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भारत में भयावाह हुई कैंसर की समस्या, 2020 तक हर साल 11 लाख पहुंच सकता है मौतों का आंकड़ा

locationवाराणसीPublished: Feb 03, 2019 04:56:02 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

औरतों के स्तन और गर्भाशय कैंसर में वृद्धि तो पुरुषों के मुख कैंसर में हो रहा इजाफा।

स्तन कैंसर

स्तन कैंसर

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी


वाराणसी. कैंसर जिसे सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मरीज हो या तीमारदार सबकी हालत पस्त हो जाती है। मरीज की तो उसी दिन आधी मौत हो जाती है जब उसे पता चलता है कि वह कैंसर से पीड़ित है। परिवार पर भी वज्रपात हो जाता है। पूरा परिवार सदमें में चला जाता है। यह सब नाजानकारी के चलते होता है। बीएचयू आंकोलॉजी विभाग की प्रो मल्लिका तिवारी ने कैंसर निरोध दिवस की पूर्व संध्या पर पत्रिका से बातचीत में बताया कि कैंसर का उपचार संभव है यदि प्रारम्भ में पता चले और सही इलाज हो।
क्यों मनाते हैं कैंसर निरोध दिवस

बता दें कि 04 फरवरी, पूरी दुनिया में कैंसर निरोध दिवस के रूप में मनाया जाता है। कैंसर के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए 2008 में अंतर्राष्ट्रीय कैंसर कंट्रोल संगठन और कैंसर की बीमारी तथा मृत्यु दर 2020 तक कम करने के लिए इसकी शुरूआत की गई। ऐसे में पत्रिका ने लोगो को जागरूक करने और विश्व कैंसर निरोध दिवस की परिकल्पना को साकार करने के लिहाज से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के आंकोलॉजी विभाग की प्रो मल्लिका तिवारी से बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के संपादित अंश…
पूर्वोत्तर राज्यों में इस तरह के कैसंर का खतरा ज्यादा

बीएचयू के आंकोलॉजी विभाग की प्रो मल्लिका तिवारी ने पत्रिका संग बातचीत में बताया कि इंडियन काउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा प्रकाशित संकलित लेख में बताया गया है कि भारत वर्ष में पुरुषों में फेफड़े, मुंह, भोजन की नली एवं पेट का कैंसर तथा स्त्रियों में स्तन और गर्भाशय का कैंसर विशेष रूप से हो रहा है। उत्तर पूर्व के प्रदेशों में ऊपरी एयरो-पाचन तंत्र में होने वाले कैंसर के होने की अधिकता है, जिसमें मुँह का कैंसर (मौखिक गुहा), ग्रसनी, अधोग्रसनी, नासाग्रसनी, गले, भोजन नलिका और पेट के कैंसर प्रमुख हैं।
कैंसर दर में वृद्धि
आईसीएमआर के अनुसार 1982 से 2010 के बीच कैंसर होने की दर में वृद्धि प्रतीत होती है। इस समयोजित उम्र दर औरतों के स्तन कैंसर एवं गर्भाशय के कैन्सर में वृद्धि हुई है, जबकि गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर समय के साथ भारत में घट रहा है। उधर पुरुषों में फेफड़े एवं मुंह के कैंसर में वृद्धि हो रही है। उत्तर एवं पूर्वोत्तर भारत में विशेष रूप से पित्त की थैली (पित्ताशय) के कैंसर के होने की उच्च दर है। यह संसार में सबसे अधिक घटना क्षेत्रों में से है। यह उम्र के 50 वर्ष से अधिक महिलाओं में सामान्य है, हालांकि एक बढ़ती प्रवृत्ति पुरुषों में भी देखी गई है।
2020 तक होंगे 11 लाख से ज्यादा कैंसर रोगी
उन्होंने बताया कि भारत में 2020 तक यह अनुमान किया गया है कि लगभग 11,48,757 मरीज कैंसर से पीड़ित होंगे, जिसमें तम्बाकू से सम्बन्धित 31,6734, स्तन 12,3634, सरविक्स (गर्भाशय ग्रीवा) 12,3291, गैस्ट्रोइन्टेस्टानाइल की नली 22,8056, पित्ताशय 33,003 (आईसी.एम.आर.) के होंगे। प्रो तिवारी ने बताया कि यह अफ़सोस की बात है कि प्रारंभिक अवस्था में कैंसर में दर्द का अनुभव नहीं होता है और लोगों की जानकारी भी नहीं हो पाती है। मरीज को देर में चिकित्सकों के पास ले जाने से रोग के ठीक (इलाज) होने की सम्भावनाएं कम हो जाती है।
बचा जा सकता है कैंसर से
बहुत बड़ी संख्या में मुंह, भोजन की नली एवं फेफड़े के कैंसर से लोगों को बचाया जा सकता है, यदि लोग गुटखा तम्बाकु, बीड़ी, पान, सुपारी एवं सिगरेट की आदत त्याग दें।
ये है लक्षण
ठीक न होने वाले घाव, मुंह से लगातार निगलने में परेशानी, पुरानी खांसी, निगलने में कठिनाई कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।

