डीएम सुरेंद्र सिंह ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश के अनुसार उत्तरप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कृषि अपशिष्ट को जलाए जाने से रोकने के लिए दिए गए दिशा निर्देशों के पालन के लिए सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया है। डीएम ने सभी तहसीलों में उपजिलाधिकारी एवं प्रत्येक विकास खंड अधिकारियों को पराली और अन्य कृषि अपशिष्टों को जलाने से रोकने के लिए सचल दस्ता गठित करने के निर्देश दिए।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के द्वारा पारित आदेश के अनुसार पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के लिए अर्थदण्ड वसूलने के लिए कृषकों का वर्गीकरण उपलब्ध कृषि भूमि के आधार पर किया है। दो एकड़ तक के कृषक से 2500 तक का जुर्माना, दो एकड़ से पांच एकड़ तक के कृषक पर 5000 जुर्माना और 5 एकड़ से अधिक भूमि वाले कृषक से 15,000 रुपये तक जुर्माना वसूलने का आदेश है।
जिलाधिकारी ने सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया है कि कृषि अपशिष्टों को जलाने वाले कृषकों तथा कंबाइन हार्वेस्टिंग मशीन के साथ स्ट्रॉ रीपर विद बाइंडर का प्रयोग न करने वाले मशीन मालिकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करें।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के द्वारा पारित आदेश के अनुसार पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के लिए अर्थदण्ड वसूलने के लिए कृषकों का वर्गीकरण उपलब्ध कृषि भूमि के आधार पर किया है। दो एकड़ तक के कृषक से 2500 तक का जुर्माना, दो एकड़ से पांच एकड़ तक के कृषक पर 5000 जुर्माना और 5 एकड़ से अधिक भूमि वाले कृषक से 15,000 रुपये तक जुर्माना वसूलने का आदेश है।
जिलाधिकारी ने सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देशित किया है कि कृषि अपशिष्टों को जलाने वाले कृषकों तथा कंबाइन हार्वेस्टिंग मशीन के साथ स्ट्रॉ रीपर विद बाइंडर का प्रयोग न करने वाले मशीन मालिकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करें।
इस संबंध में क्लाइमेट एजेंडा की मुख्य कार्यकर्कता एकता शेखर ने पत्रिका से बातचीत में कहा कि डीएम की यह पहल काफी सराहनीय है। उन्होंने कहा कि तीन साल से लगातार हमलोग पराली जलाने पर रोक की मांग कर रहे थे। बताया कि आमतौर पर यह माना जाता है कि पराली केवल पंजाब और हरियाणा में ही जलाई जाती है। लेकिन ऐसा है नहीं। उन्होंने कहा कि दो दिन पहले ही लखनऊ से आते वक्त उन्होंने देखा था कि रास्ते भर खेतों में कृषि अपशिष्ठ जलाए जा रहे हैं। बताया कि क्लाइमेट एजेंडा का मानना है कि पंजाब और हरियाणा से ज्यादा पराली यूपी में जलाया जाता है लेकिन खेतों का क्षेत्रफल सीमित होने के चलते पता नहीं चलता है लेकिन यह वातावरण को बुरी तरह से प्रभावित करता है। बताया कि तीन साल पहले ही यूपी सरकार से इस पर रोक लगाने की मांग की गई थी लेकिन तब यूपी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया था। उन्होंने कहा कि खेतों के अपशिष्ट जलाने पर अंकुश के साथ कुड़े की आग पर ही रोक लगनी चाहिए।