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पर्यावरण संरक्षण को दरकिनार कर देश में कोयला आधारित संयंत्रों को मिल रहा बढावा

locationवाराणसीPublished: Mar 28, 2019 03:17:46 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

ग्रीनपीस, सिएरा क्लब और ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर द्वारा “वैश्विक कोयला संयंत्र परियोजनाओं” पर जारी रिपोर्ट.

coal-based plants in India

coal-based plants in India

वाराणसी. तकरीबन समूची दुनिया प्रदूषण की मार से त्रस्त है। तरह-तरह की बीमारियों की गिरफ्त में आते जा रहे हैं लोग। लेकिन भारत में इस दिशा में सार्थक प्रयास की कमी साफ नजर आ रही है। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सार्थक कदम उठाने की बजाय यहां उसे बढ़ावा देने वाले कामों को सरकार स्तर पर बढावा दिया जा रहा है। इस दिशा में यूपी सरकार का रवैया ज्यादा घातक हो चला है। यूपी सरकार राज्य में प्रदूषण से हो रही गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को दरकिनार करते हुए सरकार थर्मल पावर प्लांट को मंजूरी दे रही है। यह बेहद खतरनाक है।
उत्तर प्रदेश की पर्यावरण संस्था क्लाइमेट एजेंडा से जुड़ीं सानिया अनवर बताती हैं कि 28 मार्च 2019 को ग्रीनपीस, सिएरा क्लब और ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर द्वारा “वैश्विक कोयला संयंत्र परियोजनाओं” पर जारी रिपोर्ट बताती है कि लगातार तीसरे साल 2018 में भी निर्माणाधीन कोयला आधारित पॉवर प्लांट के विकास में कमी आई है। इस रिपोर्ट को ग्रीनपीस, सिएरा क्लब और ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर ने मिलकर तैयार किया है। यह रिपोर्ट ‘बूम एंड बस्ट: ट्रैकिंग ग्लोबल कोल प्लांट पाइपलाइन’निर्माणाधीन पॉवर प्लांट के सर्वे का पांचवा संस्करण है।
इस रिपोर्ट में सामने आया है कि पिछले साल नए बने कोल पावर प्लांट में 20 प्रतिशत (53 प्रतिशत पीछले तीन साल में) गिरावट आई है। वहीं नए बनने वाले प्लांट में 39 प्रतिशत (पीछले तीन साल में 84 फीसदी) कमी हुई है। निर्माण से पहले वाले प्लांट में 24 प्रतिशत (69 प्रतिशत पीछले तीन साल में) की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं अमरीका में ट्रम्प के लगातार कोयला आधारित ऊर्जा की वकालत करने के बावजूद वहां कोयला प्लांट को कम किया जा रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत और चीन में, जहां 2005 से अब तक 85 प्रतिशत नए प्लांट लगे हैं में भी नए कोल प्लांट में रिकार्ड कमी हुई है, फिर भी नए प्लांट प्रस्तावित हैं और उनकी मंज़ूरी दी जा रही है। 2018 में, भारत ने कोल पावर से अधिक अक्षय ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाया है। 17.6 गिगावाट ऊर्जा उत्पादन क्षमता में से 74 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा तकनीक से उत्पादित किया गया है। इसमें ज़्यादातर हिस्सा सोलर ऊर्जा है जो लगातार महंगे होते जा रहे कोयला आधारित बिजली से सस्ता है। सोलर पर आयात कर और जीएसटी के बावजूद यह तेजी से बढ़ रहा है। ग्रीनपीस इंडिया के विश्लेषण में सामने आया है कि 65 प्रतिशत कोयला आधारित बिजली अक्षय ऊर्जा से ज्यादा महंगी हो गई है।
उत्तर प्रदेश की पर्यावरण संस्था क्लाइमेट एजेंडा से जुड़े रवि शेखर कहते हैं, “यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य में प्रदूषण से हो रही गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को दरकिनार करते हुए सरकार थर्मल पावर प्लांट को मंजूरी दे रही है। खुर्जा थर्मल पॉवर प्लांट या कोई भी अन्य थर्मल पावर प्लांट लगाने में आने वाला खर्च अक्षय ऊर्जा संसाधनों की तुलना में दो गुना अधिक होगा। ऐसे में बेहतर होगा कि सरकार अक्षय ऊर्जा संसाधनों पर ज्यादा ध्यान दे और देशभर में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना लागू करवाने के लिए प्रतिबद्धता दिखाए।”
ग्रीनपीस इंडिया की पुजारिनी सेन ने कहा कि “थर्मल प्लांटों के अनुकूल बाज़ार न होने के बावजूद सरकारें नए थर्मल प्लाटों में पैसे खर्च रही हैं।” सेन ने कहा कि, “इसी वर्ष फरवरी में आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने खुर्ज़ा (यूपी) और बक्सर (बिहार) में दो पॉवर प्लांटो के लिए 11,089 करोड़ और 10,439 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। जब समूचा थर्मल ऊर्जा क्षेत्र गंभीर आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है, नए प्लांट बनाने की घोषणाएं जनता के पैसों की बर्बादी से ज़्यादा कुछ नहीं हैं।”
सानिया बताती हैं कि रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार के अनुसार, 40 गिगावट कोयला प्लांट आर्थिक रूप से घाटे का सौदा बन चुके हैं। साल 2018 में सिर्फ़ तीन गिगावट नयी क्षमता वाले कोल प्लांट को मंज़ूरी दी गई जबकि 2010 में यह 39 गिगावट था। अधिक्षमता और अक्षय ऊर्जा के सस्ते होते जाने के कारण कोयला आधारित संयंत्रों में निवेश घाटे का सौदा बन चुका है।

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