बीजेपी की बढ़ी परेशानी मात्र 37.39 फीसदी वोटिंग ने सियासी सरगर्मी बढ़ा कर रख दी है। कम वोटिंग प्रतिशत से सबसे ज्यादा बीजेपी का सियासी समीकरण बिगड़ता नजर आ रहा है। सियासी पंडितों की माने तो किसी भी प्रत्याशी की हार जीत का अंतर काफी कम होगा।
निर्दल प्रत्याशी अतीक ने बढ़ाया रोमांच इसी बीच बसपा ने सियासी पैतरा खेला और सपा को समर्थन देकर चुनावी समीकरण को थोड़ा उलझाने की कोशिश की। लेकिन फूलपुर से ही सपा के टिकट से सांसद रहे अतीक अहमद की उम्मीदवारी और जेल के अंदर से ही उनकी सक्रियता ने सपा- बसपा के गठबंधन में पलीता लगा दिया। वहीं इऩके समर्थक जीत का दावा कर रहे हैं। अगर ऐसा हुआ बीजेपी को भारी झटका लग सकता है।
भाजपा के गढ़ में नहीं पड़ा वोट शहर उत्तरी के चलते फूलपुर संसदीय क्षेत्र में युवा मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है। इन युवाओं पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मैजिक हावी दिखता रहा। लेकिन उपचुनाव में उत्तरी के मतदाता दगा दे गये ।लेकिन यही मुस्लिम मतदाताओं ने अच्छा वोट किया। जिन पर अतीक अहमद का खास प्रभाव है। ऐसे में अतीक की उम्मीदवारी ने इस उपचुनाव को काफी रोचक बना दिया है। फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में मतदाताओं की कुल संख्या 1963543 है। इसमें पटेल मुसलमान और दलित वोटरए ब्राह्मण और यादव मतदाता है । जिसके लिए सभी प्रत्याशी हर वर्ग के वोट अपने खाते में होने का दावा कर रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार पीएन दिवेदी लम्बे समय से देश व प्रदेश की सियासत को करीब से देखते आ रहे हैं, उन्होंने कहा कि, भाजपा जो इस गठबन्धन को मजबूत नहीं मान रहा 25 साल पहले सपा- बसपा में हुए गठबंधन के अनुभवों को बताया जा रहा है। दरअसल, वर्ष 1993 में सपा और बसपा ने एक साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ा था और बहुमत मिलने पर प्रदेश में सपा और बसपा की साझे की सरकार बनी थी। लेकिन दो साल बाद ही तत्कालीन मुख्यमंत्री
मुलायम सिंह यादव और बसपा सुप्रीमो
मायावती में कुछ अनबन हो गयी तो मायावती ने अपना समर्थन वापस ले लिया और मुलायम की कुर्सी चली गयी थी।
जातीय समीकरण फूलपुर लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण की बात करें तो पिछड़े वोर्टस की संख्या सर्वाधिक करीब साढ़े सात लाख है। जिसमें 1 लाख 76 हजार यादव, 1 लाख 85 हजार कुर्मी वोटर, 1 लाख मौर्या वोटर हैं। 2 लाख 25 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। वहीं 4 लाख 50 हजार के करीब अगड़ी जाति के वोटर हैं। जिनमें सर्वाधिक करीब डेढ़ लाख ब्राह्मण मतदाता हैं। दलित वोटर्स की संख्या करीब साढ़े पांच लाख है। पिछड़े मतदाताओं की संख्या को देखते हुए सपा और बीजेपी ने पटेल चेहरे पर दांव खेला है। सपा ने जहां नागेंद्र सिंह पटेल को मैदान में उतारा है। वहीं बीजेपी ने कौशलेंद्र सिंह पटेल को टिकट दिया है। चुनाव से पहले बसपा ने सपा को समर्थन देकर बीजेपी को बड़ा झटका दिया। इस तरह सपा को पिछड़ों के साथ दलित वोटर्स का भी लाभ मिलता नजर आ रहा है। सपा प्रत्याशी के समर्थन में मुस्लिम वोटर्स में भी काफी रूचि दिखी।