इससे पूर्व हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि देश की अधिकांश औपचारिक नौकरियों को अनुबंधित या निश्चित अवधि, रोजगार में बदल दिया गया है। नौकरी की सुनिश्चितता, जैसा कि यह हमेशा परिकल्पितत किया गया था, से समझौता किया गया है। श्रमिकों को हमेशा बाहर फेंके जाने, बदल दिए जाने का डर होता है। यही डर उनके शोषण का अग्रगण्य कारण है। भारतीय मजदूर संघ ठेकेदारी और अनुबंधित, आकस्मिक नौकरियों का विरोध करता है। मांग करता है कि सभी अनुबंध, निश्चित अवधि, आकस्मिक, दैनिक-मजदूरी और अस्थाई श्रमिको को स्थाई रोजगार में नियमित किया जाए। श्रमिकों को उद्योग, कार्य के प्रति अपनेपन की भावना पैदा करने के लिए उनकी नौकरियों का औपचारीकरण आवश्यक है। यह उनकीक उत्पादन क्षमता में वृद्धि के लिए जरूरी है। हम मांग करते हैं कि आंगनबाड़ी, आशा, पीडीएस, मध्याह्न भोजन, एनएचएम आदि सरकारी योजनाओं में काम करने वाले सभी स्कीम वर्करों को सरकारी कर्मचारियों का दर्ज दिया जाए। ये लोग अन्य सरकारी कर्मचारियों की तरह ही मेहनत करते हैं और इसलिए अन्य कर्मचारियों की भांति ही इनको भी लाभ मिले।
श्रम कानूनों के 4 कोडों में संहिताकरण के लिए सरकार के प्रयासों की सराहना करते हैं। लेकिन हमने देखआ है कि कोड में कई प्रावधान प्रभावी रूप से श्रम विरोधी है, श्रमिकों के सामान्य हित को चोट पहुंचाता है। लेहर कोड्स में से श्रमिक विरोधी प्रावधानो को हटाया जाना चाहिए। हम संबंधित मंत्रालय के सामने अपनी टिप्पणी पहले ही प्रस्तुत कर चुके हैं। उद्योगों, उद्योगपतियों के साथ सांठगांठ में देश में स्थापित नौकरशाही विभिन् कानूनों और नियमों की आड़ में हमेशआ से मजदूरों की बार्गेनिंग पावर और श्रमिकों के अन्य अधिकारों का हनन करने की कोशिश करती रही है। इस पर अविलंब अंकुश लगाना होगा।
श्रमिकों के न्यूनतम वेतन सहित मौजूदा श्रम कानूनों को समग्रता से लागू किया जाना चाहिए। कानून लंबे समय से मौजूद है और नतिकारों का इरादा स्पष्ट है लेकिन कानून प्रवर्तन खोने के कारण जमीनी प्रथाओं को बदलने में कारगर नहीं रहे। मौजूदा कानूनों के उचित कार्यान्वयन से कार्य स्थल में कई दुर्घटनाओं को रोका जा सकता था। हाल ही में दिल्ली की मंडी में आग लगने का मामला देखा गया है, यह कानूनों का गैर कार्यान्वयन है जो टकराव की स्थिति पैदा करता है। आय कर सीमा 5 लाख से बढा कर 8 लाख की जाए
एक सार्वभौमिक सुरक्षा कोड बनाया जाना चाहिए। देश के संरक्षक के तौर पर यह सरकार कार कर्तव्य है कि वह सभी के लिए न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करे, सरकार मानव पूंजी निर्माण के लिए पोषण, आवास, चिकित्सा सुविधाएं, शिक्षा आदि जैसी बुनियादी सुविधाए में निवेश करे और इसे केवल राष्ट्रीय खाते से डेविड के रूप में न देखे। कम से कम 9 मूल साधनों को सभी के लिए सुनिश्चित किया जाए। हथकरघा, कृषि निर्माण, मत्स्य पालन आदि सहित सभी क्षेत्रों में वैधानिक वेलफेयर बोर्ड बनाए। संगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर जो भारत के कुल कार्यबल का लगभग 93 प्रतिशत हैं उन्हें कानूनी दायरों में सामाजिक सुरक्षा मिले। सीसीएस पेंशन को पुनः बहाल किया जाए। एनपीएस को हटाया जाए। पुरानी पेंशन योजना काफी बेहतर और प्रभावी थी। ईपीएस पेंशन सभी के लिए बढाकर 5000 रुपये की जाए।
स्वायत्त, नगरपालिका निकाय धन की कमी से जूझ रहे हैं। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन निकायों को उनके कामकाज के लिए पर्याप्त धनराशि की आपूर्ति की जाए। कैश बेस्ड वेलफेयर स्कीमें जीएसटी आने से पैसों की कमी से जूझ रहे हैं। बजट में राज्यों को प्रदत्त दी गई राशि किसी स्कीम से जुड़ी हुई नहीं होती, पहले के अभ्यासों के अनुसार फंड को उचित मदों के अंतर्गत भेजा जाए, सरकारी धन का राजनीतिक दुरुपयोग रोका जाए।
सरकार द्वारा संचालित विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को अब डिजिटल कर दिया गया है। यह श्रमिकों के लिए एक बड़ा सिर दर्द बन गया है। निरक्षरता, डिजिटल निरक्षरता, विभिन्न केंद्रों से फार्म भरने के लिए दी जाने वाली फीस, उपयोगकर्ताओं के लिए अपर्याप्त इंटर-फेस, इंटरनेट कनेक्शन समस्याएं आदि जैसी विभिन्न समस्याओं ने योजनाओं के लक्षित लाभार्थियों का जीवन कठिन बना दिया है। ऐसे में संघ मांग करता है कि मैनुअल तरीके को बहाल किया जाए और डिजिटलीकरण को धीरे-धीरे हासिल किया जाए। डिजिटलीकरण मुख्यतया ग्रामीण देश में एक विशुद्ध रूप से शहरी सपना है। बढती कीमतों को नियंत्रित किया जाना चाहिए।
इस मौके पर रामकृष्ण गुप्त, यमुना पाल, राकेश पांडेय, एके श्रीवास्तव, दूधनाथ, एपी शुक्ल, आदि मौजूद रहे।