हां यहां बात हो रही है उन विकलांगों की जिनकी शिक्षा, परवरिश की बातें तो होती दिखती हैं। एक नहीं अनेक ऐसी संस्थाएं हैं जो इन विकलांगों के लिए काम कर रही हैं, उन्हें कामगार बनाने की पहल की साज़ी जोसेफ ने अपने दो साथियों संग मिल कर। इसके लिए उन्होंने CAFEBILITY FOUNDATION नामक संस्था बनाई और विकलांगों को जोड़ कर उन्हें कामगार बनाने की मुहिम छेड़ दी।
यू ही एक दिन इस कैफेटेरिया के बारे में पता चला तो पहुंच गया एक शापिंग प्लाजा में। शहर के बीचोबीच स्थित इस शापिंग प्लाजा के दूसरे तल पर है यह कैफेटेरिया। यहां पहुंच कर जो जाना वह चकित कर देने वाला और प्रेरणादायक रहा। इस संस्था के जनक साज़ी जोसेफ ने पत्रिका संवाददाता से बातचीत में बताया कि विकलांगों की दशा सुधारने के लिए अनेक संस्थाएं काम कर रही हैं पर उन्हें रोजगार से जोड़ने के बारे में कोई नहीं सोचता। सोचता भी होगा तो वैसी पहल नहीं दिखती। बस इसी सोच के साथ मैने अपने दो दोस्तों संग इनके लिए प्लान बनाया, कि क्यों ने इन्हें होटल इंडस्ट्री से जोड़ा जाए।
इसी सोच के साथ विकलांगों के लिए काम करने वाली संस्था किरन और ऐसी एक अन्य संस्था जो मुर्दहां में स्थित है वहां के लोगों से मिले, बात की। फिर उन्हीं लोगों से ऐसे विकलांगों को संस्था से जोड़ा। इनके लिए कैंप लगाया गया। उस कैंप से ही चयन किया गया और शुरू हो गया काम।
जोसेफ ने बताया कि पहले शहर के आईपी मॉल में इसकी शुरूआत की गई, फिर मलदहिया पर जब विनायक प्लाजा खुला तो यहां भी एक कैफेटेरिया कैफे की स्थापना की गई। उन्होंने बताया कि इस कैफेटेरिया में सैफ से लेकर कैटरर तक विकलांग हैं। वही सब कुछ बनाते हैं, वही परोसते हैं।
उन्होंने बताया कि कैफेटेरिया के लिए विकलांगों का चयन करना मुश्किल तो था पर उसके लिए कैंप लगा कर पहले उन्हें उनके काम के बारे में बताया, फिर उनका साक्षात्कार लिया। उसमें से कुछ नवयुवकों और नव युवतियो को सलेक्ट किया। बताया कि फिलहाल दोनों कैफेटेरिया में कुल 15 विकलांग काम कर रहे हैं। कई विकलांग यहां से निकल कर कहीं और काम करने चले गए। लेकिन इन्हें काम करता देख अब काफी संतोष होता है। कोशिश है कि इसे और आगे बढाया जाए, ज्यादा से ज्यादा विकलांगों को जोड़ा जाए। इस कैफेटेरिया में हर तरह के विकलांग हैं। मॉल में तो मूक-बधिरों की संख्या ज्यादा है।
जोसेफ ने बताया कि इस कैफेटेरिया के लिए कहीं से कोई अनुदान नहीं, कोई सरकारी मदद नहीं बस अपने कुछ संपन्न साथियों के डोनेशन से काम चला रहे है। इस नेक काम के लिए देश के महानगरों के संपन्न लोग दान देने को उत्सुक हैं। उन्हीं के सहारे संस्था चलाई जा रही है। मकसद मुनाफा कमाना नहीं, बल्कि इन जरूरतमंदों को कामगार बनाना है।