विगत दो वर्ष से लंबित छावनी बोर्ड चुनाव कराने की मांग को लेकर बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष शैलेंद्र सिंह ने रक्षा मंत्री को लिखा पत्र। उन्होंने अपने पत्र के माध्यम से छावनी बोर्ड के चुनाव न कराने क लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर आघात बताया है। लिखा है कि अगर जल्द बोर्ड के चुनाव न हुए तो बोर्ड से संबंधित सदस्य व पदाधिकारी आंदोलन को बाध्य होंगे।
वाराणसी छावनी परिषद
वाराणसी. छावनी बोर्ड के पूर्व उपाध्यक्ष व निवर्तमान सदस्य शैलेंद्र सिंह ने छावनी बोर्डों के चुनाव अकारण लंबे और अनिश्चित कालीन स्थगन पर एक बार फिर प्रश्नचिन्ह उठाते हुए रक्षामंत्री को पत्र लिखा है। उन्होंने पत्र में लिखा है कि केंद्र सरकार की यह नीति लोकतंत्र एवं संविधान दोनों का गला घोंटने जैसा है। इससे छावनी क्षेत्र न केवल राजनीतिक नागरिक अधिकारों से वंचित हैं, बल्कि जनता की समस्याओं के लोकतांत्रिक एवं वैधानिक माध्यमों से समाधान की समूची संविधान प्रदत्त प्रक्रिया ही बाधित है। इससे नागरिकों में असन्तोष बना हुआ है।
कोविड काल में अन्य सभी चुनाव हुए पर छावनी परिषद ही रहा अछूता शैलेंद्र सिंह ने पत्र में लिखा है कि कोविड काल में अन्य सभी संवैधानिक निकायों के चुनाव होते रहे हैं। लेकिन छावनी बोर्डों के चुनाव दो वर्ष से स्थगित रखे गए। कोविड नियंत्रण के साथ जनजीवन सामान्य भी हो चुका, लेकिन छावनी क्षेत्रों का स्थानीय स्वशासन सैन्य अधिकारियों की मुट्ठी में संविधान एवं लोकतंत्र के तकाजों के खिलाफ पूरी तरह जकड़बंद है। छावनी के स्थानीय स्वशासन से जुड़े विधिक सुधार के किसी विधेयक के संसद में लंबित होने की भी बात अधिकारी कर रहे हैं। लेकिन संसद भी लगातार अपने अन्य कामकाज निपटा रही है।
चुनाव न कराना सरकार की नीयत पर खड़ा कर रहा सवाल ऐसी स्थिति में इस विधिक सुधार विधेयक को अकारण लटका कर रखना सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करता है। यदि संसद नए सुधार नहीं पारित कर रही है, तो उस देरी के नाम पर पुरानी स्थापित विधि से चुनाव कराना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्थानीय निकायों का समय पर चुनाव होना एक बाध्यकारी संवैधानिक जिम्मेदारी है। ऐसा न करने के गलत बहानों के सहारे सरकार संविधान के 74 वें संशोधन से स्थापित संवैधानिक व्यवस्था को रौंदने के हठ के तानाशाहीनूर्ण रवैये का परिचय दे रही है।
नागरिकों के हक व हुकूक की हत्या उन्होंने पत्र में यह भी लिखा है कि छावनी क्षेत्रों के लोग 1924 के छावनी बोर्ड अधिनियम में सुधार के संशोधनों के विरुद्ध नहीं हैं। लेकिन उस प्रक्रिया को अनन्त काल तक लटकाए रखकर देश की 62 छावनियों के लाखों नागरिकों के नागरिक राजनीतिक हक और अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से अपनी बुनियादी समस्याओं के समाधान की उनकी आकांक्षा को रौंदा नहीं जा सकता। अत: सरकार गंभीरता इसे इस अलोकतांत्रिक गतिरोध को तोड़ने एवं चुनाव कराने की पहल करे और इस मुद्दे पर जनांदलन की मजबूरी नागरिकों पर न थोपे।