वाराणसी

Dev Deepawali: जानिए काशी के लिए क्यूं खास है देव दीपावली

दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है देव दीपावली

वाराणसीOct 31, 2017 / 01:56 pm

sarveshwari Mishra

देव दीपावली

वाराणसी. देव दीपावली दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। देव दीपावली काशी की सबसे खास दीपावली होती है। जिसका काशीवासी बेसब्री से इंतजार करते हैं। कार्तिक मास की पूर्णिमा को पड़ने वाली देव दीपावली पर ऐसा विहंगम व मनोरम दृश्य होता है मानों देवता इस पृथ्वी पर दीवाली मनाने आ रहे हो। गंगा के रास्ते देवताओं की टोली आने वाली है और उन्हीं के स्वागत में काशी के 84 घाटों पर टिमटिमाती दीयों की लौ इंतजार में है। ऐसी मान्यता है कि इस तिथि से पहले कार्तिक के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु नींद से जागते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि दीपावली पर महालक्ष्मी अपने स्वामी भगवान विष्णु से पहले जाग जाती हैं, इसलिए दीपावली के 15वें दिन देवताओं की दीपावली मनाई जाती है।
 

 

क्यों मनाई जाती है देव दीपावली?
तीनों लोक त्रिपुरासुर दैत्य के आतंक से आतंकित था। देवताओं पर अत्याचार और उनकों तप को रोकने के लिए त्रिपुरासुर ने स्वर्ग लोक पर भी अपना कब्जा जमा लिया था। त्रिपुरासुर ने प्रयाग में काफी दिनों तक तप किया था। उसके तप से तीनों लोक जलने लगे। तब ब्रह्मा ने उसे दर्शन दिया। त्रिपुरासुर ने उनसे वरदान मांगा कि उसे देवता, स्त्री, पुरुष, जीव ,जंतु, पक्षी, निशाचर न मार पाएं। इसी वरदान से त्रिपुरासुर अमर हो गया था। विष्णु ने भी त्रिपुरासुर से लड़ने के लिए मना कर दिया था, क्योंकि कोई भी देव उसकी मृत्यु का कारण नहीं बन सकता था। विष्णु के कहने पर देवता ब्रह्मा जी से मिले।
 

 

ब्रह्मा जी ने देवताओं को त्रिपुरासुर के अंत का रास्ता बताया। देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे और उनसे त्रिपुरासुर को मारने के लिए प्रार्थना की। तब महादेव ने त्रिपुरासुर के वध का फैसला किया। महादेव ने तीनों लोकों में दैत्य को ढूंढ़ा। चतुर त्रिपुरासुर को ये पता चल चुका था कि महादेव उसे तलाश रहे हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने प्रदोष काल में अर्धनारीश्वर के रूप में त्रिपुरासुर का वध किया। उसी दिन देवताओं ने शिवलोक यानि काशी में आकर दीपावली मनाई। तभी से ये परंपरा काशी में चली आ रही हैं ।

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