गोरखपुर व फूलपुर संसदीय सीट पर होने वाले उपचुनाव में सपा ने प्रत्याशी उतारे हैं जबकि बसपा ने अपना समर्थन दिया है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने साफ कर दिया है कि पहले की तरह इस बार भी उनकी पार्टी उपचुनाव नहीं लड़ेगी। सपा व बसपा का अपना कैडर वोटर है जिसके लिए पार्टी का सिंबल बहुत महत्पूर्ण है। ग्रामीण क्षेत्र के वोटर तो प्रत्याशी तक का नाम नहीं जानते हैं वह सिर्फ पार्टी सिंबल पर ही वोट देते हैं। सपा के वोटरों को दिक्कत नहीं होनी है क्योंकि दोनों ही सीट पर होने वाले उपचुनाव में उनके पार्टी का सिंबल रहेगा। सबसे बड़ी समस्या बसपा के वोटरों की होगी। पार्टी का सिंबल नहीं होने पर सपा के निशान पर वोट डलवाने की परीक्षा बसपा नेताओं की होगी। बसपा नेता इस परीक्षा में पास होते हैं तभी गठबंधन का लाभ प्रत्याशी को पहुंच पायेगा।
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मतों की संख्या से लगेगा कितना मिला बसपा का वोट
चुनाव परिणाम आने के बाद पता चलेगा कि सपा व बसपा के गठबंधन को जीत या हार मिलती है। चुनाव परिणाम से पता चलेगा कि किस प्रत्याशी को कितना वोट मिला है यदि सपा प्रत्याशी को बसपा का अधिक वोट नहीं मिलेगा तो भविष्य के गठबंधन पर संशय के बादल मंडराने लगेगा। सपा व बसपा भी इस बात को जानते हैं इसलिए वह दोनों दलों के कार्यकर्ताओं को एक करने में जुटे हुए हैं।
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गठबंधन होने के बाद सक्रिय हुए बागी
सपा व बसपा गठबंधन से कुछ नेता खुश हैं तो कुछ नाराज। गठबंधन पसंद नहीं करने वाले नेता पर्दे के पीछे से खेल करने में जुटे हुए हैं। उनका मानना है कि एक बार दोनों सीट सपा को मिल जाती है तो लोकसभा चुनाव 2019 के समय इन सीटों पर बसपा अपना दावा नहीं कर पायेगी। लंबे समय से इन सीटों पर चुनाव करने की तैयारी कर रहे बसपा नेताओं को फिर मौका नहीं मिल पायेगा। इसके चलते वह पर्दे के पीछे से ही खेल बिगाडऩे में जुटे हुए हैं।
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