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निकाय चुनाव सिर पर कांग्रेस कार्यकर्ता स्थानीय संगठन को लेकर उहापोह में

locationवाराणसीPublished: Oct 19, 2017 02:05:11 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

ब्लॉक, वार्ड, महानगर और जिला कमेटी के चुनाव की औपचारिकता पूरी। घोषणा होनी शेष।

कांग्रेस

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वाराणसी. कांग्रेस का संगठनात्मक चुनाव लगातार पिछड़ता जा रहा है। यह तब है जब पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र के बाबत कोर्ट ने पार्टी को 30 अक्टूबर तक की ही मोहलत दी है। बावजूद इसके अब तक जिला, शहर, ब्लाक कमेटियों का पुनर्गठन तक नहीं हो सका है। पार्टी के चुनाव कार्यक्रम के तहत 30 सितंबर तक ही ब्लाक, जिला और महानगर कमेटी का गठन हो जाना था। हालांकि बताया यह जा रहा है कि इसकी औपचारिकता पूरी कर ली गई है। बस घोषणा होनी शेष है। ऐसे में कार्यकर्ता कमेटी की घोषणा न होने से उहापोह में है। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि निकाय चुनाव पुरानी कमेटी के ही दिशा निर्देशन में होगा या नई कमेटी के। कार्यकर्ताओं का यह भी कहना है कि इस अस्थिरता की स्थिति में निकाय चुनाव प्रभावित हो सकता है। हालांकि उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि संभव है कि निकाय चुनाव पुरानी ही कमेटी कराए। यह जरूर है कि इन कमेटियों का अधिकार सीज रहेंगे और एआईसीसी और पीसीसी मेंबर ही सारी प्रक्रिया पर अंतिम फैसला करेंगे। जिला व महानगर कमेटी महज अपनी संस्तुति ही करेगी।
उम्मीद की जा रही है कि प्रदेश में निकाय चुनाव के लिए 25 अक्टूबर तक तिथियों की घोषणा हो सकती है। राज्य निर्वाचन आयोग और राज्य सरकार की ओर से एक साथ अधिसूचना जारी की जा सकती है। ऐसे में निकाय चुनाव को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भारी असमंजस की स्थिति है। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा। उनका ये भी कहना है कि अगर पुरानी कमेटी को ही यथावत रखना है या नई कमेटी घोषित होनी है दोनों में से कुछ भी हो उसे जल्द से जल्द घोषित कर दिया जाना चाहिए अन्यथा चुनाव प्रभावित होगा। तैयारी तो कुछ है नहीं, अब जो वक्त है वह भी संगठनात्मक चुनाव की भेंट चढ़ जाएगा। इसका नतीजा पार्टी हित में घातक होगा।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि नियमानुसार 30 सितंबर तक ही स्थानीय स्तर पर ब्लाक से जिला स्तर तक की कमेटियों का गठन हो जाना चाहिए था। हालांकि यह प्रक्रिया देर से ही सही पर पूरी कर 12 अक्टबर को ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) को सौंपृ दी गई है। स्थानीय स्तर की चुनावी प्रक्रिया वह चाहे भले ही ‘जेबी’ हो पर पूरी कर ली गई है। लेकिन गत 12 अक्टूबर को लखनऊ में हुई पीसीसी की बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर प्रदेश से लेकर वार्ड और ब्लॉक स्तर के अध्यक्षों के नाम की घोषणा का अधिकार केंद्रीय नेतृत्व को सौप दिया गया है। अब केंद्रीय नेतृत्व ही इसकी घोषणा करेगा और राष्ट्रीय स्तर पर 30 अक्टूबर तक अध्यक्ष की घोषणा होनी है यह खबर पत्रिका पहले ही चला चुका है। बताया यह भी जा रहा है कि निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पहले तक अगर डीसीसी व सीसीसी के अध्यक्ष की घोषणा नहीं हो सकी तो निकाय चुनाव तक उत्तर प्रदेश में जिला व महानगर अध्यक्ष की घोषणा रोक ली जाएगी। चुनाव पुराने अध्यक्ष ही कराएंगे लेकिन उन पर नियंत्रण पीसीसी और एआईसीसी का होगा। जैसा कि राष्ट्रीय सचिव राणा गोस्वामी के हवाले से पिछले दिनों पत्रिका ने खबर दी थी। ऐसा इसलिए कि यह मैसेज न जाए कि 2014 लोकसभा और 2017 विधानसभा चुनाव संचालित कराने वाली कमेटी ही निकाय चुनाव भी करा रही है।
वैसे नियमानुसार पार्टी की चुनावी प्रक्रिया अगस्त (जिला स्तर), सितंबर ( प्रदेश स्तर) और अक्टूबर (राष्ट्रीय स्तर) तक पूरी कर ली जानी थी। लेकिन डीआरओ (जिला निर्वाचन अधिकारी) को यह अधिकार दिए गए थे कि वह स्थानीय कमेटी से वार्ता कर चुनावी प्रक्रिया में फेरबदल कर सकता है पर सारी प्रक्रिया हर हाल में 30 सितंबर तक पूरी होनी थी। बताया तो यहां तक जा रहा है कि इसका कोरम पूरा भी हो गया है। अब पूरी पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर राहुल की ताजपोशी में ही जुटा है। ऐसे में गंगा उलटी बहनी है। सारी प्रक्रिया उलटी होगी। यानी पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय कमेटी फिर प्रदेश और तब उसके बाद जिला, महानगर और ब्लाक स्तर की कमेटियों का गठन होगा।
बता दें कि निकाय चुनाव में ब्लाक और वार्ड कमेटियों का कहीं ज्यादा महत्व होगा। वैसे तो हर चुनाव में बूथ, ब्लाक और वार्ड चुनाव का खास महत्व होता है, लेकिन चुनावी स्तर जितना नीचे जाता है छोटी से छोटी संगठनात्मक इकाई उतनी ही महत्वपूर्ण होती जाती है। अब अगर ब्लाक और वार्ड कमेटियां नहीं होंगी तो नगर निगम से लेकर नगर पालिका परिषद और नगर पंचायत चुनाव प्रभावित होगा। ऐसे में पहले से ही सूबे की सियासत में विगत 27 साल से हासिये पर गई पार्टी के लिए यह निकाय चुनाव एक और प्रतिकूल प्रभाव देने वाला हो सकता है।
सूत्र बताते हैं कि संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया में उलझाव और नई कमेटी की घोषणा में विलंब का ही परिणाम है कि निकाय चुनाव के लिए अभी तक वाराणसी नगर निगम के सभी 90 वार्ड के लिए पर्याप्त प्रत्याशियों की दावेदारी तक नहीं हो सकी है। कमोबेश यही हाल रामनगर नगर पालिका परिषद और गंगापुर टाउन एरिया को लेकर है। सूत्र कहते हैं कि मेयर प्रत्याशी के लिए भले ही उच्च स्तर से कवायद चल रही हो पर वार्ड स्तर के प्रत्याशियों की स्थिति तो स्पष्ट होनी चाहिए, जब अपेक्षित दावेदार ही नहीं होंगे तो चुनाव लड़ा कैसे जाएगा। यानी कुल मिला कर इस निकाय चुनाव में भी कांग्रेस अंदरखाने की फुटमत का ही शिकार होती नजर आ रही है।

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