समापन के दौरान उन्होंने कहा कि, भारतीय कालीन उद्योग एक कुटिर उद्योग है। यह एक उद्योग ही नहीं बल्कि पुस्तैनी काम के साथ परम्परा और संस्कृति भी है। किसान खेती के साथ ही इसे करता है जो उसे स्वावलंबी बनाने में काफी मददगार होती है। हमारा कालीन उद्योग और इससे जुड़े बुनकरों की कारीगरी से दुनिया भर में भारत की पहचान बनती है।
मोदी सरकार इनके लिए कई योजनाएं भी लाई है। जिसमें बुनकरों के पेंशन, पुरस्कार देकर उन्हें उत्साहित कर रही हैं। वहीं मुद्रा लोन के माध्यम से स्वरोजगार को भी बढ़ावा दे रही है। कालीन भेड़ के बालों से बनता है। इसलिए हमारी सरकार ने भेड़ पलकों के लिए योजना भी चला रही है। नबार्ड के तहत भेड़पालकों को स्वावलंबी बनाने के लिए 10 भेड़ पर एक लाख व 100 भेंड़ पर दस लाख की राशि दे रही है जो ब्याज मुक्त है।
उन्होंने कहा, आज मुद्रा लोन लेकर लोग खुद अपना व्यसाय कर रहे हैं। हाल ही में भारतीय कालीन प्रौद्योगिकी संस्थान में एमटेक की पढ़ाई के लिए बीएचयू उसे बीएचयू में समाहित करने की प्रक्रिया चल रही है। इससे जहां छात्रों को लाभ होगा। वहीं नए नए तकनीक से कालीन उद्योग में नए तरह उत्पाद बनाए जा सकते हैं। उन्होंने इस दौरान मेले का भ्रमण कर कहा कि, कालीन हमारी गौरवशाली पंरपरा की पहचान है और लगातार इसमें नए और आकर्षक उत्पाद आकर्षण पैदा कर रही हैं।
उन्होंने कई स्टालों पर रूक कर कई उत्पादों की जानकारी लिया। उन्होंने मोदी वाल हैंगिंग के साथ अपनी तस्वीरें भी खिंचवाई। इस दौरान परिषद के अध्यक्ष महावीर शर्मा, उमेश गुप्ता, अब्दुल रब अंसारी, राजेन्द्र मिश्रा, फिरोज वजीरी सहित परिषद के अन्य सदस्य व कालीन निर्यातक मौजूद रहे।
input- महेश जायसवाल