बता दें कि कांग्रेस जनांदोलन समिति के प्रदेश सह प्रभारी और जिले के प्रभारी ने घोषणा की थी कि नवरात्र से इंदिरागांधी जयंती तक पार्टी वार्ड परिक्रमा करेगी। पहले तय हुआ कि एक दिन में एक वार्ड में जाएंगे, लोगों से मिलेंगे। उनकी समस्या जानेंगे, फिर समग्र रूप से उन समस्याओं का हल निकालने के लिए संबंधित विभागों पर धरना-प्रदर्शन होगा। फिर जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन किया जाएगा। कुछ दिनों बाद यह तय हुआ कि एक दिन में दो से तीन वार्डों की परिक्रमा की जाएगी। इसके लिए जिला प्रभारी ने कुछ मुद्दे भी तय किए थे। इसमें बिजली, पानी, साफ-सफाई, आईपीडीएस, स्कूलों में दाखिले, स्कूलों की फीस, मंदिर व पुरातात्विक धरोहरों का संरक्षण आदि को शामिल किया गया था। लेकिन नवरात्र तो बीत ही गया अब दीपावली भी आ गई। लेकिन कहीं कोई कांग्रेसी किसी मुद्दे पर आमजन के बीच नहीं पहुंच सका। कहा गया था कि कांग्रेसी लोगों से मिल कर उनके अंदर यह विश्वास पैदा करेंगे कि हम हैं विकल्प। इसमें शहर से गांव तक के मुद्दों को शामिल किया गया था। कहा गया था कि नगर निगम, गंगापुर नगर पंचायत और रामनगर नगर पालिका परिषद सभी जगह जनांदोलन होंगे।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि ऐसा नहीं कि पार्टी को ज्वलंत मुद्दे नहीं मिले इस दौरान। लेकिन पार्टी किसी मुद्दे को भुनाने में कामयाब नहीं हो सकी। सबसे बड़ा मुद्दा इन दिनों तैर रहा है बीएचयू बवाल का। इस मुद्दे को आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी, अपना दल, भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी तक ने भुनाने की पुरजोर कोशिश की। कांग्रेस के आनुसांगिक संगठन राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) से जुड़े छात्र-छात्राओं ने पूरे बीएचयू आंदोलन के दौरान बढ-चढ़ कर हिस्सा लिया। एनएसयूआई के पूर्वी उत्तर प्रदेश प्रभारी से लगायत जिला अध्यक्ष तक ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। लेकिन इन छात्रों को मुख्य संगठन का तनिक भी साथ नहीं मिला। सीधे तौर पर देखें तो बीएचयू के इस पूरे मामले पर जिस तरह से सत्ता पक्ष के बयान लगातार आते रहे अगर पार्टी चाहती तो इसे बड़ा मुद्दा बना कर युवाओं को जोड़ा जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अगर इंदिरा गांधी जन्म शताब्दी वर्ष समारोह के तहत आयोजित सम्मलेन में दिल्ली और लखनऊ से आए नेताओं के बयानों को छोड़ दिया जाए या लाठीचार्ज की घटना के ठीक दूसरे दिन लंका पर आयोजित प्रतिरोध मार्च (जो साझा विपक्ष का कार्यक्रम था) के बाद कोई कहीं नहीं दिखा। हां! इस अतिसंवेदनशील मुद्दे पर भी पार्टी धड़ों में बंटी दिखी। अगर विनय शंकर राय मुन्ना और श्वेता राय ने इस आंदोलन की अलख जलाए रखने की ठानी तो बाकी लोगों ने इससे किनारा साध लिया। नतीजा सामने है। एनएसयूआई के छात्रों की पीठ पर हाथ रखने के लिए भी आम आदमी पार्टी. समाजवादी पार्टी के नेताओं आगे आना पड़ रहा है। ये एक ऐसा मुद्दा था जिस पर न केवल नगर निकाय चुनाव बल्कि 2019 के आम चुनाव तक के लिए बिसात बिछाई जा सकती थी। बीएचयू अस्पताल में आपरेशन के बाद हुई मौत के मुद्दे को भी कांग्रेस ठीक से नहीं भुना पाई। पूछने पर पार्टी के बडे नेताओं का जवाब होता है हमने ही तो सबसे पहले धरना दिया था।
महज कुछ गिने चुने लोग हैं जो फेसबुक पर सक्रिय नजर आ रहे हैं। हर दो-चार दिन के अंतराल पर कुछ बयान ह्वाट्सएप पर वायरल होते नजर आते हैं। लेकिन सड़क पर उतरने का माद्दा किसी में नहीं दिख रहा। ये हाल तब है जब प्रमुख विपक्षी दल भाजपा अंदर ही अंदर नगर निकाय चुनाव से लेकर 2019 तक के चुनावों तक की बिसात बिछाने में पूरी गंभीरता से जुड़ी है। कुछ राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि सोशल मीडिया पर जो लोग जुड़े हैं भी हैं वो राष्ट्रीय मुद्दों पर ज्यादा बहस करते दिखते हैं बनिस्पत स्थानीय मुद्दों के। गुजरात, महाराष्ट्र, हिमांचल प्रदेश की राजनीति की चर्चा करते नजर आ जाएंगे। राहुल गांधी के बयानों को वायरल करते नजर आएंगे पर बनारस में क्या हो रहा है इसकी तरफ उनका ध्यान नहीं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि पार्टी उपाध्यक्ष बीएचयू की घटना का जिक्र गुजरात में करते हैं, लेकिन बनारस वालों को इंतजार है कि वह बनारस आ कर इस मुद्दे पर पार्टी का नेतृत्व करें।