यहां जगप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला की तैयारियां महीनों पहले से शुरू हो जाती हैं। किरदार निभाने वाले संवाद की अदायगी के लिए सालभर रिहर्सल करते हैं। इनाम जीतते हैं। लेकिन, इस बार कलाकारों को फांके की नौबत है। रामलीलाओं का आयोजन न हो पाने से रामायण पाठ करने वाले नेमी दुखी हैं। …तो दर्शकों को रामलीला न देख पाने का मलाल है।
काशी में पंजाबी दशहरा, डीएलडब्ल्यू का रावण दहन, चित्रकूट की रामलीला सभी का अपना-अपना इतिहास है। सभी की खासियत है। जनश्रुति है कि गोस्वामी तुलसीदास के सपने में हनुमान जी आए थे। उन्होंने राम के चरित का बखान किया था। यह 538 साल पहले की बात है। तब से लेकर अब तक तुलसी घाट पर रामलीला की परंपरा चलती रही। लेकिन, ऐसा पहली बार है जब रामलीला का मंचन नहीं हो रहा। भीड़ के बीच रावण भी नहीं जलेगा। कोरोना ने सब कुछ प्रतीकात्मक कर दिया है। तुलसी घाट पर प्रतीकात्मक रामलीला हो रही है, लेकिन दर्शकों की इजाजत नहीं है। भीड़ गायब है और दशहरे का उल्लास तो कहीं दिख नहीं रहा।
काशी में शिव करते हैं तांडव
गोस्वामी तुलसीदास के शिष्य मेघा भगत के हाथों शुरू हुई चित्रकूट समिति की रामलीला और काशी नरेश द्वारा शुरू की गई रामनगर की रामलीला भावपूर्ण और चलायमान होती हैं। अंग्रेज प्रो. मार्क आट्र्स ने भी अपनी किताब में इसका जिक्र किया है। काशी के बुद्घिजीवी डॉ. अत्रि भारद्वाज कहते हैं कि सात वार, नौ त्योहार वाली काशी का दशहरा भाव प्रधान है। यह नटराज की नगरी है। यहां शिव तांडव करते हैं इसलिये यहां की रामलीलाओं में नृत्य का भी पुट है। इसीलिए काशी का दशहरा भावपूर्ण और शाश्वत संदेश देने वाला रहा है। लेकिन राम की लीला देखिए भगवान ने यह संदेश देने की परंपरा भी छीन ली है।
हमारी परंपराएं निगल गया कोरोना
वाराणसी के लक्खा मेलों में शुमार नाटी इमली का भरत मिलाप विश्व प्रसिद्ध है। यहां का भरत मिलाप देखने जनसैलाब उमड़ता है। प्रभु श्रीराम समेत चारों भाइयों के मिलन के समय काशी के लोगों की आस्था जीवंत भाव में दिखती है। सुबह से ही लोगों का जुटना शुरू हो जाता है। हजारों यादव बंधु प्रभु रथ को लेकर चित्रकूट (नाटी इमली) से अयोध्या (बड़ा गणेश) की तरफ बढ़ते हैं। काशी राज स्टेट के उत्तराधिकारी कुंवर अनंत नारायण सिंह साल में एक बार अपनी शाही सवारी के साथ लीला स्थल पर पहुंचते हैं। लीला आयोजकों को सोने की गिन्नियां भेंट करते हैं। लेकिन नाटी इमली का स्थल इस बार सूना पड़ा है। कलाकार खाली बैठे हैं। वे कहते हैं कोरोना हमारी संस्कृति, परंपरा और रोजी-रोटी सब निगल गया।
रौनक गायब इसलिए लोग मायूस
संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वंभरनाथ मिश्रा के भाई और काशी घाट वॉक के संस्थापक डॉ. विजय नाथ मिश्रा कहते हैं लोगों में मायूसी है, क्योंकि त्योहरों की रौनक गायब है। दशहरा युवा पीढ़ी और बच्चों को सीख देता है कि अंत में रावण यानि बुराई की मौत तय है। यह साइकोलॉजकिल डेवेलपमेंट का बड़ा जरिया है। लाखों बच्चे लीलाएं देखकर ही सीखते थे उनके मन में दुख भाव है।
पुरातन धर्म की सीख कैसे मिलेगी
चित्रकूट रामलीला समिति के अध्यक्ष सुबोध अग्रवाल कहते हैं कि पुरानी परंपराओं से जोड़े रखने का प्रयास है बनारस का दशहरा। इस मेले में बड़े, बूढ़े और बच्चे सभी आते थे। वे अपने पुरातन धर्म को समझते थे। बच्चों को परंपराओं की सीख मिलती थी। धर्मपरायणता के साथ-साथ कारोबार भी चलता था। मनोरंजन के साथ परपंरागत तरीके से नयी पीढ़ी को धर्म का बोध होता था। लेकिन कोरोना से यह सब छीन लिया है।
वर्चुअल रामलीलाओं की शुरुआत
काशी घाटवॉक के संस्थापक डॉ. वीएन मिश्रा और उनकी टीम काशी की रामलीलाओं को वर्चुअल और ऑनलाइन दिखा रही है। तुलसी घाट की रामलीला का ऑनलाइन प्रसारण हो रहा है। ट्वीटर और फेसबुक पर कठपुतली रामलीलाएं पिछले 24 दिनों से चल रही हैं। दशमी के दिन कठपुतली की रामलीला में रावण के साथ कोरोना का वध भी होगा। तब राम जी संदेश देंगे कोरोना राक्षस सांसों में घुसकर मारता है। इसे तीर से नहीं दूर-दूर फैलकर मास्क से मारो। इसका अंत इसी से होगा।