स्तन कैंसर के लक्षण
50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को विशेष रूप से स्वयं स्तन का परीक्षण करना चाहिए। किसी स्तन गांठ, स्तन में विकृति, निप्पल से स्त्राव, स्तन कैंसर के लक्षण है। भले ही परिवार में किसी को स्तन कैंसर रहा हो या नहीं।
बच्चेदानी के मुंह के कैंसर के लक्षण
ऐसे ही महिलाओं में रजोनिवृत्ति या सहवास के बाद योनि से असामान्य रक्त स्त्राव के लक्षण को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, क्योंकि ये औरतों में रक्त स्त्राव स्पष्ट रूप से बच्चेदानी के मुंह का कैंसर का लक्षण हो सकता है।
कैंसर की रोकथाम को अब भारत में भी वैक्सिनेशन की सुविधा
सबसे अच्छी बात है कि गर्भाशय ग्रीवा के रोकथाम के लिए टीका उपलब्ध है। ह्यूमन पेपीलोमावायरस सिरोटाइप से 16/18 लगभग 76.7 प्रतिशत भारत में सरविक्स कैंसर होने के कारण है। दो वैक्सीन को विश्व स्तर पर उपयोग के लिए मंजूरी दे दी गयी है और ये भारत में भी उपलब्ध है। लड़कियों के लिए टीकाकरण की शुरूआत 9-12 साल की उम्र है जिसे 26 साल की उम्र तक दिया जा सकता है, जिसमें तीन खुराक की आवश्यकता होती है।
शरीर किसी अंग में हो तकलीफ तो तुरंत विशेषज्ञ के पास जाएं
उन्होंने बताया कि यह एक बहुत कठोर वास्तविकता है कि मरीज कैंसर विशेषज्ञ के पास देर में प्रस्तुत होता है बल्कि कई अपना अधूरे उपचार के बाद पहंचते हैं। बहुत से मरीज पित्त की थैली के कैंसर का दूरबीन विधि से आपरेशन कराने के बाद चिकित्सक के पास उपस्थित होते हैं। उसी प्रकार से स्तन कैंसर के मरीज का आधा स्तन निकलवाने के बाद तथा बच्चेदानी के मरीज गर्भाशय निकलवाने के बाद। प्रो तिवारी ने बताया कि मरीज हमारे यहां आपरेशन के बाद बिना बायोप्सी के रिपोर्ट एवं बिना उपचार अभिलेख के पहुंचते हैं। यह समझाना महत्वपूर्ण है कि यदि कैंसर प्रारम्भिक अवस्था में और विशेषज्ञों द्वारा सही उपचार किया जाए तो ठीक हो जाता है।
विशेषज्ञ के सुझाव

