कांग्रेस सचिव बाजीराव खड़े और यूपी विधानमंडल दल के नेता अजय लल्लू सुबह से ही ले रहे फीडबैक महिला, पार्षद, वार्ड अध्यक्षओं की तादाद रही नगण्यजिला व शहर के कई पदाधिकारी भी नहीं पहुंचे
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डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदीवाराणसी. लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद यूपी कांग्रेस में बदलाव की कवायद तेज हो गई है। रायबरेली में हुई बैठक में ही पार्टी महासचिव व पूर्वांचल प्रभारी प्रियंका गांधी ने संगठन में बदलाव के संकेत दे दिए थे। वहीं उन्होंने कह दिया था कि सारी कमेटियां भंग है और वह पुनर्गठन सबकी राय आने के बाद करेंगी। उसके बाद अब उनके दूत अगल-अलग जिलों में जा कर आम कांग्रेसजनों से फीडबैक लेने की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं। इसी कड़ी में रविवार को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव बाजीराव खड़े और उत्तर प्रदेश कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता अजय सिंह (लल्लू) बनारस पहुंचे।
मैदागिन स्थित कांग्रेस भवन में सुबह 11 बजे से ही इन दोनों नेताओं ने आम कांग्रेसियों से अलग-अलग मिल कर बनारस कांग्रेस की स्थिति जानने की कोशिश की। यह प्रक्रिया देर शाम तक जारी रही। इस दौरान जो भी मिलने आया उससे उसका पूरा बायोडाटा भरवाया गया। मसलन नाम, उम्र, पार्टी में किस पद पर हैं, कभी कोई चुनाव लड़ा है या नहीं, हां की सूरत में कौन सा चुनाव लड़ा। इसके अलावा पार्टी संगयठन के प्रति टिप्पणी। फार्म भरने के बाद वह अलग कमरे में एक व्यक्ति या समूह से मिल रहे हैं। अच्छी बात यह कि वो जहां आम कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं वहां संगठन का कोई पदाधिकारी नहीं है। यानी सबको खुल कर अपनी बात कहने का मौका मिल रहा है। संभवतः ऐसा पहली बार हो रहा है। हालांकि कई समूहों में भी लोग मिले और अपनी बात रखी।
ऐसे में जो भी वहां पहुंचा उसने खुल कर अपनी बात रखी। कुछ नेताओं ने सगठन के प्रति अपनी नाराजगी को खुल कर प्रकट किया। बताया कि संगठन में परिवर्तन पार्टीहित में है। एक तो छह-सात साल से यही लोग संगठन चला रहे हैं। इस दौरान इनकी काबिलियत यह है कि जितने भी चुनाव हुए सभी में करारी हार का सामना करना पड़ा। चाहे वह पंचायत स्तर का चुनाव हो, नगर निकाय का चुनाव हो या विधानसभा, लोकसभा का चुनाव। उन्होंने बताया कि बनारस में संगठन नाम की चीज है ही नहीं।
हालिया लोकसभा चुनाव में हार की चर्चा करते हुए कुछ लोगों ने यहां तक कहा कि जब पोलिंग स्टेशन पर पार्टी की चौकियां ही नदारद हों। बूथ कमेटियां कहीं हैं ही नहीं तो सक्रियता आए कहां से। लिहाजा संगठन को बदलना अनिवार्य है। प्रियंका गांधी के दूत ने यह भी जानना चाहा कि जिला और शहर का नेतृत्व किसे सौंपा जा सकता है। इस पर कई तरह की राय सामने आई। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि जिले के सक्रिय नेताओं से पांच-पांच नाम मांग लिए जाएं फिर उसमें से किसी का चयन कर लिया जाए। कुछ लोगों ने अपनी दावेदारी भी पेश की। कुछ की राय थी कि संगठन का अध्यक्ष कोई हो जानकार हो किसी के पाकेट का ना हो, अनुभव एवं योग्यता को वरीयता मिले।
पार्टी में गुटबाजी का मुद्दा भी कई लोगों ने उठाने की कोशिश की जिस पर दोनों ही नेताओं ने कहा कि कहीं कोई गुट नहीं होना चाहिए, गुट केवल का ही होगा। ये बात लोगों को अच्छी तो लगी पर बाहर आ कर वो ये भी टिप्पणी करते पाए गए कि अरे सब सिद्दांत त बघारत हौ। सालन से यही सुन रहे हैं हम लोग। लेकिन हैरत वाली बात ज्यादातर पार्षदों, महिला कार्यकताओं, युवाओ, वार्ड व ब्लाक अध्यक्षों तक का इस बैठक से दूरी बनाना रहा। पत्रिका ने ऐसे कुछ लोगों से संपर्क किया तो उनका जवाब था कि इस तरह की बैठक से क्या होने वाला है। दरअसल उन्हें यह कयास ही नहीं था कि ये दोनों नेता उनसे अकेले में मिलेंगे। वो यह कहते पाए गए कि संगठन के पदाधिकारियों के सामने कौन उनकी बुराई करेगा। लेकिन जब उन्हें पत्रिका से यह जानकारी हुई कि नेता सबसे अलग अलग मिल रहे हैं तो उन्हें पश्चाताप भी हुआ कि मौका हाथ से निकल गया।