दबगरवाल ने पत्रिका को बताया कि पटाखों में मुख्यतः सल्फर के तत्व मौजूद होते हैं। साथ ही कई प्रकार के बाइंडर्स, स्टेबलाइजर्स, ऑक्सीडाइज़र, रिड्यूसिंग एजेंट और रंग मौजूद होते हैं जो रंग-बिरंगी रोशनी पैदा करते हैं। यह एंटीमोनी सल्फाइड, बेरियम नाइट्रेट, एल्यूमीनियम, तांबा, लिथियम और स्ट्रोंटियम के मिश्रण से बने होते हैं। पटाखों के संबंध में कई नियम भी बने पर उसका अनुपालन नहीं हो रहा। वह कहते हैं कि निद्रा मनुष्य का मौलिक अधिकार है। इसे ध्यान में रखते हुए ही सितंबर 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने रात 10 बजे के बाद ज्यादा शोर और प्रदूषण फैलाने वाले पटाखे चलाने पर अंकुश लगाया था मगर फिर भी लोग देर रात तक पटाखे चलाते नजर आए। अस्पताल, शिक्षण संस्थान, कोर्ट और धार्मिक स्थलों से 100 किलोमीटर की दूरी तक पटाखे न चलाने के नियम बने। सर्वोच्च अदालत ने यह भी आदेश दिया कि पटाखे सिर्फ शाम छह बजे से रात दस बजे तक चलाए जाएं। बीस से भी ज्यादा ऐसे पटाखों पर बंदिश लगाई गईं जो 125 डेसीबल की ध्वनि सीमा से ज्यादा थे। यहां तक कि अक्टूबर 1999 में ऐसे पटाखे बनाने पर भी बंदिश लगा दी गई थी जिनका विस्फोट 125 डेसीबल से ज्यादा था। मगर आज भी इन नियमों का उल्लघन हो रहा है और वातावरण प्रदूषित हो रहा हैं।
दी क्लाइमेट एजेंडा के सीनियर रिसर्चर दबगरवाल के अनुसार पटाखों से मानव जीवन पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। दबगरवाल के अनुसार पटाखों से सेहत पर निम्न तरह के नुकसान हो सकते हैं… – पटाखों के धुएं की वजह से अस्थमा या दमा का अटैक आ सकता है. हानिकारक विषाक्त कणों के फेफड़ों में पहुंचने से ऐसा हो सकता है, जिससे व्यक्ति को जान का खतरा भी हो सकता है. ऐसे में जिन लोगों को सांस की समस्याएं हों, उन्हें अपने आप को प्रदूषित हवा से बचा कर रखना चाहिए।
-पटाखों के धुएं से हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा भी पैदा हो सकता है. पटाखों में मौजूद लैड सेहत के लिए खतरनाक है, इसके कारण हार्टअटैक और स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है. जब पटाखों से निकलने वाला धुंआ सांस के साथ शरीर में जाता है तो खून के प्रवाह में रुकावट आने लगती है. दिमाग को पर्याप्त मात्रा में खून न पहुंचने के कारण व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार हो सकता है।
-बच्चे और गर्भवती महिलाओं को पटाखों के शोर व धुएं से बचकर रहना चाहिए. पटाखों से निकला गाढ़ा धुआं खासतौर पर छोटे बच्चों में सांस की समस्याएं पैदा करता है. पटाखों में हानिकर रसायन होते हैं, जिनके कारण बच्चों के शरीर में टॉक्सिन्स का स्तर बढ़ जाता है और उनके विकास में रुकावट पैदा करता है. पटाखों के धुंऐ से गर्भपात की संभावना भी बढ़ जाती है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को भी ऐसे समय में घर पर ही रहना चाहिए।
-धुएं से दिवाली के दौरान हवा में पीएम बढ़ जाता है. जब लोग इन प्रदूषकों के संपर्क में आते हैं तो उन्हें आंख, नाक और गले की समस्याएं हो सकती हैं. पटाखों का धुआं, सर्दी जुकाम और एलर्जी का कारण बन सकता है और इस कारण छाती व गले में कन्जेशन भी हो सकता है।
पर्यावरणविद की सलाह
‘पटाखों से ध्वनि और वायु प्रदूषण फैलता है। ‘पर्यावरण की शुद्धता हमारे लिए उतना ही जरूरी है, जितना कि भोजन। हमें यह ध्यान रखना होगा कि पर्यावरण को कोई हानि न हो। दीपावली दीपों का पर्व है, पटाखों का नहीं। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए पटाखों के त्याग का संकल्प लेना होगा।’ इसकी पवित्रता को यों ही धुएं में न उड़ाएं। इस त्योहार को मनाने के लिए घर को सजा कर उसे दीये, मोमबत्ती और बिजली के बल्बों से जगमग करें।
‘पटाखों से ध्वनि और वायु प्रदूषण फैलता है। ‘पर्यावरण की शुद्धता हमारे लिए उतना ही जरूरी है, जितना कि भोजन। हमें यह ध्यान रखना होगा कि पर्यावरण को कोई हानि न हो। दीपावली दीपों का पर्व है, पटाखों का नहीं। पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए पटाखों के त्याग का संकल्प लेना होगा।’ इसकी पवित्रता को यों ही धुएं में न उड़ाएं। इस त्योहार को मनाने के लिए घर को सजा कर उसे दीये, मोमबत्ती और बिजली के बल्बों से जगमग करें।