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यूपी के अफसरों की बेशर्मी: 37 साल से कूड़े का ढेर पड़ी थी देश के पहले राष्ट्रपति बाबू राजेंद्र प्रसाद की मूर्ति

locationवाराणसीPublished: Aug 14, 2022 07:14:53 pm

Submitted by:

Karishma Lalwani

देश के पहले राष्ट्रपति और भारत रत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद के स्मारक स्थल पर वर्षों से कूढ़े का अंबार लगा हुआ था। बेशर्म अफसरों की लापरवाही से प्रतिमा कूढ़े का स्थान बन चुकी थी। आसपास इतनी गंदगी की एक मिनट खड़ा होने भी मुश्किल था। प्रशासन की तरफ से भी भारत रत्न के बेहाल स्मारक की साफ सफाई को लेकर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

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Dirt and Dust Removed from Memorial of Bharat Ratna Rajendra Prasad in Varanasi

37 साल पहले देश के प्रथम राष्ट्रपति की प्रतिमा का अनावरण किया गया था। जिसके बाद से अब तक जितनी भी सरकारें आईं सबने इसकी अनदेखी की। अधिकारियों की बेशर्मी का आलम यह रहा कि आज वह कूढ़े के ढेर में तबदील हो चुकी थी। लोग वहां अपने कपड़े सुखाने जाते थे। लेकिन आज कुछ उत्साही युवाओं ने कुछ ऐसा कर दिखाया है कि आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान प्रतिमा का जो अनावरण हुआ था उसको मूलरूप का प्रयास देने की कोशिश की गई। प्रतिमा को साफ करके, गंगाजल से स्नान कराकर उसका माल्यार्पण किया गया।
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1984 में राज्य सरकार ने इस घाट का पक्का निर्माण करवाया था और देश के प्रथम राष्ट्रपति के नाम पर इसका नामकरण कर दिया। पूर्व में यह घाट ”घोड़ा घाट’ के नाम से चर्चित था क्योंकि यह घोड़ों का क्रय-विक्रय केंद्र (ट्रेडिंग सेंटर) था। घाट के पुन: नामकरण के बाद यहां डॉ. राजेंद्र प्रसाद की प्रतिमा भी स्थापित की गई। लेकिन अब तक यह प्रतिमा ऐसी बदहाल स्थिति में रही कि यहां से गुजरने वाले लोगों को ही इस बात की भनक न लग पाई कि यहां कोई प्रतिमा भी है। अगर गलती से कोई प्रतिमा के पास चला भी जाए, तो बदबू के मारे दूर खड़ा हो जाता।
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प्रशासन की अनदेखी से बेहाल था स्मारक

वाराणसी अपनी गंगा आरती के लिए विश्व प्रसिद्ध है। दुनिया के कोने-कोने से लोग यहां आरती देखने आते है। लेकिन इसी काशी में बदहाल स्थिति में पड़ी 37 वर्ष पुरानी प्रतिमा की नगर निगम और प्रशासन की ओर से लंबे समय तक अनदेखी की गई। यह घाट सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए मशहूर है। लेकिन स्मारक की हालत को लेकर जिम्मेदारों की कान पर जूं तक नहीं रेंग रही थी। आजादी के 75वें वर्ष पर प्रतिमा की सफाई करवाने वाले स्वागतम फाउंडेशन के संयोजक अभिषेक शर्मा ने कहा कि नगर-निगम और प्रशासन की ओर से अनदेखी हो रही थी तो कुछ नगरवासियों के साथ उस विभूति की प्रतिमा के चारों ओर बरसों से जो कूड़े का अंबार लगा था, सब हटवा दिया गया और गंगा स्नान, माल्र्यार्पण आदि कर लोगों के दर्शन के लिए खोल दिया गया।
रोचक है राजेंद्र प्रसाद घाट का इतिहास

इतिहासकार मोतीचंद्र द्वारा लिखित ‘काशी के इतिहास’ किताब के अनुसार, मौर्य काल तक यह घाट घोड़ों के इंपोर्ट-एक्सपोर्ट का केंद्र था। जेम्स प्रिंसेप ने इस घाट पर एक पेंटिंग भी बनाई थी। घाट पर दुर्गा, राम जानकी और शिव के मंदिर भी हैं। मंदिरों के समीप ही डॉ, राजेंद्र प्रसाद की आदमकदम प्रतिमा स्थापित की गई थी। यह घाट दशाश्वमेध घाट का ही अंश है।
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