नहीं बनी आम सहमति, कराना पड़ा मतदान
वाराणसी नगर निगम के उपसभापति चुनाव के लिए कार्यकारिणी समिति के नवनिर्वाचित 12 सदस्यो की बैठक महापौर व कार्यकारिणी की पदेन सभापति मृदुला जायसवाल की अध्यक्षता मे कार्यकारिणी कक्ष मे तय एजेंडा के मुताबिकसुबह 11:00 बजे शुरू हुई। सबसे पहले महापौर ने बैठक के शुरु मे उपसभापति पद के लिए नामो का प्रस्ताव मांगा। इसमे भाजपा की तरफ से राजेश यादव ने श्री नरसिंह दास के नाम का प्रस्ताव दिया। वहीं साझा मंच की तरफ से रमज़ान अली ने अजीत सिंह का नाम प्रस्तावित किया। तय समय के अनुसार किसी ने नाम वापस नही लिया तो मतदान के लिए श्लाका पत्र की तैयारी शुरू हुई। फिर शुरू हुआ मतदान।
वाराणसी नगर निगम के उपसभापति चुनाव के लिए कार्यकारिणी समिति के नवनिर्वाचित 12 सदस्यो की बैठक महापौर व कार्यकारिणी की पदेन सभापति मृदुला जायसवाल की अध्यक्षता मे कार्यकारिणी कक्ष मे तय एजेंडा के मुताबिकसुबह 11:00 बजे शुरू हुई। सबसे पहले महापौर ने बैठक के शुरु मे उपसभापति पद के लिए नामो का प्रस्ताव मांगा। इसमे भाजपा की तरफ से राजेश यादव ने श्री नरसिंह दास के नाम का प्रस्ताव दिया। वहीं साझा मंच की तरफ से रमज़ान अली ने अजीत सिंह का नाम प्रस्तावित किया। तय समय के अनुसार किसी ने नाम वापस नही लिया तो मतदान के लिए श्लाका पत्र की तैयारी शुरू हुई। फिर शुरू हुआ मतदान।
दो मत अवैध, दोनों उम्मीदवारों को मिले बराबर मत
मतदान में कार्यकारिणी के सभी 12 सदस्यो ने मतदान मे भाग लिया। मतदान के बाद मतगणना मे कुल 12 मतों में से दो मत अवैध घोषित कर दिया गया। शेष कुल 10 वैध मतों में से पांच वोट नरसिंह दास को तथा इतने ही मत अजीत सिंह को मिले। बराबर-बराबर वोट मिलने के कारण मामला फंस गया। इस पर साझा विपक्ष ने काफी देर तक बहस की कि महापौर को निर्णायक वोट देने का कोई प्रावधान नगर निगम अधिनियम मे नही है। इस पर विपक्ष के पार्षदों ने अधिनियम की धारा-73, 94(4), 12 का हवाला दिया तो भाजपा के पार्षदों ने धारा-17 का हवाला दिया। बात बनती न देख विपक्ष लॉटरी से निर्णय पर अड़ गया।
मतदान में कार्यकारिणी के सभी 12 सदस्यो ने मतदान मे भाग लिया। मतदान के बाद मतगणना मे कुल 12 मतों में से दो मत अवैध घोषित कर दिया गया। शेष कुल 10 वैध मतों में से पांच वोट नरसिंह दास को तथा इतने ही मत अजीत सिंह को मिले। बराबर-बराबर वोट मिलने के कारण मामला फंस गया। इस पर साझा विपक्ष ने काफी देर तक बहस की कि महापौर को निर्णायक वोट देने का कोई प्रावधान नगर निगम अधिनियम मे नही है। इस पर विपक्ष के पार्षदों ने अधिनियम की धारा-73, 94(4), 12 का हवाला दिया तो भाजपा के पार्षदों ने धारा-17 का हवाला दिया। बात बनती न देख विपक्ष लॉटरी से निर्णय पर अड़ गया।
11 साल पहले की निकाली गई प्रोसीडिंग
काफी जद्दोजहद के बाद फैसला निर्वाचन अधिकारी के रुप मे नगर आयुक्त पर छोड़ दिया गया। नगर आयुक्त ने पूर्व मे 2007 मे पैदा हुई इसी तरह की स्थिति की सूरत में हुए निर्णय की जानकारी के लिए तब की प्रोसीडिंग निकलवाई। 11 साल पहले की प्रोसीडिंग से स्पष्ट हुआ कि निर्णायक वोट के रुप मे महापौर द्वारा वोट किया गया था। हालांकि प्रोसीडिंग में किसी धारा का उल्लेख नही किया गया था। नगर आयुक्त ने पूर्व की प्रोसिडिंग के आधार पर अपना फैसला सुनाया। फिर महापौर ने अपना निर्णायक वोट नरसिंह दास के पक्ष में दिया। इस प्रकार भाजपा प्रत्यासी नरसिंह दास को निर्वाचित घोषित कर दिया गया।
