धार्मिक नगरी अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जन्मोत्सव के बाद यहां के मंदिरों में मनाए जाने वाले छठ उत्सव की छट को कोरोना संक्रमण ने फीका कर दिया है। मंदिर परिसर में कुछ साधु-संत कार्यक्रम की औपचारिकता को निभा रहे हैं। रामलला के जन्मोत्सव के दूसरे दिन कामदा एकादशी पर रंगभरी एकादशी का पर्व भी इस बार ठीक से नहीं मन पाया। भगवान के अन्नप्राशन में भी लोग नहीं आए। छह दिनों तक चलने वाला सोहर गान भी नहीं हो रहा। यहां के कनक भवन, राम वल्लभा कुंज, लक्ष्मण किला, सद्गुरू सदन, जानकी महल, राम हर्षण कुंज, विभूति भवन सहित दर्जनों मंदिरों में बधाई गायन रस्म अदायगी बन कर रह गया।
पहली बार टूटा सिलसिला
कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से मिथिला से आने वाले भक्तों को भी रोक दिया गया। लक्ष्मण किला के महंत मैथिलीशरण दास ने बताया कि श्रीराम जन्मोत्सव इस बार लक्ष्मण किला पर ही सीमित है। यहां छठ उत्सव का 7 अप्रेल को समापन है। जिसमें कुछ स्थानीय संतों के ही भाग लेने की अनुमति है।
काशी में नगर वधुएं अर्पित नहीं कर सकीं नृत्यांजलि
उधर, काशी में कोरोना की वजह से 350 साल पुरानी परंपरा टूट गयी। मणिकर्णिका घाट किनारे स्थित बाबा मसान नाथ को नगर वधुएं अपनी नृत्यांजलि अर्पित नहीं कर सकीं। बाबा के वार्षिक श्रृंगार की रात यहां नरग वधुएं आधी रात में नृत्य करती हैं। बाबा विश्वनाथ, काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव और संकट मोचन मंदिर समेत अन्य सभी मंदिर बंद हैं। मणिकर्णिका घाट पर पचासों जलती चिताओं के बीच नगर बधुएं बाबा मसान के वार्षिक कार्यक्रम पर झूम-झूम कर नाचती हैं। जल रही लाशों के बीच दुनिया में शायद ही कोई ऐसा उत्सव होता हो। लेकिन इस बार काशी में बाबा मसान के वार्षिक श्रृंगार की रात यह नजारा देखने को नहीं मिला। मान्यता है कि नगर वधुएं बाबा मसान नाथ के दरबार में नृत्य कर अपने अगले जन्म को बेहतर होने की कामना करती हैं। पर वे सब इस बार निराश हैं। कह रही हैं उनकी सालों की तपस्या टूट गयी।
350 साल पुरानी परंपरा टूटी
17वीं शताब्दी में काशी नरेश राजा मान सिंह ने बाबा मसान नाथ के मंदिर का निर्माण के बाद संगीत कार्यक्रम को रखा। लेकिन श्मशान की वजह से कोई कलाकार संगीत उत्सव में शामिल नहीं हुआ। तब नगर वधुओं ने मसान नाथ के दरबार में नृत्यांजलि अर्पित की थी। तब से यह परंपरा चली आ रही थी। लेकिन, इस बार टूट गई।
फूलबंगले में नहीं विराजेंगे बांके बिहारी
कोरोना ने वृदांवन में भी परंपरा को तोड़ा है। एकादशी से अपने गर्भगृह से निकलकर ठाकुर बांके बिहारी जी भक्तों को फूलबंगला में दर्शन देते थे। लेकिन इस बार न तो फूलबंगला सजेगा न ही वह बाहर आएंगे। ठाकुर बांके बिहारी जी महाराज सैकड़ों वर्षों से चैत्र की एकादशी से गर्भगृह से बाहर आकर दर्शन देते रहे हैं। एकादशी से उनका सिंहासन चंदन चबूतरा पर रखा जाता है। उसके चारों और भव्य फूलबंगला सजाया जाता है। शयनकालीन सेवायत सुरेश गोस्वामी के मुताबिक इस बार सेवा में सिर्फ चार-पांच गोस्वामीगण ही हैं। इसलिए इस परंपरा का निर्वाह नहीं होगा।