने संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि बनने के बाद १९६९ में इस सीट से इस्तीफा दे दिया था इसके बाद इस सीट पर उपचुनाव हुआ था और कांग्रेस ने नेहरु के खास रहे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार केशवदेव मालवीय को चुनाव लड़ाया था, लेकिन जनेश्वर मिश्र ने इस सीट से चुनाव जीत लिया था इसके बाद आपातकाल के दौर में १९७७ में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट से रामपूजन पटेल को उतारा था लेकिन जनता पार्टी की कमला बहुगुणा ने इस सीट पर जीत दर्ज की इसके बाद कमला कांग्रेस में शामिल हो गयी। इसके बाद १९८० में हुए उपचुनाव में लोकदल के उम्मीदवार प्रो.बीडी सिंह को जीत मिली। १९८४ में कांग्रेस के रामपूजन पटेल ने फिर से कांग्रेस को इस सीट पर जीत दिलायी थी इसके बाद वह जनता दल में चले गये और १९८९ व १९९१ के चुनाव में रामपूजन पटेल ने जनता दल का कब्जा बरकरार रखा। पंडित नेहरू के बाद रामपूजन पटेल ही इस सीट को लगतार तीन बार जीत पाये थे १९९६ से २००४ तक यह सीट सपा के कब्जे में रही। जबकि वर्ष २००४ में बाहुबली अतीक ने इसी सीट पर जीत हासिल कर सबको चौका दिया। बसपा ने वर्ष २००९ में यह सीट सपा से छीन ली थी। वर्ष २०१४ में केशव प्रसाद मौर्या ने बीएसपी के सांसद कपिलमुनि करवरिया को पांच लाख से ज्यादा वोटों से हराकर पहली बार बीजेपी का खाता खोला था।
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बीजेपी के लिए फूलपुर संसदीय सीट पर जातीय समीकरण का साधना आसान नहीं है। इस सीट पर मुस्लिम, पटेल व कायस्थ बिरादरी का वोट सबसे अधिक है। इसके बाद ब्राह्मण व एससी वोटर आते हैं। फूलपुर संसदीय सीट पर लगभग दो लाख पटेल वोटर हैं इसके बाद मुस्लिम, यादव व कायस्थ मतदाताओं की संख्या कुल मिला कर पटेल वोटरों के बराबर है। लगभग डेढ लाख ब्राह्मण व एक लाख अनुसूचित जाति केभी मततादता है।
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बीजेपी को क्यों उठानी पड़ सकती है परेशानी
बीजेपी अभी तक पीएम नरेन्द्र मोदी की लहर के चलते ही चुनाव जीतती है। देश ेेमें इस समय केन्द्र सरकार को लेकर लोगों में नाराजगी है। बेरोजगारी, पेट्रोल की कीमत, कालाधन पता करने के लिए नियमों में लगातार बदलाव आदि से जनता बहुत खुश नहीं है, ऐसे में फूलपुर संसदीय सीट का चुनाव बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। सपा व बसपा के गठबंधन ने बीजेपी को अधिक परेशान किया हुआ है। बीजेपी को फूलपुर संसदीय सीट पर चुनाव जीतन के लिए सबसे अधिक मेहनत करनी होगी।
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