बता दें कि 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव के बाद 11 विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव होने हैं। लेकिन इन उपचुनावों से कांग्रेस खुद को दूर रख सकती है। कारण साफ है, पहले 2017 विधानसभा में मिली करारी हार के बाद लोकसभा चुनाव में पार्टी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। इस बार पार्टी महज एक सीट ही जीत सकी है। खुद पार्टी अध्यक्ष को भी हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में प्रदेश के कांग्रेस नेता उपचुनाव में एनर्जी बर्बाद करने के मूड में नहीं हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक उन्होंने आलाकमान को लिख कर दे दिया है कि उप चुनावों से दूरी ही बनाए रखना मुनासिब होगा।
लोकसभा चुनाव में भी मिली करारी हार के बाद कांग्रेस आलाकमान ने अगर यूपी की कांग्रेस इकाई की सलाह को मान लिया तो अगले कुछ महीनों में यूपी में होने वाले 11 विधानसभा सीटों के उप−चुनाव में पार्टी प्रत्याशी नजर नहीं आएंगे। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस सबसे पहले संगठन को खड़ा करेगी। इसके तहत हर जिला, शहर, ब्लाक, वार्ड और बूथ स्तर तक संगठनात्मक ढांचा खींचा जाएगा। यहां यह भी बता दें कि प्रदेश में 2017 विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश नेतृत्व भले बदला हो पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का गठन तक नहीं हुआ। कुछ वरिष्ठ उपाध्यक्ष ही जोड़ दिए गए थे। ऐसे में डॉ निर्मल खत्री की टीम ही अब तक काम कर रही है। जिला व महानगर कमेटियां तो 2012 से यथावत चली आ रही हैं। इसमे कोई बदलाव नहीं हुआ है। ऐसे में पार्टी सबसे पहले संगठनात्मक ढांचे को दुरुस्त करने पर जोर देगी।
राजबब्बर के इस्तीफे पर अभी तक कोई निर्णय नहीं हो सका है। कारण अभी राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर ही पार्टी के भीतर मान मन्नौवल का दौर चल रहा है। अगर राहुल गांधी वरिष्ठ कांग्रेसजनों का सुझाव मान कर कुछ दिनों की मोहलत देते हैं तो ही प्रदेश स्तर पर कोई कार्रवाई होगी। ऐसे में पर प्रदेश संगठन में बदलाव होगा। नया अध्यक्ष आएगा। वह अपनी कमेटी गठित करेगा। फिर निचले स्तर पर परिवर्तन हो सकते हैं।
वैसे भी लोकसभा चुनाव प्रचार के समय ही राहुल गांधी संकेत दे दिया था कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा को लोकसभा चुनाव से अधिक 2022 में होने वाले विधान सभा चुनाव को ध्यान में रखकर भेजा गया है। कांग्रेस अब इस ओर फिर से बढ़ना चाहती है। इसी को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भी कांग्रेस आलाककामन को सलाह दी है वह अगले कुछ माह में होने वाले विधान सभा के उप चुनावों से से दूरी बनाकर रखें। इन कांग्रेसियों की सलाह है कि कमजोर संगठन के रहते बार बार चुनावी परीक्षा में फजीहत कराना उचित नहीं है। उप−चुनाव में बिना पूरी तैयारी के कूदना पार्टी हित में नहीं होगा। ऐसे में बेहतर यही है कि पार्टी पूरी ताकत से मिशन−2022 को कामयाब बनाने में अभी से जुट जाए। ब्लाक, जिला और प्रदेश स्तर पर जरूरी बदलाव के साथ पुख्ता रणनीति तैयार की जाए, जिस पर अमल करने के साथ पदाधिकारियों की जवाबदेही भी सुनिश्चित हो।