1-ग्रामीणों में जागरूकता ज्यादा जरूरी
डॉ तिवारी ने कहा कि विशेष रूप से ग्रामीण जनता में कैन्सर की जानकारी के प्रति जागरूकता की आवश्यकता को अतिशीघ्र कदम उठाये जायं। इसके लिए प्राथमिक स्वास्थ्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, जो न कि केवल प्रसूति एवं बाल स्वास्थ्य में प्रशिक्षित हो बल्कि कैंसर जागरूकता की ओर भी सांकेतिक हों। यह हमारे समाज में एक गहरा सकारात्मक प्रभाव डालेगा कैंसर की रोकथाम के लिए जैसे कि अभी तक हमारे देश में कैंसर स्क्रीनिंग कार्यक्रम नहीं है।
2-तम्बाकू उत्पाद के उपयोग पर रोक लगे
इसका दूसरा पहलू यह है कि स्वास्थ्य नीतियों में तम्बाकू उत्पाद के उपयोग पर रोक लगे।

3- देश में कैंसर अस्पताल की वृद्धि हो जिससे कि मरीजों को इलाज कराने में सुविधा हो
4- नेशनल कैंसर सचिवालय के आंकड़े के अनुसार सभी प्रकार के कैंसरों में 40 से 50 प्रतिशत तक कैंसर तम्बाकू से संबंधित मिलते हैं।

5-2020 तक विश्व बैंक का अनुमान है कि कैंसर से होने वाली मृत्यु 150000 (डेढ़ लाख) तक बढ़ सकती है।
6-धूम्रपान में तम्बाकु के लगभग 4000 हजार रसायन सम्मिलत हैं, जिसमें से 70 कैंसर के लिए उत्तरदायी माने गए हैं। इनको चिकित्सिय भाषा में कारसिजेन्स कहे जाते हैं।

7- धूम्रविहिन तम्बाकू में कम से कम ऐसे 28 रसायन पाये जाते हैं जो कैंसर को बढ़ाने में मददगार होते हैं। धूम्रविहिन तम्बाकू में सबसे ज्यादा खतरनाक रसायन टोबैको नाइट्रोसेमिन्स होता है जो तम्बाकू के उत्पादन, तम्बाकू के निर्माण तथा पुराने तम्बाकू में अधिक पाया जाता है। नाइट्रोसेमाइन्स का स्तर तम्बाकू उत्पाद में अलग-अलग मिलता है। वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि तम्बाकू में नाइट्रोसेमाइन्स का स्तर कैंसर के खतरे के लिए मुख्य उत्तरदायी कारक होता है। नाइट्रोसेमाइन्स के तत्व के अलावा धूम्रविहिन तम्बाकू में पोलोनियम 210 (रेडियोधर्मी तत्व) भी पाये जाते हैं। विशेषकर जिस तम्बाकू से खाद बनायी जाती है। यह पोलीन्युक्लियर हाइड्रोकार्बोन के लिए भी जाने जाता है।
8-जो लोग सुर्ती या पान का सेवन करते हैं, उन्हें मुख कैन्सर का खतरा सबसे अधिक होता है इसे चिकित्सीय भाषा में ओ.एस.एम.एफ. (ओरल सबमुकोसा फाइब्रोसिस) कहा जाता है। यह एक लम्बी अवधि तक चलने वाली खतरनाक बीमारी है, जिसमें मुख और जबड़े पुरी तरह धीरे-धीरे बढ़ व फूल जाते हैं तथा रोगी के लिए कुछ भी खाना या बोलना या बातचीत करना सम्भव नहीं रह जाता। कभी-कभी वह अपना मुंख खोल भी नहीं पाता। ऐसी दशा में इस रोग के प्रसार की सम्भावना अधिक बलवती हो जाती है तथा कभी-कभी तो रोग से प्रभावित स्थान की सर्जरी भी करनी पड़ती है। जो लोग पान में चूने का प्रयोग करते हैं वह भी कभी-कभी रक्त कैन्सर के रोगी हो जाते हैं। एरोकोलाइन जो कि प्रायः तम्बाकु की जड़ों में पाया जाता है, सेलीवेशन को बढ़ाता है तथा कैन्सर के उत्प्रेरक का कार्य करता है।
9- जो लोग गुटका, पान-मसाला, पान मे जर्दे आदि का प्रयोग करते हैं अथवा बीड़ी, सिगरेट, हुक्का जैसे धुम्रपान की आदतों के शिकार हैं उन सभी को आज धुम्रपान को नकारने का दिन है।
प्रो मल्लिका तिवारी

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