काफी जद्दोजहद के बाद फैसला निर्वाचन अधिकारी के रुप मे नगर आयुक्त पर छोड़ दिया गया। नगर आयुक्त ने पूर्व मे 2007 मे पैदा हुई इसी तरह की स्थिति की सूरत में हुए निर्णय की जानकारी के लिए तब की प्रोसीडिंग निकलवाई। 11 साल पहले की प्रोसीडिंग से स्पष्ट हुआ कि निर्णायक वोट के रुप मे महापौर द्वारा वोट किया गया था। हालांकि प्रोसीडिंग में किसी धारा का उल्लेख नही किया गया था। नगर आयुक्त ने पूर्व की प्रोसिडिंग के आधार पर अपना फैसला सुनाया। फिर महापौर ने अपना निर्णायक वोट नरसिंह दास के पक्ष में दिया। इस प्रकार भाजपा प्रत्यासी नरसिंह दास को निर्वाचित घोषित कर दिया गया।
विपक्ष का आरोप सरकार के दबाव में हुआ चुनाव
विपक्ष के अनुसार यह चुनाव नगर निगम अधिनियम के विरुद्ध सरकार के दबाव मे संपन्न हुआ है। विपक्ष का कहना है कि पूर्व मे यदि कोई चुनाव अधिनियम के विरुद्ध हुआ है तो आज भी अधिनियम के विरुद्ध ही हो यह सही नहीं। फिर अधिनियम का औचित्य क्या रहा? लेकिन विपक्ष के तर्क को अनसुना कर नरसिंह दास को नगर निगम वाराणसी कार्यकारिणी समिति का उप सभापति घोषित किया गया। इसके बाद पक्ष और विपक्ष के पार्षदो ने उन्हे अपनी शुभकामनाएं एवं बधाई दी। अपेक्षा की गई कि उप सभापति दलगत भावना से ऊपर उठ कर जनहित में निर्णय लेंगे।
विपक्ष के अनुसार यह चुनाव नगर निगम अधिनियम के विरुद्ध सरकार के दबाव मे संपन्न हुआ है। विपक्ष का कहना है कि पूर्व मे यदि कोई चुनाव अधिनियम के विरुद्ध हुआ है तो आज भी अधिनियम के विरुद्ध ही हो यह सही नहीं। फिर अधिनियम का औचित्य क्या रहा? लेकिन विपक्ष के तर्क को अनसुना कर नरसिंह दास को नगर निगम वाराणसी कार्यकारिणी समिति का उप सभापति घोषित किया गया। इसके बाद पक्ष और विपक्ष के पार्षदो ने उन्हे अपनी शुभकामनाएं एवं बधाई दी। अपेक्षा की गई कि उप सभापति दलगत भावना से ऊपर उठ कर जनहित में निर्णय लेंगे।
क्या है कहती हैं अधिनियम की धाराएं
-नगर निगम अधिनियम के तहत महापौर निगम का पदेन सदस्य होगा।
-निगम अथवा उसकी किसी समिति के अधिवेशनों की अध्यक्षता करते समय महापौर मतों की समानता की दशा में एक निर्णायक मत देने का अधिकारी होगा लेकिन सदस्य के रूप में उसे मत देने का अधिकार नहीं होगा।
-नगर निगम अधिनियम के तहत महापौर निगम का पदेन सदस्य होगा।
-निगम अथवा उसकी किसी समिति के अधिवेशनों की अध्यक्षता करते समय महापौर मतों की समानता की दशा में एक निर्णायक मत देने का अधिकारी होगा लेकिन सदस्य के रूप में उसे मत देने का अधिकार नहीं होगा।
मतों की समानता की दशा में प्रक्रिया
यदि किसी निर्वाचन आवेदन की सुनवाई करते वक्त यह प्रतीत हो कि निर्वाचन में किन्हीं उम्मीदवारों ने बराबर बराबर मत प्राप्त किए हैं और उनमें से किसी एक के पक्ष मे एक मत बढ़ जाने से वह व्यक्ति निर्वाचित घोषित किए जाने का अधिकारी हो जाएगा तो…
यदि किसी निर्वाचन आवेदन की सुनवाई करते वक्त यह प्रतीत हो कि निर्वाचन में किन्हीं उम्मीदवारों ने बराबर बराबर मत प्राप्त किए हैं और उनमें से किसी एक के पक्ष मे एक मत बढ़ जाने से वह व्यक्ति निर्वाचित घोषित किए जाने का अधिकारी हो जाएगा तो…
(क) इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन निर्वाचन अधिकारी द्वारा किया गया कोई निर्णय, जहां तक वह उक्त उम्मीदवारों के मध्य उपर्युक्त प्रश्न को निर्धारित करता है, आवेदन प्रयोजनों के लिए प्रभावी होगा। (ख) जहां तक उक्त निर्णय उपर्युक्त प्रश्न को निर्धारित न करता हो तो जिला जज उन उम्मीदवारों के बीच लॉटरी द्वारा निर्णय करेगा। ऐसी कार्यवाही करेगा मानों जिस उम्मीदवार के पक्ष में लॉटरी निकले उसने एक अतिरिक्त मत प्राप्त किया।