वर्ष 2012 में यूपी में सपा को पूर्ण बहुमत मिला था। तत्कालीन सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने मास्टर स्ट्रोक खेलते हुए अखिलेश यादव को सीएम बनाया था। वर्ष 2016 के पहले कहने को तो अखिलेश यादव ही सीएम थे लेकिन सत्ता तीन नेताओं के इशारे पर चलती थी। मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव के बाद सीएम अखिलेश सत्ता चलाते थे उस समय कहा जाता था कि यूपी में तीन सीएम हैं। अधिकारियों पर सीएम का खौफ नहीं रहता था क्योंकि कोई मुलायम सिंह से जुड़ा था तो किसी के सिर पर शिवपाल का हाथ था। यूपी चुनाव 2017 के छह पहले मुलायम परिवार में हुए विवाद के बाद ही पूरी तरह से सत्ता अखिलेश यादव के पास आयी थी। इस दौरान बनारस का राजघाट पुल भगदड़, मथुरा के जवाहर बाग कांड, मुजफ्फर नगर दंगा, भर्ती में जाति के लोगों का ध्यान देने आदि आरोपों से सपा सरकार घिर चुकी थी। गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश सरकार पर जमकर हमला बोला था। लोकसभा चुनाव 2014 में सपा को सबसे करारी शिकस्त मिली थी उसके बाद यूपी विधानसभा में भी सपा को हार मिली। अखिलेश यादव के ही सिर पर हार का भी ताज सजा था।
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सीएम योगी आदित्यनाथ की भी वैसी हो रही हालत
यूपी चुनाव में बीजेपी ने किसी को सीएम प्रत्याश नहीं बनाया था इसके बाद भी पीएम नरेन्द्र मोदी की लहर व अमित शाह के रणनीति के चलते बीजेपी को तीन सौ से अधिक सीट मिली। इसके बाद सीएम योगी को यूपी की कमान सौंपी गयी है। सीएम बनने के बाद निकाय चुनाव में बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया था यहां तक तो सब ठीक चल रहा था लेकिन गोरखपुर, फूलपुर, कैराना संसदीय सीट व नूरपुर विधानसभा चुनाव में भगवा दल की करारी शिकस्त के बाद सारा समीकरण बदल गया है। हार के बाद जिस तरह से बीजेपी में बगावत के सुर बुलंद होने लगे हैं उससे साफ हो जाता है कि बीजेपी सरकार में भी सत्ता कई लोग चला रहे हैं। सीएम योगी के साथ डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या व दिनेश शर्मा भी यूपी की सत्ता के केन्द्र में है। इसके अतिरिक्त आरएसएस व अमित शाह का भी यूपी की सत्ता में दखल होता है। सीएम योगी की स्थिति भी अखिलेश यादव की तरह होती जा रही है। अखिलेश यादव ने लंबे समय के बाद सत्ता की चाबी अपने हाथ में ले ली थी लेकिन सीएम योगी के लिए यह भी करना बेहत कठिन है। अखिलेश यादव एक तरफ मायावती का साथ लेकर संसदीय चुनाव 2019 में अपनी ताकत बढ़ाने में जुटे हुए हैं तो दूसरी तरफ यह चुनाव सीएम योगी का भविष्य भी तय कर सकता है।
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यूपी चुनाव में बीजेपी ने किसी को सीएम प्रत्याश नहीं बनाया था इसके बाद भी पीएम नरेन्द्र मोदी की लहर व अमित शाह के रणनीति के चलते बीजेपी को तीन सौ से अधिक सीट मिली। इसके बाद सीएम योगी को यूपी की कमान सौंपी गयी है। सीएम बनने के बाद निकाय चुनाव में बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया था यहां तक तो सब ठीक चल रहा था लेकिन गोरखपुर, फूलपुर, कैराना संसदीय सीट व नूरपुर विधानसभा चुनाव में भगवा दल की करारी शिकस्त के बाद सारा समीकरण बदल गया है। हार के बाद जिस तरह से बीजेपी में बगावत के सुर बुलंद होने लगे हैं उससे साफ हो जाता है कि बीजेपी सरकार में भी सत्ता कई लोग चला रहे हैं। सीएम योगी के साथ डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या व दिनेश शर्मा भी यूपी की सत्ता के केन्द्र में है। इसके अतिरिक्त आरएसएस व अमित शाह का भी यूपी की सत्ता में दखल होता है। सीएम योगी की स्थिति भी अखिलेश यादव की तरह होती जा रही है। अखिलेश यादव ने लंबे समय के बाद सत्ता की चाबी अपने हाथ में ले ली थी लेकिन सीएम योगी के लिए यह भी करना बेहत कठिन है। अखिलेश यादव एक तरफ मायावती का साथ लेकर संसदीय चुनाव 2019 में अपनी ताकत बढ़ाने में जुटे हुए हैं तो दूसरी तरफ यह चुनाव सीएम योगी का भविष्य भी तय कर सकता है।
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