सामने घाट से खिड़किया घाट तक दीपों की लड़ियों की लकदक में जगमग गंगा तट की अद्भुत छटा निहारने के लिए मंगलवार को देवलोक से देवता धरती पर उतरे। 8 किलोमीटर लंबे गंगा घाटों पर दीपों और फूलों से उकेरा गया स्वर्ग से भी सुंदर नजारा।
देवदीपावली की अद्भुत छटा निहारने के लिए देश-दुनिया से काशी पहुंचे लोगों का हुजूम दोपहर बाद ही घाटों की ओर बढ़ने लगा था। लाखों लोगों के कदम घाटों की ओर ऐसे बढ़ चले मानो मां गंगा की अनुपम और अनोखी छवि को लंबे समय के लिए लोग नजरों में कैद कर लेने को व्याकुल हों।
आस्था का रेला ऐसा कि देश विदेश से आने वाले सैलानियों से घाट गलियां और नदी शाम ढलने से पूर्व ही पट चुकी थीं। जैसे जैसे भगवान भाष्कर अस्ताचलगामी हो रहे हैं वैसे वैसे ही आस्था का रेला गंगा धार की ओर दीयों की रोशनी अर्पित करने स्वत:स्फूर्त भाव से बढ़ चला था। भगवान शिव को समर्पित इस विशिष्ट आयोजन में काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा मारकंडेय महादेव, तिलभांडेश्वर, सारंगनाथ, बीएचयू विश्वनाथ मंदिर, दुर्गाकुंड स्थित मंदिर में भी शाम होते ही असंख्य दीपों की लडियों ने प्रकाश पर्व के आयोजन को और गति दी गई।
इसके अलावा अस्सी पर सुबहे बनारस, जैन घाट पर स्यादवाद महाविद्यालय, ललिता घाट पर अन्नपूर्णा मठ मंदिर समेत विभिन्न संगठनों की ओर से विविध आयोजन किए गए। प्रशासन की ओर से राजघाट पर आयोजित समारोह में लेजर शो के जरिए महादेव के तांडव और गंगा अवतरण की प्रतिकृति दिखाई गई। पर्यटन विभाग की ओर से चार सेल्फी प्वाइंट और सोशल मीडिया सेंटर भी बनाए गए थे। इसके अलावा पंजाबी गायक हंसराज हंस और संतूर वादक भजन सोपोरी अपनी प्रस्तुति से लोगों को आनंदित किया। राजघाट पर मुख्य आयोजन में राज्यपाल आनंदी बेन पटेल मौजूद रहीं।
प्रशासन की ओर से 16 घाटों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। इसमें रविदास घाट पर रामलीला, रीवा घाट पर बिरहा गायन, निषादराज घाट पर घूमर व चरी लोक नृत्य, चेत सिंह घाट पर भजन गायन, महानिर्वाणी घाट पर डांडिया लोक नृत्य, प्राचीन हनुमान घाट पर शहनाई वादन, चौकी घाट पर बांगला लोक नृत्य, राजघाट पर सूफी गायन, पांडेय घाट पर कथक नृत्य, दरभंगा घाट पर लोक गायन, सिंधिया घाट पर पंजाबी लोक नृत्य, रामघाट पर सितार व बांसुरी की युगलबंदी, लाल घाट पर भजन गायन, गाय घाट पर नाट्य मंचन, बद्रीनारायण घाट पर राजस्थानी लोक नृत्य और नंदेश्वर घाट पर लोक नृत्य का आयोजन हुआ।
ऐसा नहीं कि सिर्फ गंगा घाट ही जगमग रहे, बल्कि मारकंडेय महादेव कैथी का गंगा-गोमती तट, वरुणा तट को भी करीने से ऐसा सजाया गया था कि दिल बाग-बाग हो उठे। साथ ही शहर से लेकर गांव तक के सरोवरों, कुंडों व तालाबों की छटा भी देखते बन रही थी। काशी के सभी पौराणिक कुंडों पर लोगों की आस्था दीपक के प्रकाश के रूप में देदिप्यमान हो रही थी। चाहे वह प्राचीन रामकुंड हो, लक्ष्मी कुंड हो, दुर्गा कुंड हो या सूर्य सरोवर, सूर्य कुंड, पुष्कर तालाब या आराजीलाइन ब्लॉक का भैरव तालाब, हर तरफ दीप मालिकाओं की मनोहारी आकर्षक कड़ियों ने दिल को छू लिया। लोगों ने न केवल कैमरों मे इस अनोखे दृश्य को कैद किया बल्कि मनमंदिर में सदा सदा के लिए बसा लिया।