वाराणसी

तो अब BJP में ठाकुरवाद बनाम ब्राह्मणवाद की जंग उतर आई सड़क तक!

योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद लगातार लग रहे ब्राह्मणों की उपेक्षा के आरोप के बीच सड़कों पर लगे ये पोस्टर, विवाद के कुछ ऐसे ही संकेत दे रहे हैं।

वाराणसीSep 03, 2017 / 03:18 pm

Ajay Chaturvedi

डॉ महेंद्र नाथ पांडेय

वाराणसी. दूसरे दलों पर जातिवाद का ठीकरा फोड़ने वाली भारतीय जनता पार्टी के अंदर ही अब जातीय संघर्ष की बुनियाद मजबूत हो चली है। इसका ताजा तरीन उदाहरण डॉ महेंद्र नाथ पांडेय को परशुराम बताने वाला पोस्टर है तो बनारस की सकड़कों पर जहां तहां चस्पा किया गया है। इसे लोग पार्टी के भीतर ठाकुरवाद बनाम ब्राह्मणवाद के नजरिए से देखने लगे हैं। राजनीतिक विश्लेषक भी उसी जातिवादी चश्में से इसकी चर्चा और समीक्षा करने लगे हैं।
 

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का सीएम बनने के तत्काल बाद जिस तरह की कार्रवाई हुई उससे ब्राह्मणों के बीच एक गलत संदेश गया। सीएम की गद्दी संभालने के बाद योगी आदित्यनाथ ने पूर्वांचल के दो बड़े ब्राह्मण चेहरों के खिलाफ कार्रवाई कराई, एक थे विजय मिश्र तो दूसरे गोरखपुर के हरिशंकर तिवारी। खास तौर से हरिशंकर तिवारी के खिलाफ की कार्रवाई को राजनीतिक हलके में विद्वेषपूर्ण कार्रवाई के रूप में लिया गया। कारण भी साफ था कि तिवारी के गोरखपुर निवास पर दी गई दबिश में ऐसा कुछ भी हाथ न लगा जो सीएम के कदम को सार्थक ठहरा सके। राजनीतिक गलियारों में जो चर्चा-ए-आम हुई कि यह तो इन दोनों धड़ों (ब्राह्मण व ठाकुर लॉबी) की पुरानी अदावत का परिणाम रहा। इसे पार्टी के भीतर ही एक गुट ने इस कदर फैलाया कि शीर्ष नेतृत्व को भी लगने लगा कि 2019 लोकसभा चुनाव से पहले अगर ब्राह्मण लॉबी को न सहेजा गया तो हालात बेकाबू हो सकते हैं। कारण कांग्रेस के यूपी की सियासत से हाशिये पर जाने के बाद ब्राह्मण पूरी तरह से नहीं तो काफी बड़ा तबका बीजेपी से जुड़ गया था। लेकिन वो किसी भी सूरत में एक ठाकुर को पचा नहीं पा रहे थे और अपनी लगातार हो रही उपेक्षा से मर्माहत थे। ये भाव आमजन के बीच तो था ही पार्टी के भीतर भी इसे लेकर अंदर ही अंदर आग सुलगने लगी थी। ऐसे में जैसे ही शीर्ष नेतृत्व को इसका आभास हुआ तो उन्होंने इसकी भरपाई करने की सोच ली। मौका भी था, केशव मौर्य डिप्टी सीएम बन चुके थे और यूं कहें कि उऩका जितना इस्तेमाल होना था वह यूपी विधानसभा चुनाव में कर लिया गया था। ऐसे में शीर्ष नेतृत्व ने डॉ महेंद्र पांडेय को सूबे की कमान सौंप दी।
 

इधर डॉ पांडेय को सूबे की कमान सौंपी गई उधर पार्टी के ब्राह्मण कार्यकर्ताओं की बांछें खिल गईं। जो कुछ अभी तक अंदर-अंदर चल रहा था वह सड़क पर आ गया। भाजपा के स्थानीय ओहदेदार भी इस बात से भली भांति अवगत रहे। ऐसे में कोई भी इस मुद्दे पर जुबां खोलने को तैयार नहीं। लेकिन यह तय माना जा रहा है कि कम से कम पार्टी के भीतर एक बड़े तबके ने राहत की सांस ली है। राजनीतिक तौर पर भी उन्हें लगा है कि अब शायद आगामी चुनावों में वे ब्राह्मण मतदाताओं को फिर से रिझाने में कामयाब हो जाएंगे। लेकिन उसी गुट में से कुछ लोगों ने अपने भावों को सार्वजनिक कर यह संदेश भी दे दिया कि बहुत दिनों तक वो शांत नहीं रह सकते। फिर जिस तरह से डॉ महेंद्र नाथ पांडेय को परशुराम के रूप में दर्शाया गया उसका मंतब्य भी साफ है। भारतीय परंपरा और साहित्य को पढ़ने व जानने वालों से परशुराम की पहचान छिपी नहीं है। यानी सोची समझी रणनीति के तहत डॉ पांडेय को परशुराम के रूप में दर्शाया गया है। यह पोस्टर संगठनात्मक दृष्टि से भी दूर तक तलक और गंभीर संकेत देने वाला है। भले ही अभी कोई इस पर न बोले, लेकिन यह चुप्पी गंभीर है, राजनीतिक विश्लेषक इसे तूफान के पहले की शांति के रूप में देख रहे हैं।
 

डॉ पांडेय के परशुराम वाले वायरल पोस्टर की बात करें तो कांग्रेस जनांदोलन के प्रदेश सह प्रभारी अनिल श्रीवास्तव ‘अन्नू’ ने कहा कि राजनीतक हलकों में एक पुरानी कहावत है कि जब जब किसी दल का जनाधार घटने लगता है तो वह जातिवाद की ही बैशाखी लेने को मजबूर होता है। उसी के तहत पहले योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाया गया फिर डॉ महेंद्र नाथ पांडेय को सूबे की कमान सौंप दी गई। लेकिन इससे आम ठाकुर और ब्राह्मण के ऊपर खास असर नहीं पड़ने वाला। उन्होंने कहा कि कल तक पानी पी पी कर सपा और बसपा को जातिवादी कह कर कोसने वाले खुद जब उसी पर उतारू हो गए हैं तो क्या कहना। पार्टी के इस मंसूबे को मतदाता भी अच्छी तरह समझ रहे हैं।
 
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