दरअसल बीजेपी से मुकाबले के लिये विपक्ष खुद को मजबूत करने में जुटा है। कांग्रेस समेत दल अब ऐसे युवा नेताओं को अपने साथ जोड़ रहे हैं जो जुझारू हों और आंदोलनों से निकले हों या फिर इसमें आगे-आगे रहे हों। कांग्रेस पार्टी इसमें सबसे आगे दिख रही है। खुद राहुल गांधी भी यह कह चुके हैं कि उन्हें ऐसे नेताओं की जरूरत है जो जनता के बीच जाएं और जनता से जुड़े मुद्दे उठाएं। बात की जाए सरिता पटेल की तो सरिता पटेल पिछले 15 साल से राजनीति में सक्रिय हैं। उनकी शुरुआत छात्र राजनीति से हुई। वह ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन यानि AISA से जुड़ी रहीं। 2004 में सरिता ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से पुस्तकालय मंत्री का चुनाव जीता। इसके बाद वह लगातार छात्रों के मुद्दों को उठाती रहीं। 2007 में छात्रसंघ अध्यक्ष के पद पर लड़ीं।
सरिता ने इसके बाद सीपीआई एमएल जवाइन कर मुख्य धारा की राजनीति में कदम रखा। इसके बाद वह बनारस में गरीबों, आदिवासियों और मजलूमों के लिये आवाज उठाती रहीं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में छात्राओं के साथ छेड़खानी के बाद हुए आंदोलन में जब छात्राओं पर लाठीचार्ज हुआ तो उसके बाद आंदोलन में भी वह छात्रों के साथ खड़ी रहीं। बनारस चूंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है और यहां कांग्रेस को जुझारू नेताओं व कार्यकर्ताओं की जरूरत है जो कांग्रेस की तरफ से फ्रंट पर आए। फिलहाल कांग्रेस में ऐसे नेताओं का अकाल है जो सड़क पर उतरकर सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाएं।